जीवन पथ (कविता संग्रह) पुस्तक- समीक्षा ….
गुवाहाटी समाज की प्रतिष्ठित समाज सेवी एवं स्वाध्यायशील आदरणीय रतनप्रभाजी सेठी से मेरा परिचय दो दशक से भी अधिक काल से रहा हैं एवं साहित्य में मेरी रूचि को प्रोत्साहन देने के साथ मेरे प्रति उनका आत्मीय स्नेह हमेशा से प्रेरणादाई रहा है। मेरा उनके निवास स्थान में प्रायः जाना होता है। मैं जब भी गया अधिसंख्य समय जैन शास्त्रों का स्वाध्याय करते हुए उन्हें देखा। घर में सिद्धांत ग्रंथों के अलावा साहित्यक पुस्तकों का अच्छा खासा संग्रह था जिसे कुछ दिन पूर्व उन्होंने मेरे आग्रह पर विजयनगर के जैन मन्दिर के लिए भिजवा दिया। छहढाला से लेकर चारों अनुयोगों का आद्योपांत उनका अध्ययन उनसे हुई चर्चाओं में अक्सर समाहित रहता। बिभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में उनके लेख समय समय पर छपते भी रहे हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उनकी लिखी कविताओं में जैन दर्शन के गूढ़ सिद्धांतो के आध्यात्मिक दृष्टिकोण को सहज सरल भाषा में जन मानस के जीवन पथ में सहजता और सरलता को अंगीकार करने के लिए प्रभावित करती है। जैन धर्म में वर्णित दश धर्म के मर्म को सहज सरल एवं बोधगम्य भाषा में कविता का रुप देकर कवि ने धर्म के दायरे से उपर उठाकर दशलक्षण पर्व को जन साधारण का पर्व बनाने का सुन्दर प्रयास किया है।
जीवन पथ की सभी कविताएं छंद और अलंकारों से आजाद भाव तत्व की प्रधानता के साथ बुनी गई है जो कवि की कविताओं की आत्मा है। जीवन पथ की कविताओं में जिंदगी के बहुत से रंग है –
क्षमा बसंत है
क्षमा पवन है,
क्षमा हमदर्द है,
क्षमा से सांस चलती है….
वसंत ऋतु सभी ऋतुओं से बेहतर मानी गयी है । बसंत ऋतु की खुबसूरती तथा प्रचुर और स्वाभाविक ऊर्जा स्रोत पवन के महत्व को क्षमा से तुलना कर कवि ने क्षमा वीरस्य भूषणम की सुक्ती से जुदा क्षमाधर्म को अपने अलग चिंतन के साथ परिभाषित किया है।
मार्दव के अभाव में स्वयं को मिटा देने एवं मार्दव के महत्व पर जोर देकर कवि की ये पंक्तियां क्रोध और मान को गलाकर अपनी आत्मशक्ति को मजबूत करने की प्रेरणा देती है।
….क्रोध की गर्म हवा, मान की ठंडी हवा
दोनों ही बुरी है हमारी सेहत के लिए….
आर्जव को बिद्या की जन्म भूमि बताकर कवि ने आर्जव धर्म को प्रभु के नजदीक आने का श्रेष्ठ उपाय बताया है।
वहीं सत्य धर्म को कवि ने जीवन का आधार बताकर सत्य की उर्जा में ही शीतलता के वास को दर्शातें हुए लिखा-
सत्य को खोजने व जानने की जरूरत है
झूठ बोलने के लिए योजना बनानी पड़ती है
रोजमर्रा के जीवन में जब ब्यक्ति अनेक बोझों के तले दब जाता है तब कवि रत्नप्रभा जी की कविता शौच धर्म बोझों को हल्का करने की प्रेरणा देता है –
शौच के महत्व को समझें
शौच हमें हल्का कर देता है
जो हल्का होता है, वही उपर उठता है…
संयम को बहुमूल्य रत्न बताकर कवि ने संयम धर्म की परिभाषा को ब्यक्ति की मलिनता को साफ करने का औजार बताकर लिखा
सब साफ़ दिखाई देता है
जब संयम जीवन में आता है
कवि ने संयम धर्म की महत्ता को ब्यक्ति की नकरात्मक सोच को सकारात्मता में बदलने का उपहार बताकर संयम को दश धर्मों का सार बताकर इसके महत्व को उजागर किया है।
