इंदौर में 16 जून को आचार्य श्री विहर्ष सागर जी का ससंघ मंगल प्रवेश

इंदौर ! ( देवपुरी वंदना ) श्रमण संस्कृति के सरताज 108 गणाचार्य विराग सागर जी के परम प्रभाव शिष्य दिल्ली की राजधानी में अपने तप, त्याग, की कड़ी तपस्या का संदेश को क्रियान्वयन करते हुए और श्रावक – श्राविकाओ को अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए सही राह से आगे बढ़ते रहने का संदेश को अपने मुखारविंद से धर्म ध्वजा की पताका लहराते हुए मध्य प्रदेश की धर्म ,समाज ,संस्कार, संस्कृति,रक्षक व जैन समाज का हृदय स्थल औद्योगिक , स्वच्छ शहर इंदौर में आगामी 16 जून 2023 को राष्ट्र संत आचार्य श्री 108 विहर्ष सागर जी ससंघ का भव्य मंगल प्रवेश होने जा रहा है।
आचार्य श्री दिल्ली के बाद इंदौर जैन समाज के श्रावक – श्राविकाओ के पुण्योदय के चलते चातुर्मास ( वर्षा योग ) के हर क्षण को सकारात्मक ,भावनात्मक, धार्मिक , सामाजिक,शैक्षणिक व मानव सेवा को समर्पित कर मानवीय जीवन को श्रेष्ठतम बनाने वाले अपने विचारों से क्रियाशील रहने वाली योजनाओं से अवगत कराने का प्रण लेकर भोपाल से बिहार करते हुए इंदौर शहर में पधार रहे हैं।
आचार्य श्री का जीवन वृतांत
नाम (दीक्षा से पहले) – विनोद कुमार जैन (बंटी भैया)
• माता का नाम – श्रीमती । आशा देवी जैन
पिता का नाम – स्वर्गीय श्री दीपचंद जैन
• जन्म स्थान – बीना, मप्र
• जन्म तिथि 7 मार्च 1970
शिक्षा – 12वीं
ऐलक दीक्षा तिथि – 23 फरवरी, 1996
ऐलक दीक्षा स्थान – देवेंद्रनगर (पन्ना), एमपी ऐलक दीक्षा गुरु आचार्य श्री 108 विरागसागर जी – महाराज
मुनि दीक्षा तिथि – 14 दिसम्बर, 1998
• मुनि दीक्षा स्थान – वरसुरजी, भिंड के पास, मध्य प्रदेश
• मुनि दीक्षा गुरु आचार्य श्री 108 विरागसागर जी
7 मार्च 1970 को बीना में एक दिव्य आत्मा का जन्म हुआ। मित्र और परिवार के सदस्य उन्हें बंटी भइया कहते थे। कम उम्र से ही, उन्होंने बड़ी करुणा और एक प्राकृतिक नेता के गुणों का प्रदर्शन किया। मुनिश्री तीक्ष्ण बुद्धि के हैं। बचपन में वे कुख्यात थे और उनके बचपन और किशोरावस्था के ऐसे कई रोचक और मंत्रमुग्ध कर देने वाले किस्से हैं।
21 वर्ष की अल्पायु में जब बंटी भैया “संत श्री 108 आचार्य श्री विरागसागर जी महाराज” के संपर्क में आए तो उनकी सत्य की खोज तेज हो गई। वह भौतिकवादी दुनिया से अलग हो रहा था जो अस्थिर सुख, दुख और शिकायतों के अलावा कुछ नहीं दे सकता।इन सभी घटनाओं ने उनके जीवन के दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव लाया और किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह शरारती बच्चा सबसे अधिक पूज्य और महान जैन संत बन जाएगा। गुरुजी प्रवचनों के माध्यम से अपने महान आध्यात्मिक विचारों का सार फैला रहे हैं। हर कोई आसानी से समझ सकता है। मुनिश्री प्रवचन चाहे वह जैन हों या गैर जैन। कई लोगों के जीवन को बदलने का श्रेय मुनिश्री को जाता है, उन्होंने हमें “जियो और जीना दो” के आदर्श वाक्य के साथ शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित और सिखाया है।
दिगंबर जैन संत बनने की अपनी यात्रा के भ्रामचारी दिनों में, वे सभी के पसंदीदा थे। उन्हें अध्यात्म के प्रति बहुत लगाव था। उनका अपने जीवन में पंच महाव्रत को प्राप्त करने का एक मजबूत उद्देश्य था । उनके ब्रह्मचर्य के दिनों में सभी भक्त उन्हें चाय वाले भैयाजी के रूप में बुलाते थे। इलाक बनने से ठीक पहले (जैन संत बनने की ओर अगला कदम) उन्होंने अन्य ब्रह्मचारी भैया के साथ शिखर जी की वंदना की
फिर उन्होंने अपने कदम ऐलक अवस्था में रखे। ऐलक वे हैं जो अपनी कमर के चारों ओर एक ही कपड़ा (लंगोटी) पहनते थे। उनके ऐलक दिनों के दौरान भक्त अपना अधिकतम समय उनके साथ बिताते थे क्योंकि वह सभी को उपस्थित और सुनते थे। बड़ी विनम्रता के साथ। जमीन से जुड़ी ये शख्सियत उन्हें सबका चहेता बनाती है।
गुरुदेव के चरणों में नमोस्तु ,नमोस्तु ,नमोस्तु,

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