अब उर्जयन्त गिरनार को जन आंदोलन की आवश्यकता है…
अहमदाबाद ! हम सब जानते हैं कि 22 वें जैन तीर्थंकर भगवान नेमीनाथजी जूनागढ़ (गुजरात) के उर्जयन्त गिरनार की पांचवीं टोंक से निर्वाण को प्राप्त हुए थे। दीक्षा, तप एवं केवलज्ञान भी इसी पर्वत से प्राप्त हुआ था। इसके अलावा प्रथम टोंक पर चौबीस तीर्थंकरों के चरण हैं। दूसरी टोंक पर भगवान अनिरुद्ध कुमार के चरण, तीसरी टोंक पर भगवान शंभुकुमार के चरण, चौथी टोंक पर भगवान प्रद्युम्न कुमार के चरण चिह्न स्थापित हैं जो यहीं से मोक्ष गये थे। भगवान नेमीनाथ श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे जो पौराणिक एवं ऐतिहासिक महापुरुष हैं।
ऐसे ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध जैन सिद्ध स्थलों को विवादास्पद बनाकर अतिक्रमण करने का लम्बे समय से सुनियोजित दौर चल रहा है, उर्जयन्त गिरनार भी इसका शिकार बना। काफी संघर्ष किया जा रहा है। गुजरात हाईकोर्ट का स्पष्ट अंतरिम निर्णय हमारे पक्ष में होने पर भी उसकी क्रियान्विति प्रशासन नहीं करवा सका क्योंकि राजनैतिक इच्छा शक्ति सकारात्मक नहीं रहीं। श्री बंडीलाल कारखाना जूनागढ, अखिल भारतीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी ने सन् 2004 में रिट याचिका दायर की एवं तत्काल स्थगन आदेश मिला कि यथास्थिति कायम रखी जाए। उसके बाद 17.2.2005 को अंतरिम आदेश पारित हो गया तथा सभी यात्रियों व ट्यूरिस्टों की सुरक्षा व्यवस्था हेतु चौथी टोंक के बाद व पांचवी टोंक के बीच पुलिस चौकी स्थापित की जाए, लेकिन आज तक चौकी नहीं बनाई गई है और यात्रियों की शिकायतों को दर्ज करने की व्यवस्था नहीं है। तलहटी में धर्मशाला में यात्रियों ने जो शिकायत दर्ज कराई है, वे जस की तस पड़ी है। उन पर कोई कार्यवाही नही हुई जिससे सरकार का कहना है कि हमारे पास कोई शिकायत दर्ज नहीं है।
खिल्लीमल जैन एडवोकेट अलवर – श्री सुभाषचन्द्र जैन ग्वालियर ने संयुक्त रूप से जूनागढ सिविल कोर्ट में केश दायर किया था। केश चल रहे हैं। परन्तु आज आवश्यकता है जनान्दोलन की जो गिरनार के साथ हो अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज बुलन्द कर सके। इस संबंध में कुछ कार्य समाज द्वारा अविलंब किये जाने चाहिए –
1. यह भ्रांति दूर होना चाहिए कि गिरनार हमारे हाथ से चला गया है। गिरनार हमारा था, है और होकर रहेगा। जब राम मन्दिर के लिए 5 सौ साल की लडाई लड़ी जा सकती है तो गिरनार के लिए जैन समाज 50-60 वर्ष की लडाई नहीं लड सकता है? अवश्य लडेगा। साधु सन्तों को अपने प्रवचनों के माध्यम से भी इस भ्रांति को दूर करना चाहिए।
2. पूरे भारत के जैन मन्दिरों, तीर्थक्षेत्रों, संस्थानों में पांचवी टोंक का पुराना पोज एवं उर्जयन्त गिरनार से भगवान नेमीनाथ मोक्ष पधारे इस प्रकार का एक पट्ट अवश्य लगाना चाहिए ताकि सामान्य लोग भी यथार्थ से अवगत रहें।
