विदुषीरत्न आर्यिका 105 विशुद्धमति माताजी का ससंघ 3 अप्रैल को सोनागिरी जी तीर्थ पर भव्य मंगल प्रवेश
सोनागिरी ! ( देवपुरी वंदना ) वर्द्धताम जिनशासनम णमो विशुद्ध विज्ञातमनम 23 वर्षो के बाद होगा हमारे आराध्य प्रथम तीर्थंकर 1008 आदिनाथ भगवान के जन्म कल्याण महोत्सव पर्व के शुभ दिवस पर भव्य मंगल चंद्रिका निहारेंगी चंदा बाबा के चरण तीर्थक्षेत्र श्री सोनागिरि जी मंगल प्रवेश 3 अप्रैल 2024 बुधवार प्रवेश प्रारंभ- गेस्ट हाउस, सोनागिरी से बीस पंथी कोठी, सोनागिरि समय- प्रातः 7:30 बजे शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर जी में अनंतानंत सिद्ध परमेष्ठी भगवंतों की दिव्य मंगल आराधना के पश्चात, कड़ाके की ठंड, शीत लहर, झमाझम बारिश और तपती दोपहरी को भी नजरअंदाज कर, लक्ष्य सिद्धि हेतु, श्री सम्मेदगिरी से स्वर्णगिरि की ओर अनवरत बढ़ रहें माँ विशुध्द चरण, आतुर हैं पाने को, प्रभु चंदा की शरण। लेकिन अब, बस कुछ ही तो कदमो की दूरी हैं शेष!!
लगभग 3000 किमी. की पदयात्रा यात्रा के पश्चात अब वो पल आ गया हैं जिसका हम सभी कर रहें थे बेसब्री से इंतजार।
जी हाँ आर्यबंधुओं! दिनांक- 3 अप्रैल 2024 बुधवार को होने जा रहा हैं प. पू. सिद्धांत रत्न, गणिनी शिरोमणि आर्यिका 105 श्री विशुध्दमति माताजी, प. पू. सिद्धांत वाग्मी, पट्ट गणिनी आर्यिका रत्न 105 श्री विज्ञमती मति माताजी ससंघ का, नंग-अनंग आदि साढ़े पांच करोड़ तपो धनों की निर्वाण स्थली श्री चंदा बाबा के दरबार में भव्य मंगल प्रवेश।तो देर किस बात की
आइए बन्धुओं!
पलकें बिछाकर कीजिये, माँ विशुध्द चरणों की अगवानी!क्योंकि ये कोई साधारण नहीं , अपितु तीर्थ रज कणों से पवित्र वे दिव्य चरण हैं,जिनका स्पर्शन मात्र कराता हैं अनंत विशुद्धि का आभास स्वागतातुर- बीस पंथी कोठी, सोनागिर
निवेदक- सकल दिगम्बर जैन समाज, सिद्ध क्षेत्र कमेटी, सोनागिर मध्य प्रदेश। विदुषीरत्न आर्यिका 105 विशुद्धमति माताजी
गृहस्थाश्रम का नाम – श्री सुमित्रा बाई।
जन्म स्थान – रीठी, जि० जबलपुर (म० प्र०) ।
पिता – श्रीमान् सिं० लक्ष्मणलालजी
माता -सौ० मथुराबाई।
भाई- श्री नीरजजी जैन एम० ए० और श्री निर्मल कुमारजी जैन मु० सतना (म० प्र०)।
जाति -गोलापूर्व ।
जन्म तिथि- सं० 1986 चैत्र शुक्ला तृतीया शुक्रवार दिनांक 12-4 -1628 ई० ।
लौकिक शिक्षण- 1. शिक्षकीय ट्रेनिंग (दो वर्षीय) 2. साहित्य रत्न एवं विद्यालंकार ।
धार्मिक शिक्षण-शास्त्री (धर्म विषय में)।
धार्मिक शिक्षण के गुरु-परम माननीय विद्वद्-शिरोमणि पं० डा० पन्नालालजी साहित्याचार्य, सागर (म० प्र०)।
कार्यकाल – श्री दि० जैन महिलाश्रम (विधवाश्रम) का सुचारु- रीत्या संचालन करते हुए प्रधानाध्यापिका पद पर करीब १२ वर्ष पर्यन्त कार्य किया एवं अपने सद् प्रयत्नों से संस्था में 1008 श्री पार्श्वनाथ चैत्यालय की स्थापना कराई।
वैराग्य का कारण -परम पू०प० श्रद्धेय आचार्य 108 श्री
धर्मसागर महाराजजी के सन् 1962 ई० सागर (म० प्र०) चातुर्मास में पू० 108 श्री धर्मसागर महाराजजी की परम निरपेक्ष वृत्ति और परम शान्तता का आकर्षण एवं संघस्थ प० पू० प्रवर वक्ता 108 श्री सन्मतिसागरजी महाराज के मार्मिक सम्बोधन ।
आर्यिका दीक्षागुरु -परम पु० कर्मठ तपस्वी अध्यात्मवेत्ता, चारित्र शिरोमणि, दिगम्बराचार्य 108 श्री शिवसागरजी महाराज।
शिक्षा गुरु- परम पू० सिद्धान्तवेत्ता आचार्य कल्प 108श्री श्रुतसागरजी महाराज।
विद्या गुरु- परम पू० अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी उपाध्याय 108 श्री अजितसागरजी महाराज ।
दीक्षा स्थान – श्री अतिशय क्षेत्र पपौराजी (म०प्र०)।
दीक्षा तिथि -सं० 2021श्रावण शुक्ला सप्तमी दिनांक-14/8/1964 ई० ।
वर्षा योग-सं० 2021 में पपौरा क्षेत्र पर दीक्षा हुई पश्चात् क्रमशः श्री अतिशय क्षेत्र महावीरजी, कोटा, उदयपुर, प्रतापगढ़, टोडारायसिंह, भिण्डर, उदयपुर, अजमेर, निवाई, रेनवाल (किशनगढ़), सवाई माधोपुर, सीकर, रेनवाल (किशनगढ़), निवाई, निवाई, टोडारायसिंह आदि ।
जिन मुखोद् भव साहित्य सृजन –
1.टीका-श्रीमद् सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य विरचित त्रिलोकसार की सचित्र हिन्दी टीका।
2.. भट्टारक सकल कीर्त्याचार्य विरचित सिद्धान्त सार दीपक अपर नाम त्रैलोक्य दीपिका की हिन्दी टीका। 3. तिलोयपण्णत्ती-प्राचार्य यतिवृषभ प्रणीत की हिन्दी टीका।
मौलिक रचनाएँ –
1. श्रुत निकुञ्ज के किञ्चित् प्रसून (व्यवहार रत्नत्रय की उपयोगिता)
2 गुरु गौरव,
3. श्रावक सोपान और बारह भावना ।
संकलन –
1. शिवसागर स्मारिक.2आत्म प्रसून । आदि गुरु मां के चरणों में वन्दामी वंदामी