29 मार्च को अखिल भारतीय जैन ज्योतिषाचार्य परिषद का पांचवा राष्ट्रीय अधिवेशन श्री महावीर जी मे

दिल्ली ! ( देवपुरी वंदना ) अनादि काल से भारतीय संस्कृति की अनुपम धरोहर जैन ज्योतिष को विश्व पटल पर अंकित कराने के लिए संकल्पित अखिल भारतीय जैन ज्योतिषाचार्य परिषद दिल्ली के तत्वाधान में आयोजित पंचम  राष्ट्रीय  अधिवेशन में पूरे देश के प्रसिद्ध जैन ज्योतिषाचार्य ” जैन आगम के अनुसार समस्या समाधान ” विषय पर चर्चा करेंगे।
संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष “पारस व आदिनाथ चैनल फेम” रवि जैन गुरुजी दिल्ली (विख्यात जैन ज्योतिषाचार्य ) कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे
रोचक ज्ञानवर्धक और सभी जिज्ञासाओं का समाधान लिए ज्योतिषाचार्य अद्भुत व उचित मार्गदर्शन लिए राष्ट्रीय अधिवेशन का आगाज आगामी मंगलवार 29 मार्च 2022 को दोपहर 12:30 बजे विश्व प्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र श्री 1008 महावीर जी की पुण्य धरा पर होगा।
अधिवेशन को जिन धर्म प्रभाविका परम पूज्य आर्यिका रत्न श्री 105 सृष्टि भूषण माताजी के पावन सान्निध्य में 29 वे दीक्षा दिवस के शुभ अवसर पर मनाया जायेगा। विख्यात आयोजन मे मंगल निर्देशन बाल ब्रह्मचारी नेहा दीदी का रहेगा।
अखिल भारतीय जैन ज्योतिषाचार्य परिषद के महामंत्री डॉ हुकुमचंद जैन ग्वालियर ने जानकारी देते हुए बताया कि अधिवेशन में देश के विभिन्न प्रांतों जैसे दिल्ली, मेरठ ,पुणे, देवबंद, बेंगलुरु, मुम्बई, रायपुर, पारसनाथ, अहमदाबाद, मुरादाबाद, इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन, जयपुर, जबलपुर, कोल्हापुर, नोएडा, नीमच, सोलापुर,अजमेर, उदयपुर, भोपाल, बड़ौत, व दिल्ली एनसीआर से आदि से वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य सम्मिलित होंगे !
अधिवेशन का आयोजक श्री आदि सृष्टि मंगलम समिति श्री महावीरजी ( राज.) कर रहा है।
ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। इसे सीखना आसान नहीं है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद यह्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र की व्युत्पत्ति ‘ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्‌’ की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं रहा यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति ‘द्युत दीप्तों’ धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।
छः प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोपरी महत्व को धारण करते हुए मूर्धन्य स्थान को प्राप्त होता है। सायणाचार्य ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में लिखा है कि ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन अनुष्ठेय यज्ञ के उचित काल का संशोधन करना है। यदि ज्योतिष न हो तो मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र, ऋतु, अयन आदि सब विषय उलट-पुलट हो जाएँ।
ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मनुष्य आकाशीय-चमत्कारों से परिचित होता है। फलतः वह जनसाधारण को सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्र-सूर्य ग्रहण, ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, ग्रह युद्ध, चन्द्र श्रृगान्नति, ऋतु परिवर्तन, अयन एवं मौसम के बारे में सही-सही व महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसलिए ज्योतिष विद्या का बड़ा महत्व है।
महर्षि वशिष्ठ का कहना है कि प्रत्येक ब्राह्मण को निष्कारण पुण्यदायी इस रहस्यमय विद्या का भली-भाँति अध्ययन करना चाहिए क्योंकि इसके ज्ञान से धर्म-अर्थ-मोक्ष और अग्रगण्य यश की प्राप्ति होती है। एक अन्य ऋषि के अनुसार ज्योतिष के दुर्गम्य भाग्यचक्र को पहचान पाना बहुत कठिन है परन्तु जो जान लेते हैं, वे इस लोक से सुख-सम्पन्नता व प्रसिद्धि को प्राप्त करते हैं तथा मृत्यु के उपरान्त स्वर्ग-लोक को शोभित करते हैं।
ज्योतिष वास्तव में संभावनाओं का शास्त्र है। सारावली के अनुसार इस शास्त्र का सही ज्ञान मनुष्य के धन अर्जित करने में बड़ा सहायक होता है क्योंकि ज्योतिष जब शुभ समय बताता है तो किसी भी कार्य में हाथ डालने पर सफलता की प्राप्ति होती है इसके विपरीत स्थिति होने पर व्यक्ति उस कार्य में हाथ नहीं डालता।
ज्योतिष ऐसा दिलचस्प विज्ञान है, जो जीवन की अनजान राहों में मित्रों और शुभचिन्तकों की श्रृंखला खड़ी कर देता है। इतना ही नहीं इसके अध्ययन से व्यक्ति को धन, यश व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। इस शास्त्र के अध्ययन से शूद्र व्यक्ति भी परम पूजनीय पद को प्राप्त कर जाता है। वृहदसंहिता में वराहमिहिर ने तो यहां तक कहा है कि यदि व्यक्ति अपवित्र, शूद्र या मलेच्छ हो अथवा यवन भी हो, तो इस शास्त्र के विधिवत अध्ययन से ऋषि के समान पूज्य, आदर व श्रद्धा का पात्र बन जाता है।
ज्योतिष सूचना व संभावनाओं का शास्त्र है। ज्योतिष गणना के अनुसार अष्टमी व पूर्णिमा को समुद्र में ज्वार-भाटे का समय निश्चित किया जाता है। वैज्ञानिक चन्द्र तिथियों व नक्षत्रों का प्रयोग अब कृषि में करने लगे हैं। ज्योतिष शास्त्र भविष्य में होने वाली दुर्घटनाओं व कठिनाइयों के प्रति मनुष्य को सावधान कर देता है। रोग निदान में भी ज्योतिष का बड़ा योगदान है।
दैनिक जीवन में हम देखते हैं कि जहां बड़े-बड़े चिकित्सक असफल हो जाते हैं, डॉक्टर थककर बीमारी व मरीज से निराश हो जाते हैं वही मन्त्र-आशीर्वाद, प्रार्थनाएँ, व अनुष्ठान काम कर जाते हैं।

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