संपादकीय: धर्मांतरण पर चिंता नहीं, चिंतन की आवश्यकता :: राजेंद्र जैन सनावद

 

इन दिनों इलेक्ट्रानिक मीडिया पर एक मुद्दा छाया हुआ है वह धर्मान्तरण से संबंधित है । पहले हिन्दूओं को ईसाई धर्म में इस्लाम में जाते देखा, उन सबके बीच द केरला स्टोरी में हिन्दू लड़कियों को इस्लाम (मुस्लिम) बनते देखा अभी हाल ही में गाजियाबाद व दमोह की घटनाओं में जैन धर्मावलम्बियों को इस्लाम धर्म कबूल करते व मुस्लिम होते देखा गया । जिससे हम सब जैन धर्म के अनुयायी चिंता में आ गए व व्हाटसअप वीरों की चिंता में बड़े-बड़े सुझाव देखने सुनने को मिल रहे हैं । आजकल हमारी चिंता व्हाट्सएप, फेसबुक आदि इलेक्ट्रानिक मीडिया पर ही दिखाई दे रही हैं, प्रेक्टिकली धरातल पर हम इन समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं देते व एक समस्या आने के बाद अपनी आक्रोश पूर्ण प्रतिक्रियाएं देने के बाद हम अगली समस्या आते ही पिछली को भूल जाते है। यह हमारा नहीं इस इलेक्ट्रानिक मीडिया का दोष है जो हमारे दिमाग से वहीं सोच जागृत कर देता है जो वह चाहता है | न्यूज चैनल, व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि सब जगह हमारा दिमाग इन दिनों गिरवी रखा हुआ दिखाई देता है । पिछले दिनों समलैंगिकता का मुद्दा भी खूब चला, पहले सम्मेदशिखर, फिर गोम्मटगिरि । अभी धर्मान्तरण का मुद्दा गर्म है लेकिन तत्कालिक प्रतिक्रियाओं के बाद हम कभी एक निर्णय पर नहीं पहुँचे है न ही कोई मामला तय हुआ है कि आखिर हमें करना क्या है? समाज के लिए क्या दिशा-निर्देश है । यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि हम चिंता तो खूब कर रहे है, चिंतन के मामले में हम चेतना शून्य होते जा रहे हैं । हमारा नेतृत्व कर्ता ही गायब है या संस्थाओं की भीड़ में हम सब कि निष्टाएं अलग-अलग कभी संत में कभी पंथ में, कभी ग्रंथ में बटी हुई दिखाई देती है जो बहुत ही चिंतनीय है ।
‘चिंता’ चिता को जला देती है, चिंतन हमारी चेतना शक्ति को जागृत कर देता है जो हमें निष्कर्ष तक पहुँचा देता है यह सब इसलिए लिख रहा हूँ कि कुछ लोग तो टीआरपी के चक्कर में अपने बयान अपनी प्रतिक्रिया इतनी तेजी से सोशल मीडिया पर पोस्ट करते है जैसे सारी समस्याओं का हल यही जानते हैं यूट्यूब पर उत्साहीजन इसे इतना सनसनीखेज बना देते हैं कि ऐसा लगता है कि हमारा धर्म खतरे में आ गया और कुछ उत्साहीजन तीव्रता से केलकुलेट कर के बता देते है कि अकबर के जमाने में हम …… करोड़ थे। फिर आज हम अंगुलियों पर गिनने लायक बचे है फिर यह सब चला तो सन् इतने इतने में हम तो बचेंगे ही नहीं, फिर हमारे मंदिरों का क्या होगा हमारा धर्म कैसे बचेगा आदि अनेकों चिंताएं हमें दिखाई देती हैं फिर हमारे साधुवर्ग के प्रतिक्रियात्मक विडियो आ जाते. है । फिर अनूठे अनूठे सुझाव आते है कि हम सबको मिलकर जनसंख्या बढ़ाना चाहिये, पार्टी बनाना चाहिये, हथियार चलाना चाहिये। फोड़ डालेंगे, तोड़ डालेंगे, सरकार बदल देगें, कोर्ट चले जाएंगे न आने क्या क्या ?
