हर जैन वर्ष में एक बार मंदिर दिवस अवश्य मनाये :: — मुनि श्री पुंगव सुधासागरजी
आगरा ! (मनोज नायक) जैन श्रावकों में परम्परा है कि जन्म के 45 दिन पूर्ण होने पर बच्चे को बडी धूमधाम से मन्दिर ले जाते हैं और प्रथम जिनेन्द्र दर्शन कराकर नवकार मन्त्र सुनाकर, विधिवत जैन बनाया जाता है । शास्त्रो में इसे सम्यक्तव लाभ क्रिया कहते हैं । प्रथम देव दर्शन स्मृति को प्रत्येक वर्ष इसी दिन सम्यक वर्धनी लाभ क्रिया दिवस के फलस्वरूप टेंपल डे के रूप में मनाना चाहिए । यह उद्गार पूज्य गुरुवर निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री 108 सुधासागर जी महाराज ने एम. डी. जैन कॉलेज आगरा में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये ! पूज्य गुरुदेव ने आगे कहा कि पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होकर आप अनेकों डे मनाते हैं । लेकिन जिस दिन को याद रखना चाहिए या मनाना चाहिए उसे भूल जाते हैं । प्रथम देव दर्शन की स्म्रृती हर वर्ष इसी दिन सम्यक्तव वर्धनी लाभ क्रिया दिवस के रूप मे मनाते हुये Temple day के रूप मनाना चाहीये।उन्होने कहा कि बालक के आठ वर्ष पूर्ण होने पर पुन: इसी दिवस सम्यक्तव वर्धनी लाभ क्रीया मनाते हुये देव शास्त्र गुरु की शरण ले जाकर, अभिषेक, पूजन आदि शुभ क्रिया करनी चाहीये और मंगलाष्टक आदि पड़कर बालक के ऊपर पुष्प क्षेपण करना चाहीये । इस दिन सभी परिजनों, इष्टमित्रो एवम रिश्तेदारों को भी अपनी खुशियों में सम्मिलित करना चाहिए । उन्होने आगे कहा कि जन्म दिन, वैवाहिक दिवस आदि तो सभी मनाते हैं । लेकिन अपने जीवन का कोई भी दिन धर्म दिवस के रूप मे नहीं मनाते । अत: यह दिवस टेम्पल डे के नाम से हर वर्ष मनाना चाहीये ।
उन्होने भारत की सम्पूर्ण जैन समाज को आव्हान करते हुए कहा कि चाहे अपने प्रथम देव दर्शन की तिथी याद हो न हो, परन्तु उसे सबको मनाना चाहिए उसके लिए उन्होने सीधा सादा फार्मूला बताते हुये कहा कि जिसका जो भी जन्म दिवस की तारिख है, उससे 45 दिन आगे का दिवस Temple day माननकर धार्मिक विधी से मनाना चाहिए, चाहे कितनी भी उम्र अब क्यो न हो गयी हो ।