यह कैसी मजबूरी है..? कुर्ते पजामे पर शौले के वस्त्र पहनाकर एक अजैन से अर्घ समर्पित करवाना…
इन्दौर ! (देवपुरी वंदना) क्या अब जैन समाज में पूजा पद्धति की क्रिया और संस्कारों में भी इतनी छूट मिलने लगी है कि प्राचीन संस्कार,संस्कृति, परंपरा को ताक में रखकर श्रमण संघीय के सानिध्य व उपस्थिति मे कुछ भी हो सकता है .? जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण इंदौर की नवनिर्मित धर्म / धन प्रभाव समिति द्वारा हाल ही में गुणायतन प्रणेता शंका समाधान स्पेशलिस्ट मुनि श्री108 प्रमाण सागर जी महाराज का वर्ष – 2024 का चातुर्मास समाप्ति के अंतिम छौर पर है इसी के मध्य अष्टानिका पर्व पर सिद्ध चक्र महामंडल विधान में अर्घ समर्पित करने के लिए अजैन राजनेता को कुर्ते – पजामे पर शोले के वस्त्र पहनाना कौन सी मजबूरी रही और क्यों..?
क्या आयोजन स्थल की साफ – सफाई या अन्य लाभकारी सुविधा के लिए जैन समाज को इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी कि सामाजिक, संस्कृतिक, व प्रवचन जैसे आयोजन में अजैन राजनेताओं की उपस्थित तो मान्य रहती है मगर अब तो अपनी आस्था, श्रद्धा,भक्ति, संस्कृति पूजा पद्धति में भी बिना शुद्धता के आयोजन समिति द्वारा एक और नई परंपरा की शुरुआत की गई जिस में वहां उपस्थित प्रतिमा धारी भैया जी दीदी जी के साथ सिर्फ मात्र भोजन प्रेमी श्रावक जन भी मौन रहे .? जैन समाज के सामान्य श्रावक से विधान में बैठने के लिए लाखों करोड़ों रुपए एकत्रित किए गए क्यों..? क्या वह जैन समाज से नहीं थे या जिन्होंने दान नही दिया वह आयोजन समिति की श्रेणी से बाहर हो गया और उन से कोई लाभ नहीं मिल सका..?
यह कोई नेगेटिव या पॉजिटिव खबर नहीं है मैं भी जैन ही हूं व मुझे इसका प्रमाण देने की शायद आवश्यकता नहीं है, श्वेतपौश धारी भैया – दीदी व प्रतिमा धारी श्रावक श्राविकाओं के साथ-साथ इंदौर दिगंबर जैन समाज में नवनिर्मित धर्म / धन प्रभावना समिति के अशोक दोषी, नवीन गोधा, डी.के. जैन, हर्ष जैन, राहुल जैन, गजेंद्र जैन (गिन्नी ग्रुप), व अन्य पदाधिकारीयों और इंदौर शहर में विराजित मुनि श्री 108 विनम्र सागर जी, आचार्य श्री 108 कुमुदनंदी जी, मुनि श्री 108 पूज्य सागर जी, आचार्य श्री 108 विप्रणत सागरजी, आचार्य श्री 108 सिद्धांत सागर जी, आचार्य श्री 108 उदार सागर जी, मुनि श्री 108 सहज सागर जी ससंघ आदि से मन में उठे जिज्ञासा स्वरूप प्रश्न के उत्तर की आशा में…