कवि की दृष्टि छोटी से छोटी बातों पर गई है। ऐसी बातों पर जिसे लोग सामान्यतया नजरअंदाज कर जाते हैं। तप को शरीर को सुखाकर रिकॉर्ड का कार्ड न मानकर कवि ने तप धर्म को बड़े ही सुन्दर ढंग से अपनी कविता में उद्घाटित किया है…
तप शरीर को सुखाने का नहीं
इच्छाओं के निरोध का नाम है
जीवन में ठहराव लाकर ही त्याग धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझा जा सकता है। भटकते इंसान का त्याग धर्म से वास्ता असंभव है जिसका दुखों से छुटकारा पाना कठिन है-
जाहिर है कवि की कविता त्याग भटकती मनुष्यता की पड़ताल करती कविता है।
मानव जीवन का उद्देश्य
भटकना नहीं ठहरना है…
कई बार काव्य-सौंदर्य दो पंक्तियों के बीच अनकही बातों या अत्यंत बारीक और महीन संकेत में भी निहित होता है। सीधे-सीधे काव्यात्मक शैली में बात कह देने का दूरगामी मारक प्रभाव पाठकों पर नहीं पड़ पाता। सरलीकरण कविता का आवश्यक गुण है । आकिंचन्य धर्म को अत्यंत ही सरलता के साथ कवि ने इन दो पंक्तियों में समाहित कर आकिंचन्य धर्म को अपनी कविता में जीवित कर दिया है..
मेरा कुछ भी नहीं है
यही आकिंचन्य धर्म है।
जीवन पथ संग्रह आरंभ से अंत तक मानवीय गरिमा को प्रतिष्ठा दिलाने की जद्दोजहद से गुजरती है। संग्रह की अधिकांश कविताओं की पृष्ठभूमि में मनुष्यता की पीड़ा और उसके अवसाद की अनुगूंज अनवरत सुनाई देती रहती है। जीवन पथ कविता संग्रह जीवन के पथ को सुगम बनाने की दिशा में एक शानदार कृति है एवं मानवीय गरिमा को प्रतिष्ठा दिलाने की जद्दोजहद से गुजरती है।
जीवन पथ की कई कविताएँ मानवता की टोह लेती नज़र आती हैं। आज सर्वाधिक पतन मानवता का हुआ है। स्वाभाविक है कि कवि का हृदय गुम हो गयी मानवता की पड़ताल करता है। चौतरफा खौफ़ के बाजार में मानवता की बेचारगी को दर्शाते हुए कवि काश ऐसा होता कविता में लिखती हैं-
मौत आज मानव से भीड़ गई है
चहूं और मौत का तांडव है…
लेकिन जीवन पथ कविता संग्रह की कविताएं निराशा की जगह मानवता को आध्यात्मिक धरातल पर वगैर किसी भेद-भाव के हर एक आँगन में खुशियों का उजाला तलाशती है।
रत्नप्रभाजी जी कविताओं में या तो शुभेच्छाएँ हैं या फिर निराशा। जीवन के कठोरतम संघर्ष से उपजी धुप्प अंधेरे में लालटेन की रोशनी की तरह आशा या उम्मीद की किरणें कविताएं पढ़ने से नज़र आती हैं।
क्या वातावरण बना है कविता निराशा पर पर्दा डालकर आशा की किरण जगाती हैं.
घबराने की आवश्यकता नहीं है
मानव तुमने चाहा तो सब सामान्य होगा…
तुम क्या हो कविता में अदृश्य ताकत के वजूद को स्वीकार कर कवि लिखती है-
जानते हुए भी अनजान बन रहे हैं हम शायद इसीलिए अदृश्य ताकत हमें जगाने आई है
बतलाने कि तुम क्या हो, तुम्हारा वजूद क्या है।
भगवान को फ्रेम में मंढवाकर धूप और अगरबत्ती जलाकर आध्यात्मिकता से दूर भागने वाले इंसानी सोच के अहंकार पर प्रहार करते हुए
समझाया तो था कविता में कवि ने लिखा
इस धरा पर न कोई छोटा न कोई बड़ा मत करो अभिमान सबका वक्त आता है
मत करो तकरार किसी से, कब कौन पलट जाता है
आज तुम्हारा पलड़ा भारी है, कल ना जाने किसका होगा ?