3. भगवान नेमीनाथ की पूजन, स्तुति, आरती, चालीसा, अर्घ आदि में गिरनार की पांचवीं टोंक उर्जयन्त पर्वत से मोक्ष पधारे का उल्लेख अवश्य होना चाहिए। दीक्षा, तप एवं केवलज्ञान स्थली भी उर्जयन्त गिरनार रहा है।
4. उर्जयन्त गिरनार की पारिवारिक, सामूहिक यात्रायें अधिक से अधिक होनी चाहिए। यात्रा से पूर्व जूनागढ एसपी, स्थानीय थाना एवं टोंक दो पर स्थित पुलिस चौकी में लिखित सूचना अवश्य देवें कि आप कब और कितने लोग पर्वत पर यात्रा के लिए चढ़ रहे हैं। मौन से यात्रा करें। विवाद हो ऐसी प्रवृत्ति से बचे। मुनि श्री दर्शन सागरजी ने 1015 वंदना की, वह भी मौन पूर्वक। जो अभी समवशरण मंदिर में विराजमान हैं।
दिनांक 1.1.2013 को मुनि श्री प्रबल सागर जी महाराज पर चाकू से प्राणघातक हमला किया गया था और जैन यात्रियों के साथ जो भी दुर्व्यवहार किया जाता है, वह जैन समाज में आतंक व भय की स्थिति पैदा करने के लिए है। जिससे हमें दूर होना चाहिए तथा अभय तरीके से मौनपूर्वक व शांतिपूर्वक वंदना करनी चाहिए।
गिरनार की पांचवी टोंक के संबंध में सन् 1874- 75 में प्रख्यात आर्कियोलॉजिस्ट जेम्स वर्गीज ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि वहां पर भगवान नेमिनाथ के चरण बने हुए हैं और दीवार में एक मूर्ति भी उकेरी हुई है तथा वहां पर एक बड़ा घंटा लटका हुआ है और इस स्थान का संचालन 1 नग्न साधु करता है।
इसके अलावा बाबू ज्ञानचंद जैन ने लाहौर से एक जैन तीर्थ यात्रा नामक पुस्तक प्रकाशित की है जिसमें पांचवी टोंक सहित गिरनार जी यात्रा का संपूर्ण विवरण है।
सन 1902 में श्री बंडीलाल जी द्वारा पांचवी चौक की छतरी की मरम्मत हेतु तत्कालीन शासक से अनुमति मांगी थी और वह अनुमति प्रदान की गई।
इसी प्रकार 1907 में भी छतरी छात्रिग्रस्त होने पर उसका जीर्णोद्धार कराया गया।
श्री बंडीलाल कारखाना ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन में गिरनार पर्वत की सभी टोंक का पूर्ण विवरण है और रजिस्ट्रेशन से पूर्व सम्यक रूप से जांच करके ट्रस्ट बंबई पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन किया गया है।
इस प्रकार 5वीं टोंक के संबंध में हमारे पास समुचित साक्ष्य उपलब्ध है, लेकिन 2004 में वहां पर अतिक्रमण करके दत्तात्रेय की मूर्ति स्थापित की गई है जो पूर्ण अवैध है और जैन समाज के हितों एवं भावनाओं के खिलाफ है।
जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है और उसकी संपत्ति एवं संस्कृति की रक्षा करना संवैधानिक रूप से सभी अधिकारियों एवं समाज जनों का दायित्व है।
अभी जबलपुर से 150 लोगों का ग्रुप यात्रा हेतु जा रहा है। इसी प्रकार से स्थान स्थान से सामूहिक यात्रा का क्रम बना रहे इस संबंध में साधु संतों के आह्वान की आवश्यकता है।
सारांश यह है कि कोर्ट कचहरी का काम संस्थायें कर रहीं हैं लेकिन आज गिरनार को व्यापक जनांदोलन की आवश्यकता है। जन आंदोलन का असर सम्मेद शिखरजी, सल्लेखना, मुनि निर्मम हत्या के समय देख लिया है। संजय जी दिल्ली जैसे जनांदोलन कर्ताओं की आवश्यकता है।
अजय जैन ( मिल्टन )✍🏻
अहमदाबाद गुजरात