दुर्लभ जैन ग्रंथ एवं शास्त्रों की रक्षा का महापर्व श्रुत पंचमी- 105 आर्षमति माताजी

ग्वालियर ! ( देवपुरी वंदना)
जैन धर्म में ज्येष्ठ माह, शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ‘श्रुत पंचमी’ (ShrutiPanchami, ज्ञान पंचमी) का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान महावीर के दर्शन को पहली बार लिखित ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया गया था। पहले भगवान महावीर केवल उपदेश देते थे और उनके प्रमुख शिष्य (गणधर) उसे सभी को समझाते थे, क्योंकि तब महावीर की वाणी को लिखने की परंपरा नहीं थी। उसे सुनकर ही स्मरण किया जाता था इसीलिए उसका नाम ‘श्रुत’ था। उक्त विचार ग्वालियर स्थित मुरार के सी.पी, कॉलोनी श्री महावीर दिगंबर जैन लाल मंदिर में विराजित आर्यिका रत्न गुरु मां 105 आर्षमति माताजी ने श्रुत पंचमी महापर्व शुभ अवसर पर कहे इसके पूर्व सकल दिगंबर जैन समाज सीपी कॉलोनी मुरार महिला मंडल एवं जैन मिलन मुरार द्वारा प्रातः भव्य मंगल शोभा यात्रा निकाली गई जिसमें महिलाओं ने शास्त्र को सिर पर रखकर नगर भ्रमण कराया जिसमें गुरु मां के साथ संघस्थ
आर्यिका श्री105 अमोघ मति माताजी,आर्यिका श्री105 अर्पण मति माताजी, व आर्यिका श्री 105 अंश मति माताजी के साथ कंचन दीदी और मंदिर कमेटी अध्यक्ष श्री महावीर जैन मंत्री श्री शैलेश जैन व सी.पी. कॉलोनी के स्थाई समाज बंधु साथ मैं भक्ति भाव के साथ शोभा यात्रा में साथ में चले श्रुत पंचमी के पावन अवसर पर जिनवाणी सजाओ प्रतियोगिता के साथ संध्या काल में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए साथ ही पुरस्कार वितरण भी किया गया ।
जैन समाज में इस दिन का विशेष महत्व है। इसी दिन पहली बार जैन धर्मग्रंथ लिखा गया था। भगवान महावीर ने जो ज्ञान दिया, उसे श्रुत परंपरा के अंतर्गत अनेक आचार्यों ने जीवित रखा। गुजरात के गिरनार पर्वत की चन्द्र गुफा में धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि मुनियों को सैद्धांतिक देशना दी जिसे सुनने के बाद मुनियों ने एक ग्रंथ रचकर ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को प्रस्तुत किया।
जानकारी अनुसार 2,000 वर्ष पहले जैन धर्म के वयोवृद्ध आचार्यरत्न परम पूज्य 108 संत श्री धरसेनाचार्य को अचानक यह अनुभव हुआ कि उनके द्वारा अर्जित जैन धर्म का ज्ञान केवल उनकी वाणी तक सीमित है। उन्होंने सोचा कि शिष्यों की स्मरण शक्ति कम होने पर ज्ञान वाणी नहीं बचेगी, ऐसे में मेरे समाधि लेने से जैन धर्म का संपूर्ण ज्ञान खत्म हो जाएगा। तब धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि की सहायता से ‘षटखंडागम’ शास्त्र की रचना की, इस शास्त्र में जैन धर्म से जुड़ी कई अहम जानकारियां हैं। इसे ज्येष्ठ शुक्ल की पंचमी को प्रस्तुत किया गया। इस शुभ मंगलमयी अवसर पर अनेक देवी-देवताओं ने णमोकार महामंत्र से ‘षटखंडागम’ की पूजा की थी।

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