माँ ………माँ… माँ….
माँ.. सृष्टी कीअ नमोल कृति है माँ,
माँ कोई शब्द नहीं, जिसकी कोई व्याख्या कर सके
माँ कोई अर्थ नहीं जिसका कोई मतलब बता सके
माँ कोई रतन नहीं जिसका कोई मोल हों,
संगीत की सरगम की तरह माँ का हर एक स्वर मीठा है,
माँ एक एहसास है जिसकी ममता सदैव मेरे आस पास है,
माँ बच्चे की हर आने वाली परिस्थिति का पूर्वआभास है,
जीवन की कड़ी धूप में माँ का आँचल मीठी घनी छाव है,
मेरे डगमगाते हुए कदमो से मजबूत दौड़ते कदमो का विश्वास माँ है,
मेरे नन्हे मन की पाठशाला माँ है जीवन की सर्वोच्च सफलता का राज माँ है,
कभी डराती कभी धमकाती है ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाती वो मेरी माँ है,
जीवन युद्ध में सार्थी मेरी माँ है हर वार के लिये ढाल मेरी माँ है,
कभी मेरी नादानियों पर भड़क जाती है फिर नयन नीर भर तन्हाई में सिसकती भी माँ है,
मैं माँ की धमनी में बहता रक्त हू, दिल की धड़कती हर धड़कन हू,
मैं माँ का अंश हू उसकी प्रतिकृति का स्वरुप हू,
लोग कहते है हमेशा ईश्वर ने बनाया है,मैंने कहाँ मैंने ईश्वर को माँ में ही पाया है,
ईश्वर के आगे सारा जहाँ नतमस्तक है, माँ की ख़ुशी के लिये मेरा जीवन समर्पित है,
मैं ये नहीं कहूँगी मैं तुम्हार अहसान चुकाऊ कैसे इस जन्म में,
इतना जरूर करू तुम्हारे जैसी “माँ “बन तुम्हारे संस्कारों का घना वृक्ष बन जाऊ.. उस वृक्ष की हर टहनी से माँ की ममता बरसाऊ…….
बरखा विवेक बड़जात्या
बाकानेर, जिला. धार
मध्य प्रदेश