राजस्थान राज्य श्रमण संस्कृति बोर्ड का अध्यक्ष कौन….?
जयपुर ! ( देवपुरी वंदना ) पिछले कई वर्षों से जैन संस्कार, संस्कृति , पर आक्रमण होते आ रहे हैं इसी के चलते जैन सैलाब सड़कों पर उतर कर अपनी आस्था ,श्रद्धा , भक्ति के साथ पुरानी धरोहर तीर्थ क्षैत्र , श्रमण संस्कृति के साथ अपने बंधुओं के साथ हो रहे असंवैधानिक कार्यों से बचाने शासन – प्रशासन से विगत दो वर्षों से मांग कर रहा था बड़ी कोशिशों के बाद मे जिसकी सुनवाई पिछले दो-तीन दिनों में हुई अब बात यह आ रही कि दो मतों से जैन धर्म, समाज को माने वाले मत भेद के साथ -साथ मन भेद भी रखते हैं मगर बोर्ड में नेतृत्व करने के लिए करने एक व्यक्तित्व ही रहेगा !
अब वह कौन..? केसा होगा..?नई सोच के साथ सबको साथ लेकर आगे बढ़ने वाले सशक्त हाथों में यह जिम्मेदारी होनी चाहिए। नेतृत्वकर्ता को ‘स्व’ को भूलकर ‘पर’ को अपनाना होगा तभी वह हर समाज-बंधु से जुड़ सकता है। जब से डिजिटल युग का आरंभ हुआ है, समाज के हर बंधु से संपर्क रखना भी बहुत आसान हो गया है। बरसों से कुर्सियों पर विराजे समाज नेताओं को युवा-वर्ग को आगे बढ़ाकर उनका मार्गदर्शक बनना चाहिये। नई सोच और विचारधारा के युवाओं को अपने अनुभवों से सिंचित कर पनपने का अवसर देना होगा। समाज के उच्च-पदों पर पैसे और शक्ति के बल पर अपना हक ना जमाएं, तो उनका मान-सम्मान दिल से होगा वरना तो उनके आस-पास चमचागिरी का बोलबाला रहेगा। वर्षों से सामाजिक कार्यभार और पदों को संभालने वाले नेतृत्वकर्ता को अपनी पारखी आंखों से भावी युवा सामाजिक कार्यकर्ताओं को परख कर उन्हें जिम्मेदारियां सौंपनी चाहिए। परिवर्तन संसार का नियम है और हमारी समझदारी होगी कि हम इस बात को स्वीकार लें। समाज के नियम और कानूनों में निरंतर परिवर्तन कर एक सजीवता बनाए रखें। कुप्रथाओं का सहयोग नहीं विरोध करें। नेतृत्वकर्ता को समाज-बंधुओं के वैचारिक मतभेदों को मनभेद नहीं बनने दें वरना समाज-बंधुओं में आपसी गुटबाजी को बढ़ावा मिलेगा। जो भी सामाजिक आचार-संहिता बनाये जाए उस पर पदाधिकारी सदैव खरे उतरें क्योंकि उच्च-पदों का तो पूरा समाज अनुसरण करता है। शासन-प्रशासन द्वारा निकाले गए आदेश अनुरूप अध्यक्ष का 3 वर्षीय कार्यकाल रहेगा यह बहुत अच्छा निर्णय है वरना समाज में अध्यक्ष बना मतलब जब तक वह संसार नहीं छोड़ता तब तक कुर्सी नहीं छोड़ता है । राज्य सरकार की ओर से गठित राजस्थान राज्य श्रमण संस्कृति बोर्ड में अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी केवल जैन समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति सदस्य होंगे। जो इनके सामाजिक एवं धार्मिक क्रियाकलापों से संबंधित समस्याओं की जानकारी रखते हों सदस्यों का मनोनयन भी ऐसे निष्ठावान व्यक्तियों में से किया जाएगा जिन्होंने समाज कल्याण एवं उत्थान के लिए कार्य किया हो ना कि विघटन का कार्य इस बोर्ड में गैर सरकारी सदस्य होगे 5 जिनमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन सदस्य होंगे इनके अलावा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के उपनिदेशक पदैन सचिव होंगे। साथ ही कई विभागों के सचिव या आयुक्त अथवा निदेशक सरकारी बोर्ड में गैर सरकारी सदस्य के रूप में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष 3 वर्ष के लिए नियुक्त किए जाएंगे। यदि राज्य सरकार उचित समझेगी तो पूर्व में भी उन्हें पद से हटाया जा सकेगा। इसके अलावा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सदस्य सरकार को त्यागपत्र देकर भी पद से हट सकेंगे। किसी भी आपराधिक व नैतिक आचरण के दोषी पाए जाने पर कार्य करने से मना करने अथवा कार्य करने के अयोग्य होने पर पद का दुरुपयोग किए जाने की स्थिति में सरकार इन्हें पदमुक्त कर सकेगी।
बोर्ड के सदस्य का पद रिक्त होने पर राज्य सरकार उन्हें भर सकेगी। बोर्ड के कार्य संचालन के लिए नए पदो का सृजन किया जाएंगे। जैन समाज की योजनाओं व सामाजिक-आर्थिक उत्थान व शैक्षणिक विकास के लिए किए जाने वाले कार्यों की समीक्षा हर 6 माह में बोर्ड करेगा। अब देखना है राजस्थान में मनभेद वाले जैन समाज का ऊंट अब किस करवट बैठता है!