( गिरनार जी प्रकरण )कवि सौरभ जैन सुमन को मिली जान से मारने की धमकी
मेरठ ! ( देवपुरी वंदना ) जैन तीर्थ गिरनार के आंदोलन की लड़ाई लड़ रहे प्रसिद्ध कवि सौरभ जैन सुमन को आज जान से मारने की धमकी मिली। उन्होंने बताया की वो अपने सदर स्थित पुराने घर पर थे, तैयार होकर जीने से उतरे तो एक कागज की पोटली दिखी।
उसे उठाया तो उसमें पत्थर लपेट कर पत्र फेंका गया था, जिसमें लिखा था की गिरनार प्रकरण से हट जाओ नही तो हटा दिए जाओगे। और लिखा था की अगली बार पत्थर नही गोली आयेगी। कवि सौरभ जैन सुमन ने इसकी जानकारी थाना सदर बाजार को तत्काल दी।
ज्ञात हो जैन तीर्थ गिरनार पर जैनों के यात्रा के अधिकार एवम जैन संतो को कोर्ट में घसीटने वाले पूर्व सांसद महेश गिरी के विरुद्ध पूरे देश में जैन समाज आंदोलन कर रही है।
जिसका नेतृत्व कवि सौरभ जैन सुमन कर रहे हैं। महेश गिरी ने जैन मुनियों के साथ साथ सौरभ जैन सुमन को भी कोर्ट में घसीटने की धमकी अपने वीडियो में दी थी। जिसके विरुद्ध लगातार पूरे देश में जैन समाज धरने प्रदर्शन कर रही है।
सौरभ जैन सुमन ने अपनी शिकायत में स्पष्ट कहा की यदि उन्हें कुछ भी होता है तो उसके जिम्मेदार महेश गिरी एवम उनके साथीगण होंगे। सनातन धर्म एवं जैन धर्म को अलग मानने वालों के षड्यंत्र पूरे नही होंगे।
उन्होंने कहा की यदि मेरी जान लेकर ही जैन समाज को गिरनार यात्रा का अधिकार मिलेगा तो वही सही। वो अपनी शहादत देते को तैयार हैं लेकिन वो आंदोलन तब तक नही रोकेंगे जब तक गिरनार पर्वत पर जैन धर्मावलंबियों को स्वतंत्र रूप से वंदना की अनुमति एवम सुरक्षा नही दी जाती।
गुजरात प्रान्त में स्थित गिरनार पर्वत एक निर्वाण क्षेत्र के रूप में सुप्रसिद्ध तीर्थ है। षट् खण्डागम सिद्धान्त शास्त्र की आचार्य वीर सेन कृत धवला टीका में इसे क्षेत्र मंगल माना है। इसे ऊर्जयन्त गिरि भी कहते हैं। आचार्य यति वृषभ ने भी तिलोय पण्णत्ति नामक ग्रंथ में इसी आशय की पुष्टि करते हुए इसे क्षेत्र मंगल माना है। ऊर्जयन्त क्षेत्र पर बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के तीन कल्याणक हुए थे-दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण। जिस क्षेत्र पर किसी तीर्थंकर का एक ही कल्याणक हो वह कल्याणक क्षेत्र या तीर्थक्षेत्र कहलाता है और जहाँ किसी तीर्थंकर के तीन कल्याणक हुए हों वह क्षेत्र तो वस्तुत: अत्यन्त पवित्र बन जाता है अत: गिरनार क्षेत्र अत्यन्त पावन तीर्थभूूमि है। भगवान श्री 1008 नेमिनाथ का निर्वाण स्थल होने से इसे सिद्ध क्षेत्र कहा जाता है। गिरनार पर्वत का नाम लेते ही महा सती राजुल का नाम भी स्मृति में आ जाता है जब भगवान नेमिनाथ जूनागढ़ से गिरनार की ओर राजुलमती से ब्याह करने के लिए चले तो वहाँ पहुँचते हुए मार्ग में बाड़े में बंद पशुओं की करुण चीत्कार ने उन्हें द्रवित कर दिया तब वे वैराग्य उत्पन्न हो जाने से विवाह बंधन में गिरनार पर्वत पर जाकर दीक्षा ले घोर तप श्चरण में लीन हो गए तब महासती राजुल ने भी भगवान नेमिनाथ के पथ का अनुसरण करते हुए आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर इसी पर्वत पर घोर तप श्चरण किया था। इसी पर्वत पर भगवान नेमिनाथ के तीन कल्याणकों का वर्णन तिलो यपण्णत्ति नामक ग्रंथ में विस्तारपूर्वक दिया गया है।