मूलाधार चक्र पर विराजित हैं श्री गणेश

ओंकार जिसे ब्रह्मनाद भी कहा जाता है, ओंकार से जो ध्वनि निकलती है उसी से परमात्मा की सृष्टि की रचना हुई । हमारी संस्कृति के अनुसार आज भी लोग सुबह और शाम वातावरण को पवित्र व पावन करने हेतु शंखनाद करते हैं। आज जिस विकट परिस्थितियों में हम जी रहे हैं, उसके लिए वातावरण का शुद्ध और पवित्र होना अत्यंत आवश्यक है, ओंकार की ध्वनि से हमारा चित्त शुद्ध व शांत हो जाता है और ओंकार का ही दूसरा रूप श्री गणेश हैं । श्री गणेश जी ही पावनता, पवित्रता तथा अबोधिता के दाता हैं। सहजयोग संस्थापिका श्रीमाताजी श्री निर्मला देवी के अनुसार- गणेश जी को निराकार में प्राप्त करना, श्रीगणेश जी की शक्ति अगर अपने अंदर जागृत करनी है तो सबसे पहले प्रथम जानना चाहिए कि हमें निराकार कि ओर चित्त देना चाहिए जो कि हमारे अंदर बह रहा है।

सहजयोग द्वारा हम अपने अंदर विराजित श्री गणेश तत्व को, आत्मसाक्षात्कार कुंडलिनी जागरण की ध्यान पद्धति से, जागृत कर सकते हैं। हमारे सूक्ष्म तंत्र में रीढ़ की हड्डी का अंतिम सिरा, जो (भूमि पर बैठते हैं तब जो शरीर का भाग) पृथ्वीमाता से स्पर्श हो रहा है, वहां स्थित चक्र को मूलाधार चक्र कहते हैं। सहजयोग में श्री माता जी निर्मला देवी की कृपा से हमारी निर्विचार चेतना से हमारे अंदर पवित्रता का विकास होता है। उपरोक्त बताई गई संक्षिप्त जानकारी का विस्तृत अध्ययन करने के लिए यदि साधक कोई भी प्रश्न अपने मन में रखता है तो वह हमारे टोल फ्री नंबर 18002700800 पर कॉल कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।

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