महावीर को लाना है, महावीर को पाना होगा
समझाया तो था, समझना होगा।
क्या नहीं है हमारे पास कविता हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत एवं प्रकृति प्रदत्त भरपूर ऊर्जा का आभास कराती है एवं सबकुछ होने के बावजूद ब्यक्ति ग्रहों के चक्कर में पड़कर जीवन में सफलता को खोजने लगता है । कवि ने वेवाकी से प्रकृति से तालमेल बैठाकर स्वंय की गलतियों को ढूंढकर उसे मानने और फिर अपने जीवन को पथ सुदृढ़ करने का इशारा किया है।
ग्रह अपना प्रभाव तो जब डालेंगे
जब हम डालने देंगे
पंक्तियां कर्म सिद्धान्त के दृष्टिकोण को पुष्ट करती है।
सुख और दुःख कविता इंसान को सीधी बात से हटकर ज्ञान देने वाले पर सीधा प्रहार है। कवि ने पुजा ऐसे करो, मंत्र ऐसे पढ़ो पंक्तियों के माध्यम से स्वयं को ही ब्यक्ति में छिपी अनंत उर्जा में ज्ञाता और द्रष्टा बनने पर जोर दिया है।
सदा मैं धरूं तुम्हारा ध्यान कविता के भाव ईश्वर को सर्वशक्तिमान मानकर इंसान को धरा के स्वरुप को विकृत न करने की कामना ईश्वर से करती है
मैं मानव हूं, मुझमें तेरा मानव रुप महान,
मानवता से भौम न भटके, ऐसा हो वरदान।
प्राकृतिक आपदाओं में सकारात्मक संभावनाओं को तलाशती संभावना कविता विषाक्त वातावरण को नियंत्रित करती अदृश्य शक्ति द्वारा सम्हालने की कवि की भावना ईश्वरीय सत्ता का बोध कराती है।
घंटियां बजी हुआ शंखनाद
निकट ही देवाले- शिवाले होंगे….
बिषाक्त बना है समूचा वातावरण
स्थिति तनावपूर्ण, पर हैं नियंत्रण में,
कोई इसे अवश्य संभाले होंगे।
चांद और मानव कविता में चांद का मानव से संवाद ह्रास होते मानवीय मूल्यों एवं बिलबिलाती इंसानियत पर बैज्ञानिक सफलता पर कड़ा कटाक्ष है-
आज चांद मानव से कह रहा
कितनी सफलता के झंडे और गाड़ोगे?
अपनी सफलता पर इतरा रहे हो, फिर क्यों बिलबिला रहे हो ?
मौत का भय कविता में कवि ने खत्म हो रही इंसानियत एवं तेजी से पनप रही अमानवीय संवेदना को परिष्कृत कर ब्यक्ति को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा देती है –
अब समय आ गया है
स्वयं को टटोलने का
मौत भय की नहीं सच्चाई की रेखा है
जीवन पथ कविता संग्रह कवि रत्नप्रभाजी सेठी का प्रथम कविता संग्रह है। कवि के जीवन में आध्यात्मिकता का प्रभाव सहज ही परिलक्षित होता है। सामाजिक एवं धार्मिक विकृतियां जो तेजी से समाज में एक विषाक्त वातावरण कायम कर रही है उसी वातावरण को एक सकारात्मक एवं आशावादी दृष्टिकोण के साथ साफ करने की भावना कवि की कविताओं का मूल आधार है। वैश्विक स्तर पर जिस प्रकार भौतिकवादी संस्कृति हावी होती जा रही है कवि ने आध्यात्मिक संस्कृति को अपनाकर मनुष्य जन्म को सार्थक करने पर बल दिया है। कवि रत्नप्रभाजी की जैन सिद्धांतो पर अटूट आस्था होने के बावजूद अपनी कविताओं में उन्होंने सर्वधर्म भाव के साथ बड़ी सरलता एवं आसान शब्दों में जीवन पथ को सुगमता के साथ आगे बढ़ाने के लिए कविताओं की बुनावट की है। जीवन पथ कविता संग्रह मुक्ति के मार्ग को प्रशस्त करने का एक सारगर्भित विवेचन है जिसका आधार कवि ने कविता के माध्यम से चुना है। जीवन – पथ हम सभी के जीवन को दिशा देने के लिए एक सुन्दर कृति है। ✍🏻 ललित अजमेरा बिजयनगर