दिगंबर जैन मुनि शांति सागर को बलात्कार के आरोप में 10 साल की सजा

इंदौर ! (देवपुरी वंदना) कहां गये समाज के वह शूरवीर जो एक कलमकार को समाज का पाठ पढ़ा रहे थे विगत दिनांक 15 / 10 / 2017 की एक जैन मुनि द्वारा समाज श्रावको को द्वारा पुनरावृति रोकने के समाचार को हटाने और न छापने का दबाव बना रहे थे ! ” देवपुरी वंदना” समाचार पत्र जिसने सच्चाई जानने के लिए समाचार बनाए थे ! जिस से देश समाज में ऐसी घटना दोबारा ना हो व सच्चाई से सभी समाज जन अवगत हो ऐसी सोच रखकर कलम चलाने वाले पर नाना प्रकार के आरोप जैसे नकारात्मक सोच, समाज द्रोही, मुनि निंदक, पैसे ऐठने वाला, नकली पत्रकार, समाचार पत्र से विघटनकारी जैसे-जैसे आरोप लगाकर दबाव बनाते हुए खबर को हटाने व न छापने की धमकी देने वाले श्वेत पोश के धनी व्यक्तित्व विशेष रखने वाले समाज के गणमान्य गण …
पुनः निवेदन है कि अगर सच्चाई का सामना ना कर सकते हो तो समाज का पाठ पढ़ाने से पहले स्वयं सोचे व सच्चाई को दबाने के दुष्परिणाम आपके सामने मौजूद है..?

जैन मुनि पर लगे बलात्कार के आरोपो पर सच्चे श्रावक की लेखनी क्या कहती है..?
ताकि सनद रहे…
देखो.. जरा संभल कर
वक्त ये कही कलंक न दे जाये
दिनांक 15.10.2017
बहुत ही शर्मसार हु मै अभी आधी रात को.. वजह वही है जो की देश भर के इलेक्ट्रानिक माध्यमो पर छायी हुयी है.. बलात्कार की.. बलात्कार.. हा बलात्कार.. वो भी ऐसे इंसान द्वारा जो की पूजनीय है.. आदर्श है.. वासनाओ के दमन का प्रतीक है.. और जो जैन है.. और सब से खास बात की अधिकतर लोग इस बात को पचा ही नही पा रहे है की किसी जैन मुनि ने ऐसा काम भी किया है..!
उन के विश्वास को ठेस लगी है.. उन का यकीं घायल हुआ है.. उन के आकलन को चोट पहुची है.. और ये सही भी है.. जैन दर्शन हजारो सालो तक कसौटी पर तोला गया है.. परखा गया है.. तब कही जा कर वो आज इस मुकाम पर है की उस के पंथ के संत पर आरोप लगे है मगर संसार यकीं करने को तैयार नही है.. ये दीगर बात है की जैन मुनि ने ऐसा कुछ किया भी है या उन्हें किसी षड्यंत्र के तहत फसाया गया है.. मामला कानून के हाथो में है मगर ख़ुशी होती है की इतने संगीन आरोप के बाद भी आम जनता यह मानती है की जल्द ही दूध का दूध होंगा और पानी का पानी.. और संत बेदाग हो कर फिर संयम के गीत गाएंगे.. यक़ीनन देश की जनता के लिए वो पल बड़ा ही सुखद होंगा जब साधू फिर से साधू का वेश धारण कर मोक्ष मार्ग की और अग्रसर होंगा.. मगर विषय यह नही है.. विषय यह है की आज यह नौबत आखिर आयी क्यू.. आखिर क्यू कोई साधू बलात्कार जैसे घटिया अपराध का अपराधी बन जैन तत्व और जैन दर्शन के मलिन होने में सहायक हो रहा है..? क्यू.. क्यू..? क्या इस की वजह कही हम तो नही.. क्या हम कही बहुत अधिक भक्त की जगह अंध भक्त तो नही हो रहे है.. क्या हम साधू निंदा न हो इस भय से उन की कुछ छोटी मोटी गलतियों को नजर अंदाज़ तो नही कर रहे है.. क्या हम उन की मुनि चर्या में कही भावावेश खलल तो नही डाल रहे है..? आत्म कल्याण के लिए जो व्यक्ति संसार को त्याग कर साधू बना है आज उन के पास वे तमाम लाव लश्कर मौजूद है जो मौजूदा गृहस्थ के पास बड़ी कठिनाइयों से उपलब्ध हो पाते है.. वे पैदल चलते है मगर साथ में गाडिया दौड़ती है.. कहा से आयी वे गाडिया..? हम ने ही तो ही दी है न..! और उन गाडियो को तेल भी तो लगता होंगा न.. वो कौन भरता होंगा.. साधू के पास तो कपडे भी नही है.. जब कपडे नही है तो यक़ीनन जेब भी नही है और जब जेब ही नही है तो पैसे कहा से आये.. तो ये तेल भी समाज ही उन गाड़ियो में भरती है.. और इन के साथ में नोकर चाकरो का काफिला भी तो होता है.. तो उन की पगार..? कौन देता है उन की सेवा की कीमत..? हम देते है.. समाज देती है.. यह बात समझ से परे है की सब कुछ छोड़ कर पंचम गति की और अग्रसर होने की भावना से निकले इंसान को हम क्यू इन झंझालो में उलझा देते है.. फसा देते है.
