क्या ? कुंडलपुर महोत्सव में पधारे राजनेताओं से तीर्थ गिरनार पर हुए कब्जे की चर्चा होगी ?

इंदौर ! (देवपुरी वंदना) देश ही नहीं विदेशों में भी निवासरत श्रावको से भरे कुंडलपुर तीर्थ क्षेत्र का आयोजन एक स्वर्णिम हस्ताक्षर सा बनता जा रहा है इसकी प्रशंसा जितनी की जाए उतनी कम है आचार्यश्री का प्रभाव ही है जो कि इस सदी का अनोखा आयोजन हो रहा है जिसकी साक्षी श्रावक – श्राविकाओ के साथ पुण्य धरा पर मौजूद सभी जीव इस समय का लाभ ले रहे हैं । हमारी संस्कार संस्कृति के रक्षर्थ वहां पर उपस्थित श्रमण संस्कृति से निवेदन हे कि हमारे पौराणिक धरोहर तीर्थ गिरनार पर हुए कब्जे से मुक्ति दिलाने के लिए कुंडलपुर में पधार रहे नेता राजनेताओं सै चर्चा कर धरोहर को पुनः स्वतंत्र रुप से जैन समाज को सोपे जाने की पहल करें । कहां जाता है कि विभक्त समाज अधो गति को प्राप्त होता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आपके सामने मौजूद है जबकि संगठित समाज सफलता की बुलंदियों को स्पर्श करता है मगर आज दिगंबर जैन समाज मैं अपनी महत्वकांक्षा लालसा के चलते नाम पद की चाहत में आपसी प्रतिद्वंदिता से उपजे मनमुटाव ने समाज में विभाजन की एक दीवार खड़ी कर दी है ! जिससे हमारा समाज सिर्फ हंसी का पात्र बनकर रह गया साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में पिछड़ता चला जा रहा है । और हमारी संस्कार- संस्कृति पर कब्जा होते जा रहा है जिससे कोई अनजान नहीं है। बस आपसी मतभेद बढ़ता जा रहा है जिसका लाभ अन्य सभी ले रहे हैं सिर्फ जैन समाज नहीं ? हमारी आपसी फूट
हमारी धरोहर अब दूसरों की आमदनी का साधन बनती जा रही हैं क्या पद प्राप्ति का तात्पर्य ही समाज सेवा या समाज उन्नति है आजकल धन के बलबूते पर समाज में आगे बढ़ना ही समाज सेवा है या करना माना जाता है तो बात यही समाप्त हो जाना

चाहिए फिर हमे किसी पर दोषा –
रोपण नहीं करना चाहिए और नहीं हमें पदैन पदाधिकारियों की कमी व ग़लतियो से उसे अवगत कराना चाहिए ।
मगर हम अपने पूर्वजों या हमारी नई पीढ़ी को देखें तो हमें आज हमारी विध्वंसकारी सोच पर विचार करना होगा सदियों से चली आ रही हमारी सामाजिक परंपरा के अनुरुप समाज संस्कृति के प्रतीक हमारी आस्था श्रद्धा भक्ति की सीढ़ी हमारी धरोहर ही हमें एक सूत्र में बांधने रखती यह हमारे लिए बहुत गर्व की बात है
समाज की संस्कार संस्कृति को बचाएं रखने के लिए एक दशक पूर्व से जैन समाज में समाजसेवी संस्थाओं को बनाया गया था जिसमें प्रमुख रूप से नाम तो बहुत चला इन संस्थाओं के काम से भी सभी अवगत हैं इन जैसी अन्य राष्ट्रीय संगठन भी बनाया साथ ही क्षेत्रीय स्थानीय कमेटी संघ बने मगर उसका परिणाम सब के सामने है हमारे बावीसवे तीर्थंकर 1008 नेमिनाथ भगवान की निर्वाण स्थली है जो अब जैन समाज की ना होकर अजैनी बनकर रह गई है आज समाज की उदासीनता और पदैन पदाधिकारियों की अपनी महत्वकांक्षाओं से हम अपनी धरोहर खोते जा रहे हे
अभी देखा जाए तो हमारा समाज सिर्फ पंथ -वाद , संत -वाद नर- नारी पूजा पद्धति के नाम से ही आपस में उलझता नजर आ रहा है । गिरनार जी को सरकार ने पुरातन धरोहर घोषित तो किया है जिसमें छेड़छाड़ करना गलत हे इसका बहुत बड़ा दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा !
देवपुरी वंदना समाचार परिवार कुंडलपुर में विराजित सभी श्रमण संस्कृति व समाज के सभी दानवीरों श्रेष्ठी जनों समाज की विभिन्न संस्थाओं में पदैन पदाधिकारियो, व जैन समाज के जागरुक श्रावको से निवेदन करता है ! कि हमारी ऐतिहासिक पौराणिक धरोहरों को बचाने में सहयोग प्रदान करें । जिससे कहीं और भी इस तरह की पुनरावृति नहीं हो ! बस इतना सा निवेदन है अपनी महत्वकांक्षा व आपसी मन मुटाव मत भेद को मन भेद न बनाएं और सभी बातों को विराम देते हुए अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ कर जाएं
वरना,अब जैन समाज के तीर्थ किताबों में ही सिमट कर रह जाएगे ।

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