श्वेत वस्त्र धारी ब्रह्मचारी द्वारा श्रावको की आस्था के साथ खिलवाड़ कब तक
बचपन से ही हम जिस प्रतिमा के सामने हम सभी नतमस्तक होते हैं जिस भगवान से हम हमारे अच्छे के लिए हाथ जोड़कर मांगते हैं या गलत होने पर क्षमा मांगते हैं उन्हीं भगवान की प्रतिमा को रुपयों की लालच में छोटे-छोटे टुकड़े कर देते हैं ?
हमारी पौराणिक परंपरा के अनुसार जैन ब्रह्मचारी पाँच प्रकार के होते हैं – उपनय, अवलंब, अदीक्षा, गूढ़ और नैष्ठिक
मगर आज की दुनिया में झूठ फरेब, लालसा , महत्वकांक्षा, चोरी कर भगवान की प्रतिमा को भी नहीं छोड़ रहे हैं समाज की गिरती शाख के साथ समाज जन की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते श्वेत वस्त्र धारी ब्रह्मचारी आस्था व श्रद्धा भक्ति के धन से अपनी लालसा के महल को और कितना बड़ा बनाते जाएंगे ।
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण विगत दिवस कचनेर जी में हुए घटनाक्रम को देखे तो श्रमण संस्कृति के रक्षार्थ चलते फिरते तीर्थों के साथ रह कर श्वेत वस्त्र धारी ब्रह्मचारी शिवपुरी निवासी शातिर दिमाग अर्पित पिता नरेंद्र ने ब्रह्मचारी का रूपरख श्रावको की आस्था के साथ खिलवाड़ करते हुए 2 किलो 300 ग्राम की स्वर्ण प्रतिमा के बदले पीतल की प्रतिमा रख देता हे स्वर्ण प्रतिमा जी के टुकड़े -टुकड़े कर के रूपया एकत्रित करने लगा ।
इसके अलावा और भी न जाने किस तरह से धन एकत्रित कर रहा होगा या कहे तो अभी तक कितने ही श्रावको के साथ खिलवाड़ कर चुका होगा ।
प्रायः देखा जाए तो अभी अभी कितने ही ब्रह्मचारी ने समाज जन के साथ धोखाधड़ी की है फिर भी हमारा जैन समाज अनदेखा करते हुए आंखें मूंद लेता है ? इसी कारण अनेक ब्रहमचारी अपनी अपनी काली करतूतों को और तीव्र गति से बढ़ाने में निसंकोच रहते हैं।
गुरुवरो के कंधो का सहारा लेकर अपनी लालसा को अनजान देने में सदैव तत्पर रहते हैं फिर वह किसी भी तरह अपने अंजाम को क्रियांवित करते हैं सभी पूज्यनीय गुरु भगवंतो से अनुरोध की अपने संघ मैं ऐसे अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्तियों को जगह ना दे ।