हम स्वयं अपने नाम के लिए और लोग क्या कहेंगे इस डर के मारे उन्हें अधिक से अधिक गरिष्ठ भोजन देने की फ़िराक में रहते है.. फलाने ने चौके में अगर दस वस्तुए बनायीं है तो हम बिस बना कर उसे निचा दिखाने की कोशिश करते है.. हम भूल जाते है की वो साधू है स्वादु नही.. हम गर्व से प्रदर्शन करते है की हम ने आज चौके में इतने पकवान बनाये.. हम निंदा करते है की फलाना देखो कैसा कंजूस है.. महाराज जी का आहार हुआ तो सिर्फ दाल रोटी सब्जी ही बनायी.. साधू संतो पर दोष मढ़ने वालो ये हमारे अपने दोष है.. साधू अपराधी नही है.. साधू स्वादु नही है मगर हम ने उसे राह से भटकाने में कोई कसर बाकी नही रखी है.. जैन दर्शन के पालन कर्ता संतो के लिए कठोर नियमावली है.. वे उन नियमो का पालन भी करते है क्यू की दीक्षा के पूर्व उन्हें इस बाबत पूर्ण जानकारी होती है मगर हम है की उन से कुछ विशेष कृपा चाहते है.. हम प्रत्यन करते है की साधू बस एक बार हम को देख ले.. एक बार आशीर्वाद दे दे.. एक बार उन के चरण हमारे घर फैक्टरी में पड़े.. एक बार वे कोई मंत्र फूँक दे.. हम लोगो के बिच यह वाक्य बहुत आम है की देखो.. इतने दूर से महाराज के दर्शन करने आये है और महाराज ने हम को देखा भी नही.. हम गुस्सा हो जाते है की संत दुसरो को समय दे रहे है और हमे नजर अंदाज कर रहे है.. हम उन के व्रतो को तोड़ते है.. हम उन के तप में बाधक बनते है.. यह सोचने वाली बात है जब तब की सब कुछ छोड़ा और त्यागा जा चूका है तब हम क्यू संतो को अपना नाम या अपने शहर गाँव की समाज का नाम ऊँचा करने हेतु वाहन दे देते है.. उन के बोलने पर क्यू बड़े बड़े बिल चुकता कर दिए जाते है.. क्यू उन के खालिस तप साधना के समय नामचीन लोगो को बुला कर व्यधान डालते है.. क्यू नही हम उन्हें यह पूछते है की हम श्रावको का धर्म क्या है.. क्यू हम नही पढ़ते की संतो की अपनी क्या मर्यादा है.. क्यू हम उन्हें अपनी धन दौलत से आकर्षित करने की कोशिश करते है.. क्यू हम उन की कुछ बेजा मांग को स्वीकार करते है..?
