गोवा दिगंबर जैन मंदिर में 27 मार्च से श्री 1008 भक्तांबर महामंडल विधान का आयोजन
गोवा ! (देवपुरी वंदना ) श्री 1008 भक्तांबर महामंडल विधान में भगवान 1008 श्री आदिनाथ जी के गुणों का स्तवन एवं महिमा का वर्णन ही जिसमें 48 श्लोकों से संयुक्त इस विधान में अपने आप में एक असीम शक्ति का महत्व देखा गया है श्री भक्तांबर महामंडल विधान में बैठने और पाठ करने से मानव जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता है इसी मंगल भावना से विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थली अरब सागर के तट पर स्थित गोवा के जरीवाडा , मुगाली -दव्ली मडगांव गोवा के श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर मे जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर 1008 श्री आदिनाथ तीर्थंकर के जन्म, तप ,कल्याण के पावन पुनीत अवसर एवं गोवा की पवित्र पावन भूमि स्थित मंदिर के 15 वर्ष पूर्ण होने के आनंदमई समय आने पर समाधिष्ट परम पूज्य गिरनार गोरव आचार्य श्री 108 निर्मल सागर जी महाराज एवं परम पूज्य गणधराचार्य श्री 108 कुंथुसागर जी महाराज और परम पूज्य आचार्य श्री 108 वासु पूज्य सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद और हमारे प्रेरणा पुंज परम पूज्य कर्मयोगी क्षुल्लक रत्न श्री 105 समर्पण सागर जी महाराज के निर्देशन एवं नेतृत्व में आगामी रविवार 27 मार्च 2022 से प्रातः 8:00 बजे से श्री 1008 भक्तांबर महामंडल विधान का आयोजन किया जा रहा है । जिसमें गोवा के सकल जैन समाज इस विधान का लाभ लेंगे ।
जैन भक्ति साहित्यों में भक्तामर स्रोत अपने आप में बहुत बड़ा स्थान रखत है। श्री भक्तामर स्रोत उस समय रचा गया था जब दिगंबर आचार्य श्री 108 मानतुंग स्वामी से वहां के राजा ने कहा कि आप जैन धर्म का कुछ चमत्कार दिखाओ, दिगंबर संत निस्पृही होते हैं। यद्यपि उनकी साधना से अनेकों ऋद्धि-सिद्धियां प्रगट हो जाती है और उनसे कई प्रकार के बड़े-बड़े चमत्कार सरलता से हो जाया करते हैं। उनकी भक्ति करने वाले भक्तों की भी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। बिगड़े काम बन जाते हैं। पर दिगंबर संतों की यह विशेषता रहती है कि वे अपने चमत्कारों को प्रगट नहीं करना चाहते। यही कारण था कि उस समय के राजा ने कुपित होकर उन मुनिराज को कारागार में डलवा दिया। 48 तालौ के अंदर उन्हें कैद करा दिया। उस समय कैद खानों के अंदर मानतुंग आचार्य श्री ने भगवान 1008 श्री आदिनाथ जी की स्तुति करना प्रारंभ की। स्तुति में वे इतने लीन हो गए कि भक्तामर स्रोत के एक-एक करके 48 काव्यो की रचना कर दी। उधर मानतुंग स्वामी भक्ति में डूबते जा रहे थे और उधर उनके शरीर पर बंधी हुई जंजीरें, द्वारों पर लगे 48 ताले एक-एक करके स्वत: खुलते जा रहे थे। वहां के राजा को जब इस चमत्कार का पता चला तो वह दौडक़र आए और मानतुंग आचार्य श्री के चरणों में नतमस्तक हो अपने अपराधों की क्षमा मांगी। यह ऐसा चमत्कारी स्रोत है कि जिसको पढऩे से व्यक्ति के भयंकर संकट दूर हो जाते हैं। बड़े से बड़े रोग ठीक हो जाते हैं और संसार की संपूर्ण सुख-शांति प्राप्त हो जाती है। इसलिए हम सभी सच्चे मन से भगवान की भक्ति करें, भक्तामर स्रोत के माध्यम से श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर गोवा मैं हो रहे श्री 1008 भक्तामर महामंडल विधान की आराधना कर अपने जीवन को सुख-शांतिमय बनावें। महामंडल विधान के आयोजक नव निर्माण दिगंबर जैन मंडल गोवा ट्रस्ट ने सभी साधर्मी बंधुओं से लाभ लेने का आहवान किया ।
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भरत दोशी
9822485525