पंथवाद को छोड़, दिगम्बरत्व के मूल गुणों को नमन करे – मुनि श्री पूज्य सागरजी
इंदौर | श्री 1008 कल्पद्रुम महामंडल विधान विगत वर्ष की 30 दिसम्बर से प्रारंभ हुए आज के चौथे दिवस पर है, जहा इंदौर शहर ही नहीं निकटतम विभिन्न प्रान्तों से पधारे अपने साधर्मी बंधु अपने सांसारिक मानवीय जीवन में आ रहे दुखो का नाश करने के लिए अंतर्मुखी मुनि श्री 108 पूज्य सागरजी के आशीर्वाद एवं सानिध्य में चल रहे आठ दिवसीय महाविधान में सहभागिता ले रहे है.
धार्मिक माहोल में हर्षोल्लास के साथ भक्ति भाव के साथ अपने जीवन में पुण्यो का संचय करते हुए प्रातः काल में सूर्य की प्रथम किरण के साथ ललित-निखिल कुमार छाबड़ा (निखिल टेंट हाउस) द्वारा अपने स्वयं के व राष्ट्र की उन्नति के लिए मुनिश्री के मुखारविन्द बीजा अक्षर मंत्रोच्चार से शांतिधारा के साथ दिन की शुरुआत की. सुमधुर वाध्यो के साथ श्रीमती प्राची सौरभ छाबड़ा स्मृति नगर ने मंगलाचरण की प्रस्तुति दी. इस अवसर पर मुनिश्री के ग्रहस्त परिवार के भाई दीपक जी, रश्मि जी, बबिता जी एवं परिवार ने दीप प्रज्वलन कर पूरे परिसर को आलोकिक इन्द्रधनुषी रंगों से प्रकाशमान किया. गुरुवन्दन के पाद प्रक्षालन का लाभ श्री दिगंबर जैन महिला मंडल सुदामा नगर ने लिया. साथ ही जिनवाणी भेट का शुभ लाभ भी गुरुवर के ग्रहस्त परिवार ने लिया. महामंडल विधान महोत्सव समिति के प्रमुख नरेन्द्र वेद, विकास जैन ने सभी पधारे अतिथियों का माला तिलक लगा कर सम्मान किया.
पंडित नितिन झांझरी, पंडित किर्तेश जैन, पंडित विनोद पगारिया के सानिध्य में श्री 1008 कल्पद्रुम महामंडल विधान के मध्य समवशरण से दिव्य देशना देते हुए अपने आशीर्वचन में गुरुदेव ने कहा कि जीवन में हर व्यक्ति का जन्म ओर मरण होता है. संसार में जितने भी जीव है आज के दौर में सभी दुखी है, संसार की चारो गति में दुःख बना हुआ है. गुरु की वाणी सुनकर सुख आ जाता है. किसी भी संत या पंथ के गुरु हो, गुरु गुरु की होते है. धर्म, शास्त्र या साधू की निंदा करने वाला नारकीय जीव होता है. गुरु के हाथ के स्पर्श से ही मानव जीवन के सभी रोग दूर हो जाते है. आपकी श्रद्धा किस पर होनी चाहिए यह निर्भर करता है. 28 मूल गुणों को धारण करने वाला दिगंबर साधू ही आपके जीवन को तारता है. आज श्वेताम्बर दिगंबर के साथ संत-पंथो में भी व्यग्तिगत नाम के संतो पर समाज बट गया है. गुरुओ के प्रति आपकी आस्था व श्रद्धा आपके नौ ग्रहों के साथ साथ 27 नक्षत्र भी सुखदाता होता है. मेरे जीवन का एक-एक क्षण भट्टारक चारुकिर्ती जी महास्वामी एवं मेरे दीक्षा गुरु समाधिष्ट आचार्य श्री 108 अभिनन्दन सागरजी को समर्पित है. क्यूँ कि जिस तरह एक मटके को अन्दर से हाथ डाल कर ठोक-पीट कर गोल बनाया जाता है उसी तरह अच्चा एवं मटके के जेसा बनने के लिए गुरु का सानिध्य होना चाहिए. आज समाज में संत-पंथ को लेकर मन- मुटाव बढ़ते जा रहे है एसे में हमे दिगम्बरत्व के मूल गुणों का पालन करने वाले साधुओ को एक समान मानना चाहिए न की तेरा-मेरा कर समाज को विघटन की ओर ले जाना चाहिए.