किस अधिकार से अजमेर जैन समाज के कुछ व्यक्तियों ने अनुभव सागर जी के साथ मारपीट कर कपड़े पहनाएं

इंदौर ! ( देवपुरी वंदना )
कहां जाता है एक श्रावक व संत की चर्याओं में बड़ा अंतर होता है यह तो समाज का बच्चा बच्चा भी जानता है ।
फिर अजमेर जैन समाज के कुछ समाज सुधारक ठेकेदार क्या किसी संत से बढ़कर हो गए या उन्हें संत की होने वाली सभी आवश्यक क्रिया योजना का संपूर्ण ज्ञान हो गया है अगर ऐसा है तो पहले वह अपने स्थानीय समाज के सभी श्रावक जन के बीच अपना सभी ‌ ज्ञान रखते फिर उसके बाद किसी संत के साथ ऐसा व्यवहार करते तो शायद संपूर्ण देश के जैन समाज में वह समाज सुधारक के नाम से एक मिशाल बन जाते ।
मगर अफसोस इस बात का है कि अजमेर के स्थानीय जैन समाज का एक धड़ा ही उनके इस कृत्य का बड़ा विरोध कर रहा है ?
जो समाज के ठेकेदार अपने ही स्थानीय समाज में अपनी बात से सभी को संतुष्ट नहीं कर पाए तो देश दुनिया की तो अलग ही बात हो जाती है
समाज में श्रमण संस्कृति सुधारक बुद्धिजीवियों से सिर्फ एक निवेदन है कि वह ऐसे ठोस सबूत या प्रमाण समाज के सामने रखें जिससे उनके द्वारा किए गए कार्यों की प्रशंसा की जाए ।
क्या उनके पास ऐसे कोई ठोस प्रमाण है जिससे अनुभव सागर की गतिविधियों या क्रिया पर उन्हें अंकुश लगाने के लिए इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा ।
जब उन्हें संत की गलत क्रिया का पता चला तब उन्होंने स्वयं निर्णय लेते हुए वकील और जज की भूमिका के साथ निर्णय सुना दिया ?
क्या उन्होंने ही अनुभव सागर को संत बनाया था ? या संपूर्ण समाज में चल रही श्रमण- संस्कृति का संचालन वही करते हैं या उनके कंधों पर ही समाज सुधार का भार है।
क्या उनको स्थानीय या देश दुनिया की जैन समाज व श्रमण – संस्कृति के आचार्यों ने प्रमाण – पत्र देते हुए नियुक्त किया है कि आप ही समाज सुधारक के ठेकेदार हैं जैन समाज में आपका निर्णय ही सर्वमान्य रहेगा।
देश के न्यायालय में अगर जज बिना किसी जानकारी के निर्णय सुना दे तो न्यायालय पर कौन भरोसा करेगा सही- गलत का निर्णय लेने से पूर्व वह भी पक्ष विपक्ष की सुनता है?
मगर अजमेर जैन समाज के समाज सुधारक जजों ने अपने निर्णय को किस प्रकार क्रियान्वित किया जिससे कोई अनभिज्ञ नहीं है।
अगर कहीं पर किसी भी छोटे से परिवार में भी कोई बात होती है तो सबसे पहले घर व परिवार के सदस्य ही आपस में सामंजस्य बैठा कर निर्णय लेते यह तो सभी जानते हैं मगर क्या पता अजमेर जैन समाज के समाज सुधारक ठेकेदारों के परिवारों की बात सदैव सार्वजनिक होती है या करते होंगे यह तो उनका निर्णय है।

अजमेर स्थित बड़ा धड़ा पंचायत के अध्यक्ष प्रदीप पाटनी के विचार ‌:-

जय जिनेंद्र आप सभी को मैं प्रदीप पाटनी अध्यक्ष बड़ा धड़ा पंचायत आपको अपनी बात रखना चाहता हूं जो दृश्य पिछले 3 दिनों में अजमेर की इस धरा पर हुआ वह निंदनीय है अशोभनीय है आलोचना के लायक है लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में हर जगह मेरे नाम का प्रयोग किया गया सत्य यह है कि मैं ही वह शख्स था जिसने यह बात रखी कि हमें केवल साधु को समझाना है गलती का एहसास कराना है लेकिन उनको कपड़े नहीं पहनाना है क्योंकि यह विषय जिन्होंने इन को दीक्षा दी उनका है आप और हमारा विषय नहीं है लेकिन उस मीटिंग में धोखे में रखा गया और वहां जाकर इस घटना को अंजाम दिया गया मेरा मन बहुत दुखी है कि मैं इस घटना में इस दृश्य को नहीं रोक पाया मैंने बहुत कोशिश लेकिन जिन्होंने भी यह षड्यंत्र रचा उस षड्यंत्र को मैं नहीं भेद पाया
जिस प्रतिनिधि मंडल का नाम लेकर आदरणीय प्रमोद जी सोनी साहब अपनी बात रख रहे हैं उन्होंने अपनी पूरी बात नहीं रखी सच्ची बात यह है कि उस मीटिंग में मेरे साथ अजय दनगसिया भी इसी पक्ष में थे कपड़े नहीं पहने जाए दीक्षा भंग नहीं की जाए उनको आगे विहार करा दिया जाएमैंने अपनी होती कोशिश बहुत रोकने का प्रयास किया लेकिन समाज दुष्टकंठको उस दिन समाज का गला घोट कर इस घटना को अंजाम दिया जिनके इशारे पर यह सब कुछ हुआ वह लोग किसी से छुपे हुए नहीं है समाज की जाजम पर उन सब का विरोध आवश्यक है उनके सभी पदों से इस्तीफा ले लेना चाहिए और निंदा प्रस्ताव पास करना चाहिए अखबारों में खबर का आना समाज के लिए दुखद है जो लोग मीटिंग में थे उन्होंने ही न्यूज़पेपर को यह सब जानकारी दी और सारा तथ्य उनको शेयर किया इस घटना लसे बचा जा सकता था लेकिन अपनी शराफत दिखाने के चक्कर में समाज की लुटिया डुबो दी और महावीर जयंती का यह पावन दिवस सामाजिक अभिशाप बनकर आ गया मुझे इन सभी घटनाओं पर अत्यंत दुख है वेदना है
देवपुरी वंदना समाचार परिवार के सूत्रों के अनुसार यह घटना मात्र सिर्फ अपने अहम ,पद व
महत्वाकांक्षा के चलते क्रियान्वित हुई है।
फिर भी सही -गलत का निर्णय अब अजमेर की स्थानीय जैन समाज व शासन – प्रशासन ही बता सकता है।
क्योंकि अब यह घटना वर्चस्व और शक्ति- प्रदर्शन की और गतिमान करती नजर आ रही है ।

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