आचार्य श्री 108 सुनील सागर जी को ब्रिटिश नेशनलयूनिवर्सिटी ने डी.लीट साहित्य रत्न लंदन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड और राष्ट्र गौरव की उपाधि से सम्मानित किया
इंदौर! (देवपुरी वंदना) सबसे से प्राचीन जैन धर्म ,समाज के लिए इतिहास में रचा गया ऐतिहासिक दिन हमारे श्रमण संस्कृति के परिचायक गुरुदेव राष्ट्र सन्त आचार्य श्री 108 सुनील सागर जी को ब्रिटिश नेशनलयूनिवर्सिटी ने डी.लीट साहित्य रत्न लंदन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड और राष्ट्र गौरव की उपाधि से सम्मानित किया गया ! एवम् आचार्य श्री 108 सुनील सागर जी की सुशिष्या आर्यिका रत्न श्री 105 सुदृढ़ मति
माताजी को डॉ. की उपाधी ( पी.एच.डी. ) की डिग्री से सम्मानित किया गया !
माताजी को इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी डिग्री प्राप्त करना भी जैन समाज के लिए गौरव का विषय है !
आचार्य श्री108 सुनील सागर जी महाराज
बीसवी वीं सदी के मुनि कुंजर आ. आदिसागर जी अंकलीकर के चतुर्थ पट्टाचार्य श्री सुनील सागर जी का जन्म अतिशय क्षेत्र तिगोदा जी जिला सागर में हुआ था। आपके बचपन का नाम संदीप था। आपके पिता का नाम भागचंदजी जैन और माता का नाम मुन्नी देवी था | आपके भाई प्रदीप जी और बहिन रानी थी। आपकी शिक्षा किशनगंज जिला दमोह में हुई थी। आपने बी. कॉम. तक की शिक्षा ग्रहण की। आपकी मुनि दीक्षा गणेश प्रसाद वर्णी दिगम्बर जैन विश्व विद्यालय बरुआ सागर जिला झासी में तपस्वी सम्राट आचार्य सन्मति सागर जी के कर कमलों से हुई । आपने ब्रह्मचर्य अवस्था भरत सागर जी के पास जाकर भी शिक्षा ग्रहण की। आचार्य सन्मति सागर की समाधि के बाद जन मानस के आचार्य पद के लिए निवेदन करने उन्होंने कहा की मुझे पद नहीं चाहिये अगर किसी और को चाहिए तो उसे दे दीजिए। इससे उनकी पद के प्रति विरक्ति साफ़ झलकती है। आप वात्सल्य के धनी है। समाज के कहने पर और सन्मति सागर जी पत्र द्वारा आप को चतुर्थ पट्टा धीश के पद पर विराजित किया और आप मुनि श्री 108 सुनील सागर जी से आचार्य श्री 108 सुनील सागर जी बन गए ।