जैन आगम हमारे भारत की संस्कृति है – मोहन राव भागवत..

Jain Agama is the culture of our India - Mohan Rao Bhagwat..
Jain Agama is the culture of our India – Mohan Rao Bhagwat..

इंदौर ! ( देवपुरी वंदना ) जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के 2550 वें निर्वाण महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में विज्ञान भवन, नई दिल्ली के प्रांगण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली द्वारा एवं भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव समिति (पंजीकृत) के सहयोग से भगवान महावीर स्वामी के 2550 वें निर्वाण महोत्सव का आयोजन विगत दिवस किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ संचालक माननीय डाॅ.मोहन राव भागवत जी आमंत्रित थे एवं भगवान महावीर स्वामी के 2550वें निर्वाण महोत्सव के प्रेरणास्रोत राष्ट्रसंत परम्पराचार्य श्री प्रज्ञसागर जी मुनिराज के पावन सान्निध्य व मार्गदर्शन में एवं चतुर्थ पट्टाचार्य श्री सुनील सागर जी मुनिराज, डाॅ .राजेन्द्र मुनि एवं साध्वी श्री अनिमा जी म.सा., साध्वी श्री प्रीति जी म.सा. के पावन सान्निध्य में सकुशल सम्पन्न हुआ, जिसमें सभी माननीय अतिथियों एवं उपस्थित जन समूह द्वारा भगवान महावीर स्वामी के 2550वें निर्वाण महोत्सव को संपूर्ण देश एवं विश्वभर में पूरे एक वर्ष तक उत्साह पूर्वक मनाने का संकल्प लिया गया । इस उपलक्ष्य में गुरुदेव प्रज्ञसागर जी द्वारा संकलित‘ 2550 महावीर सूत्रम्‘‘ पुस्तक का विमोचन डा. मोहन भागवत जी के कर कमलों द्वारा किया और जैन समाज ने उन्हें पेंटिंग एवं चांदी का क्लश भेंट किया ।
आचार्य श्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह कल्याणक ‘क‘ से प्रारंभ होता है और ‘क‘ अक्षर से ही समाप्त होता है, इसका अर्थ है अपना भी कल्याण और जो आए उसका भी कल्याण। आचार्यश्री ने श्री ने आगे कहा कि हमारे संस्कृति के साथ बहुत से आक्रांताओं ने छेड़छाड़ किया लेकिन हमारे भक्तों और श्रद्धालुओं ने एवं जो इसमें आस्था रखते थे उन्होंने बड़ी दृढ़ता से इसका संरक्षण किया और इस संस्कृति को जीवित रखा। हमारी श्रवण और वेदिक संस्कृति के आदान प्रदान से आज भारत विश्व शक्ति के रूप में उभर रहा है तथा विश्व गुरू बनने के पथ पर अग्रसर है। आचार्य श्री ने कहा कि अगर विश्व के अंदर शांति चाहिए तो महावीर के सिद्धांतों को अपना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हमें दोनों में से एक चीज को अपनाना होगा महाविनाश या महावीर ।आचार्य श्री ने इस देश को देवता के रूप में बताया। (मेरा देव, मेरा देश, मेरा भारत महादेश)।
आचार्य श्री 108 सुनील सागर जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि जब प्यास बहुत लगती है तो नीर की आवश्यकता होती है, इसी तरह अशांति और असहिष्णुता के वातावरण में ‘महावीर‘ की आवश्यकता होती है। सत्य अहिंसा और सदाचार हमारे देश में 24 तीर्थंकरों तथा राम कृष्ण, बुद्ध और महावीर से आयी और इसकी संरक्षणा राष्ट्र स्वयंसेवक संघ द्वारा की गई। आचार्य श्री ने डाॅ. मोहन भागवत का नाम मोहन जोदड़ों और भगवत गीता से जोड़ा। उन्होंने यह भी कहा कि जैन समाज के अंदर जो गरीबी रेखा से दूर कर एक दूसरे की मदद के लिए आपस में तालमेल रखने को बल दिया।
डाॅ.राजेन्द्र मुनि जी महाराज ने कहा कि किसी व्यक्ति को जानने के लिए दो पक्ष होते हैं जीवन पक्ष और दर्शन पक्ष, महावीर स्वामी के दोनों ही पक्ष बड़े उत्तम हैं। भगवान महावीर स्वामी ने स्वयं का भी उद्धार किया और संसार का भी उद्धार किया।
साध्वी जी म.सा. ने कहा कि आज के समय में जो न्यू जनरेशन है उसका माता -पिता के आदर की तरफ ध्यान नहीं है और वह उनके लिए समय नहीं निकालती है तथा पाश्चात्य संस्कृति की तरफ अग्रसर है।
इस अवसर पर साध्वी जी म.सा. ने हिन्दू का अर्थ बताया हिंसा से दूर और कहा कि हम सब हिन्दू हैं बेशक हम अलग-अलग मत को मानते हैं हमारा राष्ट्र सर्वोपरि है।

Jain Agama is the culture of our India - Mohan Rao Bhagwat..
इस अवसर पर मुख्य अतिथि डाॅ.मोहनराव भगवत जी  Mohan Rao Bhagwatने अपने उद्बोधन में कहा कि भगवान महावीर का नाम हमारे लिए कोई नई बात नहीं है हम प्रति दिन अपनी दीनचर्या भगवान महावीर तथा इस देशके हर महान व्यक्ति से प्रारंभ करते हैं। उन्होंने कहा जैन आगम हमारे भारत की संस्कृति में है इसका स्मरण करना हमारे लिए परम आवश्यक है और उन्होंने कहा कि 2550वां निर्वाण महोत्सव हमारी सभी शाखाएं मना रही हैं हम इससे आगे 2551 से हम महावीर स्वामी के सिद्धांतों का कितना अनुकरण करते हैं यह भी हमको देखना है। सर संघ संचालक ने कहा कि हमारी 2 धारायें हैं -एक श्रवण धारा और दूसरी ब्राह्मण धारा, इसके बारे में उन्होंने विस्तार से समझाया और भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव समिति के मुख्य संयोजक सत्यभूषण जैन ने कहा कि 2550वां भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव पूरे विश्व स्तर पर मनाया जाएगा ऐसा हमारा संकल्प है


डाॅअनिल अग्रवाल ने आमंत्रित सभी मुनियों, साध्वियों एवं इस कार्यक्र में विशेष योगदान के लिए देवेन्द्र पाण्डया, चतुर्थ जैन, सुरेश जैन, सुधांशु जैन आमंत्रितों को धन्यवाद देते हुए सभी से कहा कि प्रसाद के रूप में भोजन को सभी ग्रहण करें।

 

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