क्या भारत देश की देवी मां मांस को प्रसाद के बतौर स्वीकार करती हैं….?
इंदौर ! (देवपुरी वंदना ) भारत देश जहां राम, कृष्ण और महावीर, की जन्मभूमि है क्या वहां पशु ( मुक बधिर ) का मांस मंदिरों में प्रसाद के बतौर उपयोग में करना कब और कहां तक हमारी संस्कृति या संस्कार बन गया और बनता जा रहा है ?
क्या सही में देवी माऺ मनोकामना की पूर्ति के लिए भक्तों द्वारा पशु पर अत्याचार करने पर प्रसन्न होती हैं ?
उत्तर प्रदेश की गोरखपुर स्थित तरकुलहा देवी मंदिर में बकरे का मांस प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता है ? तमिलनाडु के मुनियादी स्वामी मंदिर में चिकन और मटन बिरियानी प्रसाद ने मिलती है ? ओडिशा के पुरी स्थित विमला देवी मंदिर में मटन और मछली से बना प्रसाद मिलता है ? असम के कामाख्या देवी मंदिर में भी मछली और मांस का भोग भी लगाया जाता है ?
केरल के परासीनिक करयु मंदिर में मछली और ताड़ी को चढ़ाया जाता है ? और इसी प्रकार पश्चिम बंगाल के दक्षिणेश्वर काली मंदिर, तारा पीठ मंदिर और मशहूर कालीघाट मंदिर में बकरे मछली का मांस चढ़ाया जाता है और प्रसाद के बतौर भक्तों को दिया जाता है ?
क्या सनातन धर्म में इस प्रकार से मनवांछित फल प्राप्त होता है या समय काल की परिस्थिति के चलते यह प्रथा चालू की गई थी अगर यही सही है तो भी अब पुनः समय काल की स्तिथि को देखते हुए इस प्रकार पशु ( मुक बधिर ) प्राणी को प्रसाद के रूप में चढ़ाना या ग्रहण करना कितना उचित होगा । अब यह एक विचारणीय प्रश्न सभी के समक्ष रख रहा हूं ।
मेरा भारत देश के सभी सनातन धर्म मानने वाले भाई – बहनों से निवेदन है कि इस प्रथा को बंद किया जाना चाहिए या….?