नेतृत्व विहीन इंदौर जैन समाज गोमटगिरी पर असंवैधानिक हो रहे कब्जे पर मौन क्यों ..?
इंदौर!( देवपुरी वंदना ) नाम ,पद , प्रतिष्ठा मंच – माला आज जैन क्षत्रिय वीरो को कायरता के उस दौर में ले आई है जहां अपने, धर्म समाज, कुल परिवार, संस्कार संस्कृति पर हो रहे आघात को भी सहन कर अपने अहम व मान- सम्मान को बढ़ाने में लगा है ?
अभी विगत कई दिनों से गोमटगिरी प्रकरण से कोई अनजान नहीं है इंदौर ही नहीं पूरे देश के जैन समाज को मालूम है कि तीर्थ क्षेत्र गोमटगिरी के निर्माण में सिर्फ जैन समाज की ही भूमिका रही है । गोमटगिरी के निर्माण में श्रमण संस्कृति का आशीर्वाद के साथ अपने पूर्वजों ने अपनी आस्था ,विश्वास और श्रद्धा के बीच दान रुपी चंचल लक्ष्मी की उपयोगिता के मध्य अपनी जान की परवाह न करते हुए भी अपनी संस्कृति को अपने आने वाली पीढ़ी को धर्म, समाज, संस्कार और संस्कृति को सुरक्षित और आगे बढ़ाने की भावना से प्रकृति के नियम अनुरूप अपने कुल वीरों को सौंप गए ।
मगर कुल वीरों की बढ़ती महत्वाकांक्षा की उड़ान के चलते मौन प्रवृत्ति उदासीनता अनदेखा पन व असंगठन आज हमारी धरोहर पर अनैतिक – असंवैधानिक कब्जे धारियों के साथ भी समझौता करने के लिए मजबूर है ?
आज अगर हमने उनके साथ उनकी मनमर्जी के मध्य
समझौता कर लिया तो समझ लेना अपनी प्राचीन धरोहर जैन तीर्थ क्षैत्र को हम अपने हाथों से ही देखते देखते गवा देंगे इसका प्रत्यक्ष उदाहरण गिरनार जी से कोई अनभिज्ञ नहीं है क्योंकि आज जो भी पदैन पदाधिकारी अपनी महत्वाकांक्षा से हटकर नहीं सोच सकते या वह सिर्फ अवसरवादी या कहें तो जब उनके हाथों से बात निकल ती हुई नजर आए तब वह जैन समाज को संगठित होने का आह्वान करें और वह धर्म समाज पर हो रहे आघात को बचाने के प्रयास खोजने का सिलसिला चालू करें ।
क्योंकि जब अनुभवी समाज सेवकों के पूर्व के अनुभव से जागरूकता व सचेत रहने की दी गई जानकारी को भी अपनी हठधर्मिता के रहते अनसुना या अनदेखा कर आज आई यह नोबत की जिम्मेदारी से भी पल्ला – झाड़ लेते हैं ।
फिर भी जो समाज धर्म पर
आई विपदा को अपनी सहभागिता निभाते हुए साधर्मी बंधुओं जो कि तन- मन- धन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी धरोहर को बचाने मे लगा है या लग रहा है उसके भी मन की बात शांतिपूर्वक न सुनकर सिर्फ हवाबाजों के हाथों में मंच व माइक देकर पदैन पदाधिकारी अपने कार्यों की झूठी प्रशंसा सुनकर मंत्रमुग्ध या 2 मिनट की हंसी चेहरे पर ला कर खुश हो जाता है क्योंकि सभी को विदित है जिन के कारण आज इंदौर जैन समाज में विघटन हुआ है या हो रहा है वही मंच पर माइक से अब जैन समाज को संगठित होने का पाठ पढ़ा रहे हैं इस कारण जैन समाज का बुद्धिजीवी वर्ग मौन रहने की आदत बना चुका है ।
अब इंतजार इस बात का है कि नेतृत्व विहिन इंदौर जैन समाज अपनी आन -बान -शान को बरकरार रखते हुए । अपनी धर्म संस्कृति का परचम लहराने में कितना कामयाब होता है ।