आर्यिका रत्न गुरु मां 105 आर्षमती माताजी ससंघ को हाथरस दि.जैन समाज द्वारा चातुर्मास हेतु श्रीफल भेंट किया
ग्वालियर ! ( देवपुरी वंदना )
समाधिष्ठ आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर जी की अंतिम प्रभावीका सुशीष्या युवा प्रणेता ,वात्सल्यमय गणिनी आर्यिका रत्न गुरु मां 105 आर्षमति माताजी के ग्वालियर मुरार क्षैत्र के सी.पी .कॉलोनी के श्री 1008 महावीर दिगंबर जैन (लाल ) मंदिर मे प्रवास के दौरान विगत दिवस हाथरस दिगंबर जैन समाज द्वारा आगामी चातुर्मास (वर्षा योग) के लिए श्रीफल भेंट किया जिसमें हाथरस दिगंबर जैन समाज की ओर से उत्तर प्रदेश दिगंबर जैन महासभा के महामंत्री श्री संजीव जी जैन, श्री दिगंबर जैन सभा जिलाध्यक्ष श्रीमती नेहा जैन संयुक्त मंत्री श्रीमती रंजना जैन, श्री अनिल जी जैन, श्री मनीष जैन, श्रीमती मीनाक्षी जैन, के साथ जैन नवयुवक सभा के साथ महिला मंडल, ग्रुप ,संघ सभी पदाधिकारी व सदस्य की उपस्थिति में बड़ी प्रसन्नता लिए भक्ति भाव से आर्यिका ससंघ को चार माह वर्षा योग काल के लिए श्रीफल भेंट किया ।चातुर्मास का विशेष महत्व है। इसमें आने वाले चार महीने जिसमें सावन, भादौ,आश्विन और कार्तिक का महीना आता है। चातुर्मास के चलते एक ही स्थान पर रहकर जप और तप किया जाता है। बर्षा ऋतु और बदलते मौसम से शरीर में रोगों का मुकाबला करने अर्थात रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। दरअसल इन 4 महीनो में व्यक्ति की पाचनशक्ति भी कमजोर हो जाती है इससे अलावा भोजन और जल में हानिकारक बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है। इन कारणों से वैदिक काल से ही यात्रा करना या मंगल आयोजन करना जन हिताय में बंद कर दिया जाता था।
चातुर्मास में एक ही स्थान पर बैठकर जप, तप, साधना व प्रवचन करते हैं। इन महीनों में खान-पान, व्रत के नियम और संयम का पालन करना चाहिए। इसलिए इस समय किसी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। मांगलिक कार्यों की फिर शुरुआत कार्तिक मास की देवउत्थान एकादशी के दिन होती है। चातुर्मास के दौरान यानी 4 माह में विवाह संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं। चातुर्मास के इस काल में व्रत-पूजन का विशेष लाभ मिलता है।