इंदौर। मिशन २०२३ को लेकर भाजपा ने जहां संगठन स्तर पर अपनी चुनावी तैयारियों को शुरु कर दिया है तो दूसरी ओर संघ ने हर विधानसभा को लेकर अपना इनपुट भी दे दिया है। मध्यप्रदेश में चालीस फीसदी से अधिक मौजूदा विधायक चुनाव नहीं जीत पायेंगे उनकी स्थिति बेहद कमजोर है इसमे सिंधिया समर्थक कई मंत्री भी शामिल हैं। प्रदेश की २३० सीटों का संघ ने जो जमीनी स्तर पर फीडबैक भेजा है उसके अंदर डेंजर जोन में रखी गई सीटें २५ प्रतिशत तक हैं। इस बार उत्तरप्रदेश और गुजरात की तर्ज पर नई रणनीति बनाने में संघ जुटा है ताकि जमीनी आधार पर सरकार बनाने में दिक्कत नहीं हो।
इस साल मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के होने वाले चुनाव लेकर चुनावी रणनीति पर संघ के साथ सत्ता और संगठन के नेताओं ने मंथन किया और उसमे एक-एक विधानसभा सीट पर मौजूदा विधायकों की स्थिति पर चर्चा की। मध्यप्रदेश के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल ने बूथ स्तर तक प्रवास कर मैदानी स्थिति का आंकलन किया है वे लगभग सभी जिलों में दो दो बार अकेले घूम चुके है और मौजूदा स्थिति का आंकलन भी कर चुके है। सत्ता और संगठन स्तर पर जो सर्वे रिपोर्ट मिली है उससे संघ की रिपोर्ट कुछ अलग है। कर्नाटक में मई में होने वाले चुनाव के बाद मध्यप्रदेश पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
इस बार फैसले भोपाल के बजाए दिल्ली से होंगे। उत्तर प्रदेश और गुजरात की तरह चालीस प्रतिशत उम्मीदवारों का बदलाव होना तय है। इस बार टिकट बहुत ही सोच समझकर दिये जाएंगे। वहीं उम्र का मामला नहीं रहेगा। उम्मीदवार की जीत सर्वोपरि होगी। पर उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया जाएगा जो भाजपा की लहर में भी चुनाव हार गये थे। दूसरी ओर सौ से अधिक हारी हुई सीटों को लेकर विशेष कार्यक्रम बनाया गया है इसके लिए पूर्व संगठन मंत्रियों के साथ सांसदों को भी प्रभारी बनाया गया है।
Get real time updates directly on you device, subscribe now.