मुझे इस बात पर पूरा यकीं है की आज भी माँ जिनवाणी के ये सभी पुत्र जो देश भर में विचरण कर रहे है बहुत ही उच्च कोटि के चारित्र को धारण किये हुए है.. उन की तपस्या अदभुत् है.. उन की साधना मन मोहने वाली है.. उन की दिन चर्या कठोरतम है.. और गर ऐसा न होता तो आज जैन साधू सर्वश्रेष्ठ ऊंचाइयां लिए हुआ नही होता.. साधू के पीछे रोटियाँ नही दौड़ती.. एक साधू पर लगे आरोप मात्र से रमेश तोरावत की कलम आधी रात को नही उठती.. तो इन बातो से यह सवाल उठना लाजमी है की आखिर अब हमे करना क्या है.. इस का बहुत सरल सा जवाब है की हमे संतो के तप में बाधक नही बनना है.. हमे यह ध्यान रखना है की हमारी किसी भी छोटी मोटी बातो से उन के तप की विराधना न हो.. हमे उन्हें भेंट देने से बचना है.. हमे उन्हें नही ललचाना है की हम उन के नाम के किचन बना कर वितरित कर रहे है.. साधू संत भी हम इंसानो के बिच में से गए लोग ही है सो कभी कोई साधू किसी चीज की मांग भी कर दे तो दस बार सोच समझ कर ही इस दिशा में कदम उठाना है और हमारे मन में हमेशा यह भाव रहे की हमारे कारण कही उनका व्रत न भंग हो जाये.. यदि हमे कुछ समझ न आये तो किसी बड़े ज्ञानी साधू या विदवान से चर्चा कर आगे बढे.. इस बात को हमेशा ध्यान में रखे की हमारे साधू का सब से अनमोल धन पिच्छी और कमंडल है.. उन की नियमावली में इस के अलावा कोई और चीज उन के पास होना मतलब की उन के तप का भंग होना है.. सो हम सब यह प्रण करे की आज के बाद संतो को हम अपने भरम में नही उल्झायेंगे.. उन के लिए खूब चौके लगाएंगे मगर सिर्फ माँ जिनवाणी के निर्देनुशार ही व्यंजन बनाएंगे.. उन की खूब भक्ति करेंगे मगर उन्हें एकांत में नही छोड़ेंगे.. उन के महान विचारो को अंकित करने के लिए कागज कलम उपलब्ध करवाएंगे मगर मोबाईल लैपटॉप का उन्हें लालच नही देंगे.. अक्सर हम स्वयं ही बोलते है की पंचम काल है.. इतना तो सब चलता ही है.. महाराज जी जब माइक पर बोलते है तो मोबाईल पर बोल दिया तो क्या फर्क पड़ता है.. हम उन्हें मोबाईल भेंट करने हेतु तत्पर होते है यह भूल कर की मोबाईल दे भी दिया तो संत उस में रिचार्ज कैसे करवाएंगे जैसा की ऊपर आ चूका है की कपड़े नही तो जेब नही और जेब नही तो पैसे नही.. एक मोबाईल किसी साधू का पूरा संसार फिर शुरू कर सकता है इस बात का पूरा ध्यान रहे.. ध्यान रहे मै किसी भी साधू संत को मोबाईल के लिए दोषी नही ठहरा रहा हु क्यू की वे बैरागी है.. उन्होंने संसार त्यागा है.. उन के पास मोबाईल के लिए पैसे भला कहा से आएंगे.. किसी इक्का दुक्का संत के पास मोबाईल होंगा भी तो वो हमने ही उन्हें उपलब्ध कराया है.. हमे उन सभी नाजुक पलो को सुरक्षित करना होंगा जहाँ से कोई कलंक हमारे जैन दर्शन को मलिन कर सकता है.. हमे संतो की खूब सेवा करनी है और बिना दरवाजे के उन के निवास को प्रथमिकता देनी है.. संतो के लिए यदि कोई नव निर्माण शुरू भी तो अभी से ध्यान रखा जाए की उन कमरो के दरवाजे न हो.. उनकी सभी से मुलाकाते सार्वजनिक हो और एकांत में चर्चा जैसी कोई बात न हो.. माँ जिनवाणी का गहन अध्यन किया जाए और उन में बताये गए नियमो का कठोरता से पालन किया जाए.. आजकल तो सी.सी.टीवी कैमरे हर जगह लगभग लग ही चुके है और जहा कही नही लगे है वहा तुरंत लगाये जाए.. मुझे इस बात में कोई बुराई नजर नही आती की मातृशक्ति एकांत में संतो के दर्शन करे मगर समय बड़ा ही गम्भीर है और वक्त का तकाजा भी है सो हो सके तो समूह में ही दर्शनादि आदि का लाभ ले.. मंदिरो और त्यागी निवास में साधुओ की आदर्श आचार सहिंता के सुचना फलक लगाये जाये जिस से की संतो की मर्यादा का उल्घंन हम श्रावक कर न सके.. कोई भक्त अंध भक्ति में ऐसा करे भी तो अन्य समाज बंधु उसे सुचना फलक पढ़ कर रोक सकते है.. क्यू की जब तक हमे स्वयं ही पता नही की माँ जिनवाणी