जैन धर्म, जैन समाज अल्पसंख्यक है हम सम्पूर्ण विश्व में अपनी पहचान अलग रखते हैं इन सबमें हमारी अपनी विशेषताएँ है, आज जब हवाई जहान में बड़े होटल में जैन फूड मिलता है सम्पूर्ण विश्व में जैन जीवन पद्धति पर चर्चा होती है, अहिंसा पर हम सर्वश्रेष्ट होते है, भगवान ऋषभदेव से लेकर तीर्थंकर महावीर तक कर्म सिद्धांत की चर्चा है, जीवन कैसे जीना है । इस पर जितना साहित्य विज्ञान की कसौटी पर खरा हमारा है, उतना किसी का नहीं है, सम्पूर्ण विश्व जैन दर्शन की ओर दृष्टि किए हुए है और हम क्या का रहे हैं इस पर हमारा ध्यान ही नही हमें चिंतन करना होगा, चिंता नहीं क्योंकि चितंन हल देता चिंता परेशान करती है। हमारे संत भी कहते है कि चिंता चिता को जलवा देती है इसलिए बैठो चिंतन करो आपस में संवाद करो, पंथ की लकीरों पर नहीं पथ पर चलो। बहुत दिनो से लग रहा था कि अपने लेखकीय दायित्व को पूरा कर कुछ लिखना चाहिए जो मेरे मन का चिंतन है जो आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं –
1. बच्चे के जन्म के बाद उसके जैनत्व के संस्कार देने के साथ घर पर भी जैनियो जैसा आचरण रखें।
2. आठ वर्ष का होने के बाद हम बच्चे को जैनत्व के संस्कार महोत्सव का आयोजन करें । उसे सामूहिक रूप से मंदिर ले जाने का आयोजन करें ।
3. उसे जहाँ भी पढ़ाये नर्सरी कक्षा से ही शाम को बच्चे के साथ आधा घण्टा उसे णमोकार मंत्र भक्तामर स्त्रोत, तीर्थंकरों के नाम, पांच पाप, कषाय, द्रव्य, तत्व आदि धार्मिक बातें उससे बुलवाये भले ही उसे समझ न आए,
जैन गौरव से अवगत कराये।
4. उसे धन कमाने की मशीन नहीं बनाये।
5. घूमने के लिए पर्यटन स्थलों पर नहीं अपने तीथों पर ले जाए प्रातः काल अभिषेक पूजा अवश्य करें।
6. घर पर भोजन पर चर्चा अवश्य करें। कम से कम एक समय साथ में भोजन करें । 7. यदि हमारा घर गाँव में है और हम बड़े शहर में रहते हैं तो ग्राम में कुछ दिनों के लिए अवश्य जाए।
समाज से मेरा आग्रह है कि हम
1. अपने ग्राम / नगर में बैठकर अपने धर्म अनुरूप कुछ नियम अवश्य बनाये ।
2. पाठशाला प्रतिदिन हो तो बहुत अच्छा अन्यथा सप्ताह में एक दिन जैन पाठशाला अवश्य चलाये इस हेतु पाठशालाओं को अत्याधुनिक बना दें, बैठने की व्यवस्था आदि उत्तम रखे।
3. मंदिरों में जैन गौरव बढ़ाने वाली जानकारियों अवश्य लगाएँ।
4. बच्चों को प्रोत्साहित करने का अवसर न छोड़े उन्हें सम्मानित करते रहे, उन्हें तीर्थों का भ्रमण कराऐ
5. सामुहिक भोजन में शुद्धता व समय का ध्यान रखें ।
6. रात्रि भोजन निषेध हेतु स्थानीय स्तर पर नियम बनाएं। अर्थ सम्पन्न समाजजन दिन के आयोजन पर दृढ़ रहे ।
राष्ट्रीय स्तर पर मेरा संस्थाओं व साधुओं से आग्रह है कि
1. जैन धर्म को बचाने की कार्य योजनाएं बनाये।
2. सबसे पहले हमारे खर्चीले आयोजन विशेषकर भव्य पंच कल्याणको आदि को पाँच वर्ष के लिए विराम लगा दे.
3. नये मंदिर जो बन रहे हैं उन मंदिरों को पहले पूर्ण कराये, पाँच वर्ष तक कोई नवीन निर्माण न हो इस पर हमारे संतो के साथ मिलकर राष्ट्रीय सहमति बनाये ।
4. हमारे प्राचीन संस्थान गुरुकुत, विद्यालय आदि जो बंद हो चुके है उनके बंद होने के कारणों पर विचार करें, उन्हें पुनः प्रारम्भ करने का प्रयास करे।
