कंधा नया बंदूक व निशाना पुराना बिछात की कवायत शुरू…
इंदौर ! (देवपुरी वंदना) धर्म, कर्म ,समाज से अर्थ का लाभ अर्थ लाभ भी ऐसा की तमाम उम्र जीवन भर प्रत्येक माह एक मुस्त आरामदायक भौतिक सुख – सुविधाओं के साथ बिना मेहनत के मिलता रहे ऐसी महत्वाकांक्षा लिए श्रावक – श्रविकाओ की आस्था, श्रद्धा, भक्ति, की भावनाओं के साथ खिलवाड़ ही क्यों ना हो पर अपनी महत्वाकांक्षा पर विराम ना हो महत्वाकांक्षा एक महत्वपूर्ण कारक हो सकती है, लेकिन समय के साथ अर्थ और निहितार्थ बदल गए हैं। महत्वाकांक्षा के पीछे के कारणों का पता लगाने से किसी को अपने लक्ष्यों और सफलता के विचार को प्राथमिकता देने में मदद मिल सकती है। यह एक प्रेरक शक्ति हो सकती है जो लोगों को अपने सपनों को आगे बढ़ाने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है।
महत्वाकांक्षा को उपलब्धि की इच्छा के रूप में प्रोत्साहित करने वाली एक शक्तिशाली भावना हो सकती है, चाहे करियर में उन्नति जैसी मूर्त उपलब्धियां हों या व्यक्तिगत विकास जैसी अमूर्त उपलब्धियां।
महत्वाकांक्षा की खोज हमें यह समझने की अनुमति देती है कि यह हमारे जीवन, समाज, दृष्टिकोण और व्यवहार को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से कैसे प्रभावित करती है। ये अंतर्दृष्टि हमें अपने भविष्य के बारे में अधिक जानकारी पूर्ण निर्णय लेकर महत्वाकांक्षा व्यक्तिगत जीवन में महत्वपूर्ण प्रगति की सुविधा प्रदान कर सकती है। महत्वाकांक्षा हमें जोखिम लेने और खुद को चुनौती देने के लिए प्रेरित कर सकती है, खासकर अगर हमें अपने समाधानों के साथ रचनात्मक होने की आवश्यकता है। महत्वाकांक्षा की संतुलित भावना वाले लोगों के पास मजबूत समर्थन प्रणाली होती है, जो दूसरों के साथ स्थायी संबंध बनाने के लिए फायदेमंद हो सकती है।अनियंत्रित महत्वाकांक्षा अत्यधिक प्रतिस्पर्धी होने, किसी भी कीमत पर सफलता का पीछा करने या अत्यधिक काम करने जैसे विषाक्त व्यवहार को जन्म दे सकती है। मन की यह स्थिति लोगों को थका देने वाली या चिंता और अवसाद के लक्षणों का अनुभव करा सकती है।
महत्वाकांक्षा और यथार्थ वादी अपेक्षाओं को संतुलित करने की रणनीतियाँ संतुलित होने पर महत्वाकांक्षा एक शक्तिशाली प्रेरक हो सकती है। यथार्थ वादी अपेक्षाएँ रखने, प्राप्त करने योग्य लक्ष्य निर्धारित करने और विफलता की संभावना को समझने से पूर्णतावादी मानसिकता या अतिशयोक्ति को रोकने में मदद मिल सकती है। अब देखना है की नये आचार्य श्री का कंधे का उपयोग कौन व किस तरह से करता है या श्रावक – श्राविकाओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं होगा ।