रेगिस्तान में एक मालगाड़ी का 16 से 20 घंटों का सफर किसी रोमांचक रेल यात्रा से कम नहीं

A long freight train journey across the Sahara desert

A long freight train journey across the Sahara desert
A long freight train journey across the Sahara desert

रेगिस्तान में एक मालगाड़ी का 16 से 20 घंटों का सफर किसी रोमांचक रेल यात्रा से कम नहीं होता है। पश्चिम अफ्रीका के मॉरिटानिया में लोहे की खदानों के लिए चलने वाले इकलौते यातायात साधन के रूप में चलने वाली ट्रेन के सफर को लोग अलग तरह से मजा लेते हैं। लेकिन ये सफर मुश्किलों से भरा भी है।
सहारा रेगिस्तान में एक लंबी मालगाड़ी की यात्रा को अनोखा ही कहा जा सकता है। गाड़ी में सफर करना अपने आप में एक यादगार अनुभव है। मालगाड़ी होने के बाद भी इसमें लोग सफर करते हैं और परेशानियां होने के बाद भी इसका अपना रोमांच है।  Sahara desert
मॉरिटानिया रेलवे 1963 से पश्चिम अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान से लौह खनिज को ढोने का काम कर रही है। 704 किमोमीटर लंबा एकल ट्रैक नौआदिबौ शहर से जोएरात की खानों तक जाता है। एक ओर के सफर में 16 से 20 घंटों का समय लगता है और यह कई बार लंबा भी हो जाता है।
ट्रेन के बारे में रोचक बात यहां हैं कि इसके आने जाने का समय तय नहीं है, लेकिन यह हमेशा दोपहर के समय आती है और यात्री नौआधिबौ स्टेशन पर एक बजे से लेकर 5 बजे तब इंतजार करते दिखाते हैं। यहां पर लोग खाने के सामान जैसे की चावल, सब्जियों, खजूर पेय पदर्थों की बोतलें आदि ट्रेन में चढ़ाते हैं।
लोहे की खदानों के पास हजारों लोग रहते हैं लेकिन यातायात के लिए केवल रेल पर निर्भर हैं। क्योंकि देश के दूसरे हिस्सों को जोड़ने का कोई दूसरा साधन नहीं है। इसके बाद भी ट्रेन का मकसद लौह खनिज को नौआधिबौ तक ढोना है जहां से वह चीन, यूरोप और अन्य देशों को जाता है। लौह खनिज मॉरिटानिया का सबसे अहम खनिज है। ट्रेन देश का आधे निर्यात के लिए जिम्मेदार है। अधिकांश लोग समूह में सफर के दौरान खाना बनाने का सामान तक लेकर साथ चलते हैं। इतना ही नहीं खुले डिब्बे में ही खाना बनाते हैं। डिब्बे के एक ओर आग जलाने की व्यवस्था करते हैं और दूसरे ओर रेत की बोरियां लगाकर टायलेट बना लेते हैं। Sahara desert
सफर के दौरान यात्रियों को सबसे कठिन चुनौती उड़ने वाली धूल और लोहे के खनिज के कण होते हैं, जो आंख में चले जाते हैं। ट्रेन की आवाज में सोना तब बिल्कुल भूल जाईये है। ऐसा खास तौर से जाते समय होता जब डिब्बे खाली होते हैं और ट्रेन तेज चलती है इससे धूल ज्यादा आती है डिब्बे भी ज्यादा ही हिलते हैं। बहुत से लोगों के लिए यह सफर उनके काम का हिस्सा है और वे हर महीने कई बार इसका सफर करते हैं। फिर भी वे इस सफर को हर बार पूरे जोश और उत्साह के साथ रोमांचक बना देते हैं।

source – EMS

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

You might also like