क्या अजमेर में अनुभव सागर जी संत-वाद या महत्वकांक्षा के शिकार हुए ..?
इंदौर ! ( देवपुरी वंदना ) यह चरितार्थ सत्य है कि बिना नींव के बड़ी इमारत खड़ी नहीं की जा सकती
उसी को सत्यापित करता हमारा जैन समाज क्योंकि नेतृत्व विहीन जैन समाज के किस्सों का रोज बाजार में घूमते हुए देखा जा रहा है चाहे वह संतवाद -पंथवाद, पूजा पद्धति, तीर्थ क्षेत्र, संघ, संगठन या श्रमण – संस्कृति से जुड़े हो। आज जैन समाज की ऐसी स्थिति हो गई है की समाज में आज निर्णय सुनाने वाले स्वयं वकील के साथ जज की भूमिका में आते हैं व अपनी महत्वाकांक्षा लिए निर्णय सुनाने के साथ क्रियान्वित भी कर देते हैं । आजकल यह चलन आम हो गया है बिना कुछ सोचे समझे बस अपनी महत्वकांक्षा की दुकान खोल देते हैं ।
विगत दिनों अजमेर जैन समाज मे जो कुछ भी हुआ उससे कोई अनजान नहीं है मगर सच्चाई से वहां का स्थानीय जैन रहवासी स्वयं अनजान है ? मगर कुछ श्रावक श्रेष्ठी जो इस घटना में सम्मिलित हैं वह सच्चाई से परिचित है मगर अभी भी पुरी समाज के सामने सच्चाई लाने में संकोच कर रहे हैं ?
देवपुरी वंदना समाचार परिवार के सूत्रों ने सच्चाई का पता लगाने कि एक कोशिश की जिसमें पाया कि वहां के बुद्धिजीवी वर्ग दबी जुबान से या एस घटनाक्रम में नाम ना आने की शर्त पर इतना ही कह पाए कि यह सब संत-वाद और पंथ-वाद की आड़ में अपनी अपनी महत्वकांक्षा का परिणाम है फिर भी क्या सही क्या गलत समाज के बाद अब शासन प्रशासन ही बता सकता है मगर वह भी सच्चाई से कोसों दूर रहेगा क्योंकि अर्थ के बाहुबल्य से कुछ भी बदल सकता है ।
अजमेर के समीप तीर्थ क्षेत्र में होने वाले आगामी आयोजन में अनुभव सागर जुड़े थे किसी किसी को यह नागवार गुजर रहा था। बस एक संत की क्रिया व पूजा पद्धति की आड़ लेकर एक दूसरे संत के साथ ऐसा कृत्य किया । क्योंकि विगत 23/12/2018
का उनके नाम से एक माफीनामा बाजार में घूम रहा है तो जिस शख्स ने यह अभी प्रस्तुत किया तो क्या वह इस होने वाली घटना से पहले से परिचित था तो वह कागज जैन समाज के सामने क्यों नहीं लाये या वह भी….
विगत 5 वर्षों तक माफीनामा उनके पास उन्होंने सुरक्षित क्यों रखा ? अजमेर जैन समाज के कुछ व्यक्तियों को जो करना था वह कर गए उनकी इस मंशा से जैन समाज के धूमिल होने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता अपनी अपनी स्वयं की लालसा व पदाधिकारियों के मतभेद क्या क्या नहीं करवा सकती इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आप सभी के सामने हैं । आज केमानव किमहत्वकांक्षा चाहे वह साधारण हो या समाज का मार्गदर्शन करने वाला मानव जीवन में कुछ महान कर पाने की अदम्य लालसा ही महत्वाकांक्षा है| इस लालसा की पूर्ति का मार्ग परस्पर होड़ से जन्म लेता है| किसी अन्य से आगे बढ़ पाने की यह आकांक्षा बिना इस ‘अन्य’ के प्रति कठोर हुए नहीं पूर्ण की जा सकती | मनुष्य में आगे बढ़ने की जो भी स्वाभाविक इच्छा जन्म लेती है उसके साथ अप्रत्यक्ष रूप से अन्य मानवों को पीछे छोड़ने की अदृश्य इच्छा भी जुड़ी रहती है| यदि सहृदय होकर इस पर विचार किया जाए तो इस प्रकार की समस्त प्रतिद्वंदिता निष्ठुरता है| दूसरे के प्रति निर्ममता है | किंतु महानता को पाने के लिए यह निर्ममता या निष्ठुरता एक अनिवार्य दुर्गुण है, इसके अभाव में उस निष्ठा, संकल्प या दृढ़ता की कल्पना नहीं की जा सकती, जो मनुष्य को आगे बढ़कर अनछुई ऊँचाइयों को छूने के लिए प्रेरित करते हैं देवपुरी वंदना समाचार परिवार पुनः समाज से निवेदन करता है कि सच्चाई को सामने लाएं वरना आने वाले समय में इसकी और पुनरावृति होती रहेगी आज एक छोटे से घाव का इलाज आसानी से हो सकता है जब वह नासूर या बड़ा घाव बन जाएगा तब उसका कोई इलाज भी नहीं रहेगा ।