के आदेश क्या है हम संत फकीर को क्या कहेंगे.. यूँ होता तो नही ही है मगर मान लीजिये कोई साधू माँ जिनवाणी के आदेश के विपरीत किसी वस्तु की अपेक्षा करे तो उन्हें नम्रता और विनीत भाव से मना करे और सुचना फलक उन्हें पढ़ने हेतु प्रेरित करे.. हमे भी यह बात समाज में सार्वजनिक रूप से न कहते हुए कुछ प्रमुख कार्यकर्ताओ को मुनि निंदा भय से रहित हो कर बतानी चाहिए.. बहुधा यह डर गहरा पैठ गया है की मुनि निंदा से घोर नर्क का बंध होता है.. मगर जहा तक मेरा अपना मानना है की कोई सच बात हो और वो हम बिना किसी दुर्भाव के.. संत की साधना में साधक बन कर कहे तो कोई पाप नही होता है.. इस के उलट दोषो को छुपाने पर जरूर पाप बंध होंगा इस में कोई दो मत नही.. बरहाल मेरे इस लेख को कोई भी मुनि विरोधी लेख न समझे क्यू की संतो के प्रति मेरी भक्ति जग जाहिर है.. यह लेख श्रावको के खिलाफ जरूर कह सकते है क्यू की सारी हिदायते मैने संतो को नही बल्कि श्रावको को दी है.. भक्तो को दी है.. यूँ होता तो नही ही है मगर मान लीजिये कोई साधू माँ जिनवाणी के आदेश के विपरीत किसी वस्तु की अपेक्षा करे तो उन्हें नम्रता और विनीत भाव से मना करे और सुचना फलक उन्हें पढ़ने हेतु प्रेरित करे.. हमे भी यह बात समाज में सार्वजनिक रूप से न कहते हुए कुछ प्रमुख कार्यकर्ताओ को मुनि निंदा भय से रहित हो कर बतानी चाहिए.. बहुधा यह डर गहरा पैठ गया है की मुनि निंदा से घोर नर्क का बंध होता है.. मगर जहा तक मेरा अपना मानना है की कोई सच बात हो और वो हम बिना किसी दुर्भाव के.. संत की साधना में साधक बन कर कहे तो कोई पाप नही होता है.. इस के उलट दोषो को छुपाने पर जरूर पाप बंध होंगा इस में कोई दो मत नही.. बरहाल मेरे इस लेख को कोई भी मुनि विरोधी लेख न समझे क्यू की संतो के प्रति मेरी भक्ति जग जाहिर है.. यह लेख श्रावको के खिलाफ जरूर कह सकते है क्यू की सारी हिदायते मैने संतो को नही बल्कि श्रावको को दी है.. भक्तो को दी है.. इस लेख को गिरफ्तार मुनि के विरोध में भी न समझा जाए क्यू की मुनि श्री अभी मात्र गिरफ्तार हुए है.. उन पर आरोप सिद्ध नही हुए है.. जब तक अदालत अपना निर्णय नही दे देती सब बाते बेकार है मगर हा यह जरूर समझा जाए की मुनि श्री पर लगे आरोपो ने मुझे कही बहूत भीतर तक चोटिल किया है और इस लेख की वजह वही है.. बरहाल इतना तो तय है की जग में किरकिरी तो हमारी हुयी है.. जग हँसाई सब के सीने को भेदे जा रही है और अब ये समय आ गया है कहने का की पूरा अहिंसा मय जैन समाज सच के साथ है.. मुनि श्री दोषी है तो उन के साथ कोई रियायत नही बरती जाए.. उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाए.. समाज भी संकल्प ले की दोषी का साथ कभी नही देंगी और इस के बनिस्पत कही कोई षड्यंत्र है तो दोषियों को जरा भी बख्शा न जाए.. और अंत में मै यही कहूँगा की विश्व में उच्चतम स्थान रखने वाले जैन धर्म का तत्वों और विवेक से बड़ा नाता है.. यह तत्व प्रधान धर्म है.. यह विवेक को तरफदारी करता है.. इस धर्म में भक्तो के भगवान बन जाने का विधान है.. इस धर्म में आँखे बंद कर भक्ति का सर्वथा निषेध है और जब इतने खुले हुए धर्म के हम अनुयायी है तो हमारा भी कर्तव्य बनता है की हम भी इसे नई ऊंचाई दे और ये काम हम शुरू कर सकते है.. आज से.. अभी से.. इसी समय.. तुरन्त.. सभी मंदिरो में संतो की आदर्श आचार सहिंता का फलक लगा कर.. संतो के प्रति स्वयं अपने फर्ज को जान कर उन्हें संभाल कर.. स्वयं संभल कर.. उन की राहे तो प्रशस्त तो है ही.. स्वयं अपनी भी मंजिल भी निश्चित कर.. और हा हमारी मंजिल संतो की मंजिल से कदापि भी जुदा नही होनी चाहिए.. अनेक अनेक धन्यवाद.
रमेश तोरावत जैन✍🏻
अकोला (महा.)
मो.न. 9822429414
9028371436

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