जैन समाज के लिए काली दीपावली
इंदौर ! ( देवपुरी वंदना ) गिरनार तीर्थ बचाने भारत देश में विराजमान सामग्र श्रमण संस्कृति दिन का करेंगे अनशन गुजरात स्थित दिगम्बर जैन तीर्थ गिरनार बचाने के लिए दीपावली के दिन देशभर के सभी दिगम्बर जैन मुनि आर्यिकाएं अन्न- जल का त्याग सामाजिक सद्भाव के लिए प्रार्थना करेंगे। यह घोषणा दिल्ली में चातुर्मास कर रहे दिगम्बर जैन आचार्य श्री 108 सुनीलसागर जी महाराज ने की है। सभी को विदित है कि गुजरात जूनागढ जिले के गिरनार पर्वत की पांचवीं टोंक से जैन धर्म के 22 वें तीर्थंकर नेमीनाथ भगवान साधना कर मोक्ष गये हैं। सैकड़ों वर्षों से यह पर्वत जैन धर्म के लिए आस्था का केन्द्र हैं। कुछ वर्षों से इस पर्वत पर दत्तात्रेय को मानने वालों ने न केवल कब्जा कर लिया है, बल्कि नेमीनाथ भगवान के चरण चिन्हों को भी अपने कब्जे में ले लिया है। इस कारण यहां लगातार टकराव की स्थिति बनी हुई है। विगत 28 अक्टूबर को भाजपा के पूर्व सांसद व दत्तात्रेय पीठ के पीठाधीश्वर महेश गिरी ने पर्वत पर आने वाले जैन मुनियों का सिर धड़ से अलग करने की बात की है। इसके बाद देश भर के जैन समाज में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। महेश गिरी के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करने और पर्वत पर जैन समाज को दर्शन की अनुमति देने को लेकर आन्दोलन शुरु हो गया है।
इसी माह की 12 तारीख के दिन जब पूरी दुनिया दिपावली के रूप में खुशियों से सराबोर भारत के सबसे बड़े सामाजिक पर्व को मना रही होगी। एक-दूसरे को मिठाइयां बांट रहे होंगे, खिला रहे होंगे, खा रहे होंगे, खान-पान की दुकानें हाऊस फुल होंगी उस दिन दिगंबर जैन संत अनशन कर रहे होंगे, यानि जल भी नहीं लेंगे। इसकी अगुवाई करेगा वर्तमान दिगंबर संतों के संघों में एक जगह विराजमान सबसे बड़ा संघ, आचार्य श्री108 सुनील सागर महा मुनिराज का जो ऋषभ विहार दिल्ली में विराजमान है, संघ के सभी 55 संत गिरनारजी में जैन साधुओं के प्रति हत्या करने की धमकी, वहां दर्शन करने जाने वाले श्रद्धालुओं की तलवार से जान लेने के अंदाज में तलवार व धारदार हथियार उठाने, लहराने और अपशब्दों के साथ धमकाने के विरोध से भोजन तो क्या, जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करेंगे और उसी दिन हजारों संत के साथ लाखों श्रावक भी अनशन करेंगे, अनेक विरोध प्रदर्शित करते एकासन, प्रोषध, आयम्बिल करेंगे। वैदिक संस्कृति के महानतम पर्व पर ऐसा विरोध भारतीय इतिहास में आज तक नहीं मिलता।
यह अनूठा विरोध है, हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना के लिए, यह विरोध है अन्यायपूर्ण पुलिसिया कार्यवाही का, यह विरोध है सत्ता में बैठी सरकार से, यह विरोध है उन सबसे जो जैनों पर जगह-जगह अत्याचार कर रहे हैं, यह एक अहिंसक आवाज है उन सबकी आंखें खोलने के लिये, जो सच का देखना-सुनना ही नहीं चाहते। शायद अन्याय, अत्याचार, क्रूरता, के विरोध में वर्तमान में दुनिया में सबसे अलग तरीका। और उस दिन आचार्य श्री 108 सुनील सागरजी केवल अपने उद्बोधन के लिये 48 मिनट जरूर उद्बोधन देंगे, पर फिर सबको शुभकामनायें बधाई देने वाले दिन में पूरे 24 घंटे मौन भी रहेंगे। यह कैसी दीपावली होगी, जैन धर्म, संस्कृति, समाज पर दीपों की रोशनी की बजाय, अमावस की रात के रूप में इतिहास में दर्ज होगी। इस अनशन के क्रम में मुनि श्री 108 संतृप्त सागरजी ने तो अपने अनशन को कठोर अनशन से भी आगे बढ़ाने की बात सान्ध्य महालक्ष्मी को स्पष्ट रूप से कही। जी हां, यह वही संघ है जिसके दो मुनिराजों ने गत वर्ष के श्री सम्मेदशिखरजी आंदोलन में अपने जीवन का बलिदान कर दिया। उन घटनाओं को इतिहास उतना अभूतपूर्व से याद नहीं रख पाया, पर अब 25 जून 2023 आषाढ़ शुक्ल सप्तमी का वह दिन, जो उसी गिरनार की पांचवीं टोंक से 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के सिद्धालय में जाने के नाम से इतिहास में दर्ज है। जहां 2018 तक हर वर्ष इसी दिन जैन समाज द्वारा पांचवीं टोंक पर लाडू चढ़ाया जाता रहा है। जब इस बार नहीं चढ़ाने दिया, तो उसी दिन मुनि श्री 108 संतृप्त सागरजी ने अनशन किया और तब से वह क्रम बढ़ता ही गया और ‘कठोर अनशन’ में परिवर्तित हो गया।
आचार्य श्री सुनील सागरजी महामुनिराज ने सन्मति मंडप (ऋषभ विहार, दिल्ली) में स्पष्ट कहा कि गिरनारजी पर जो उपद्रव खड़े हुए हैं, वो शांत हो इसके लिए, संघ में अनेक के उपवास चल ही रहे हैं, एक मुनि लंबी साधना कर रहे हैं, लेकिन अब 12 नवंबर 2023 को पूरे देश में सारे मुनि संघ उपवास (न अन्न, न जल), लाखों श्रावक भी, उनमें कोई एकासन करेंगे, अनेक आयम्बिल, प्रोषध करेंगे, जिससे वहां (गिरनार) बैठे लोगों को सद्बुद्धि मिले। गिरनारजी का उपद्रव शांत हो, और प्रार्थना करेंगे, जिन लोगों के मन में कषायें भड़क रही हैं, उनकी कषाय शांत हो। संत के वस्त्र पहनकर जो गाली गलौज करते हैं, उन्हें सद्बुद्धि मिले। और गिरनार की पांचवीं टोंक पर दर्शन-वंदन करने का सबको अधिकार मिले। आपकी जो मान्यता है, मानते रहो, पहाड़ तो कोई उठा कर लेकर जाएगा नहीं। श्री कृष्णजी के चचेरे भाई थे नेमिनाथ और वे 22वें तीर्थंकर बने। खुद श्री कृष्णजी उनका सम्मान करते थे और आज उनके चरणों का कोई वंदन करता है, जयकारा लगाता है, उसे अप शब्द तो नहीं कहा जा सकता, अपमान नहीं कहा जा सकता, लेकिन संख्याबल जैनों का इतना घट गया कि सामान्य दर्जे के लोग भी गाली-गलौज करने लग जाते हैं।