5. पाठशालाओं के संचालन हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना बनकर उन्हें संचालित करने हेतु अनुदान प्रदान करें,
पाठशालाएं होगी तो ही मंदिर आबाद रहेंगे वर्ना संस्कार भी समाप्त और मंदिर भी विरान होंगे।
6. अलग-अलग संस्थाएँ अलग-अलग कार्य आपसी सहमति से अपना ले और उनकी त्रैमासिक, वार्षिक समीक्षा कर कमजोरी पर चिंतन करते हुए सुधार के उपायों पर चर्चा हो प्रोफेशनल तरीके से कार्य हो ।
7. जैन धर्म के आर्थिक सम्पन्न व आर्थिक विपन्न वर्ग की सूची हमारे पास हो राज्य स्तर के आंकड़े हो । आर्थिक विपन्नों को मुख्य धारा में कैसे लाए । आर्थिक सम्पन्न वर्ग को उन्हें सहयोग हेतु प्रोत्साहित कर राज्यवार जिम्मेदारी सुनिश्चित की जाए ।
8. चिंतन बैठक हो उनमें निर्णय हो पहले योजना बने उस पर क्रियान्वयन हो व्हाटसएप के आधार पर आंदोलन, प्रतिक्रिया नहीं ठोस तथ्यों के साथ कार्य हो
9. धर्मान्तरण क्यों, कैसे, कब किस कारण हुआ उस पर ध्यान रखकर कार्य करें।
10. हमारे धार्मिक तीर्थों पर हो रहे अतिक्रमण पर हमारे पास पहले कागजी कार्यवाही जैसे जमीन का चिन्हांकन, रजिस्ट्रेशन आदि की कार्यवाही पूर्ण हो इस हेतु या टीम संवेदनशील जगहों का चयन कर उन्हें प्राथमिकता से पूर्ण करे |
11. पाँच वर्षो में हम एक जैन विश्वविद्यालय खड़ा करे जिसमें मेडिकल कालेज से लेकर सभी स्तर की शिक्षा हो। सबको यह समझाने में हम कामयाब हो, जब जैन विश्वविद्यालय बन जाएगा तो ही वास्तविक पंचकल्याणक होगा, हम जैनों का वास्तविक कल्याण कर सकेंगे और धर्मान्तरण को रोकने में कामयाब भीहोंगे ।
12. हमारे जैन हॉस्टल विद्यालय संचालित है उनमें भारी-भरकम फीस ली जा रही है, समाज के लिए, आर्थिक विपन्न वर्ग के लिए आरक्षण व निःशुल्क प्रवेश की व्यवस्था करें ।
13. जैन श्रावकाचार का पालन करने वाले बच्चों श्रावकों का सम्मान सुनिश्चित करें ।
14. विशेषकर हमारे पिछड़े इलाकों को चिन्हांकित करें । वहां के लिए कार्ययोजना बनायें ।
मुझे प्रसन्नता है कि हमारी समाज ने अनेको वर्षों पहले चिंतन किया था कि हमारे बच्चे प्रशासनिक सेवाओं में जाना चाहिये। आज हमारी अनेको संस्थाएं इसमें काम कर परिणाम दे रही है। जनसंख्या के मुकाबले हमारे आईएएस बड़ी संख्या में निकल रहे है । अभी हाल में आए म.प्र. लोकसेवा आयोग के परीक्षा परिणामों में अनेकों विद्यार्थियों ने डिप्टी कलेक्टर जैसे अनेक पदों पर चयनित होकर अपना वर्चस्व स्थापित किया है, यह प्रसन्नता की बात है। हमें गर्व है कि हम समाज के लिए चिंतित है, अब यह चिंता केवल चिंतन में बदलना है और भी बहुत बाते है जिन्हें आगामी समय में लिखेंगे ।
हम ‘चिंता’ से ‘चिंतन की यात्रा पर निकले हल निकाले, इस लेख में जो अच्छा नहीं लगा हो उसे अपने चिंतन से हटा दें। कुछ लोग समाधान में समस्या ढूंढते है, हमें समस्या का समाधान ढूंढना हैं । आइये सब मिलकर हल ढूंढे ।

गुरुमंत्र –
“हम जो है वही बने रहकर, वह नहीं बन सकते जो कि हम बनना चाहते है ।”

राजेन्द्र जैन ‘महावीर
217, सोलंकी कॉलोनी, सनावद जिला खरगोन (म.प्र.) 451 111 मो. 094074-92577
[email protected]

 

 

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