अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागर महाराज ने आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज के चरण पखार आजीवन शक्कर एव चटाई का किया त्याग
डोंगरगढ़ ! जैन धर्म के सबसे कम उम्र के तपस्वी सिंह निष्क्रिय व्रत करने वाले पूज्य अन्तर्मना महाराज का महा साधना 551वाँ दिन के पूर्ण हुआ ।
अन्तर्मना मुनि श्री 108 प्रसन्न सागर जी महामुनिराज 8महीना पर्वत राज पर मौन साधना और एकांत में रहते हुवे अपनी महासाधना ओर तीर्थराज पर पंचकल्याणक करते हुवे तीर्थराज से उदगाव महाराष्ट्र की ओर सतत मंगल विहार कर रहे है इसी कड़ी में इस सदी के महातपस्वी अन्तर्यामी भगवन हम सब की आराध्य संत शिरोमणि गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्या सागर जी महामुनिराज का दर्शन कर अन्तर्मना ने अपनी साधना को ओर मजबूत किया ।अन्तर्मना ने आचार्य भगवन से पहले भी कई नियम ग्रहण किये थे उसी कड़ी में आज आजीवन शक्कर ओर चटाई का नियम ग्रहण कर त्याग,तप और साधना को आगे बढ़ाते हुवे मोक्ष मार्ग को प्रदस्त किया।जब त्याग तपस्या की जीवंत मूर्तियों का एक साथ समागम होता है तो एक नया इतिहास लिख दिया जाता है और समाज और राष्ट्र को नई एक प्रेरणा देता है।
विशेषकर दिगंबर जैन संतो का महा समागम ऐसे ही पावन क्षण देखने को मिला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ की धरा पर जब पूज्य आचार्य श्री108 विद्यासागर महाराज की चरण वंदना हेतु इस सदी के उत्कृष्ट तप साधक अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ पर आए।
यह क्षण इतना दुर्लभ था कि जिन्होंने भी इन दृश्यों को देखा और जो श्रद्धालू वहां मौजूद रहे वह अपने आपको भाव विभोर होने से नहीं रोक पाए इन पावन क्षणों में अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागर महाराज ने विनय संपन्नता की भावना का एक उदाहरण दिया पूज्य महाराज श्री ने आचार्य श्री के चरणों का विनय भाव के साथ पाद प्रक्षालन किया। जब गुरु चरणों में उन्होंने नमोस्तु निवेदित किया तो वह भी एक अलौकिक प्रस्तुत कर रहा था।
आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर महाराज जो स्वयं तप, त्याग , साधना का जीता जागता उदाहरण है ।
मीडिया प्रभारी
राज कुमार अजमेरा
झुमरीतिलैया