आचार्य श्री 108 विनिश्चय सागर जी महाराज का कलकत्ता से इंदौर की ओर विहार चल रहा है भोपाल में हुआ मंगल प्रवेश
भोपाल ! भरत जैन सेठ ‘घुवारा’ ✍🏻( देवपुरी वंदना ) बुन्देलखण्ड के प्रथमाचार्य, भारत गौरव, राष्ट्र संत गणाचार्य श्री 108 विराग सागरजी महा मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य परम पूज्य आचार्य श्री 108 विनिश्चय सागर जी महाराज 9 पिच्छी का मंगल विहार कोलकाता से इंदौर के लिए चल रहा है। विगत दिवस भानपुर जैन मंदिर भोपाल में आचार्य संघ का गाजे- बाजे के साथ भव्य मंगल प्रवेश हुआ !
परम पूज्य आचार्य श्री ने अपनी मांगलिक वाणी से उपस्थित सैकड़ो धर्मावलंबी भाव विभोर होकर जिनवाणी का रसपान करते नजर आये। आचार्य श्री ने अपने प्रवचन मे कहा कि आचार्य परमेष्ठी एक ऐसे परमेष्ठी है जो हमारी आँखों के सामने होते है। ऐसा कम काल रहा कि जब आचार्य परमेष्ठी गृहस्थो के सामने ना रहे हो । क्या है जिन्हें हम महामंत्र के तीसरे पद में बार बार रोज याद करते है हम रोज बोलते है णमो आयरियाणं । यदि इस पद के लिए आचार्य परमेष्ठी के स्वरुप के साथबोला जाये तो महामंत्र कार्यकारी होगा जैसे ही हम णमो आयरियाणं बोलते है तो मन एकाग्र होना चाहिए उनका स्वरुप हमारी द्रष्टि में आना चाहिए, यदि सही भाव के साथ आत्मसात कर रहे है तो वो कर सकता है जो आप सोच भी नहीं सकते । णमो आयरियाणं सिर्फ सिर्फ पढने के लिए नहीं है यह तो सर्वोपरि चारित्र का प्रतीक है। आचार्य पूज्य पाद स्वामी लिखते है कि आचार्य परमेष्ठी एक विशाल बट वृक्ष है, सम्यक दर्शन उस वृक्ष की जड़ है। कोई भी वृक्ष बिना जड़ के नहीं रुक सकता । जड़े जितनी मजबूत होंगी वृक्ष सैकड़ो वर्षों तक ठहर सकता है। समीचीन पदार्थ पर श्रद्धान करना सम्यक दर्शन है जो जैसा है वैसा ही श्रद्धान करना सम्यक दर्शन है द्यवृक्ष को मजबूती स्कन्ध से मिलती है स्कन्ध क्या है समयक ज्ञान। धर्म कहता है ज्यादा जानने की आवश्यकता नहीं है, वो तो यह कहता है कि जो जैसा है वैसा जानो । हम आत्मा को ही शरीर और शरीर को ही आत्मा मान बैठे है यह ज्ञान सही नहीं है यह जो वृक्ष की शाखाए है यह चारित्र है। जो हमारा रहन सहन है वही तो चारित्र है। अपने बच्चे को गर्भ से ही संस्कार दे, क्यों कि इस समय दिया गया संस्कार मजबूती से जम जाता है। उस भील ने म्रत्यु को स्वीकार कर लिया लेकिन कौवे का मांस खाना स्वीकार नहीं किया क्यों कि उसने वह नियमआचार्य परमेष्ठी से लिया था। जब वह भील आचार्य परमेष्ठी के नियम को आधार बनाकर स्वर्ग की पर्याय को प्राप्त कर सकता है तो हम क्यों नहीं ।आचार्य परमेष्ठी का गुण दूरदर्शिता है तुम कल को देख रहे वो हजारो हजारो
वर्ष आगे की देख रहे है।