श्री दि. जैसवाल जैन पंचायती मंदिर मुरार मे श्री 1008 भक्तांबर महामंडल विधान का आयोजन हुआ

ग्वालियर ! (देवपुरी वंदना ) समाधी सम्राट आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर जी महामुनि राज के दसवें आचार्य पदारोहण दिवस पर मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर स्थित दिगंबर जैसवाल जैन पंचायती मंदिर मुरार में युवा प्रणेता, गणिनी आर्यिका गुरु मां 105 आर्षमति माताजी के मंगल सानिध्य में साज-बाज संगीत के साथ बडी भक्ति भाव से श्री 1008 भक्तांबर महामंडल विधान हुआ । भगवान 1008 श्री आदिनाथ जी के गुणों का स्तवन एवं महिमा का ही जिसमें 48 श्लोकों से संयुक्त इस विधान में अपने आप में एक असीम शक्ति का महत्व देखा गया है श्री भक्तांबर महामंडल विधान में बैठने और पाठ करने से मानव जीवन सुखमय बन जाता है शुक्रवार 27 मई 2022 को प्रातः श्री 1008 भक्तांबर महामंडल विधान का आयोजन किया इस अवसर पर गुरु मां ने बताया कि
जैन भक्ति साहित्यों में भक्तामर स्रोत अपने आप में बहुत बड़ा स्थान रखता है। श्री भक्तामर स्रोत उस समय रचा गया था जब दिगंबर आचार्य श्री 108 मानतुंग स्वामी से वहां के राजा ने कहा कि आप जैन धर्म का कुछ चमत्कार दिखाओ, दिगंबर संत निस्पृही होते हैं। यद्यपि उनकी साधना से अनेकों ऋद्धि-सिद्धियां प्रगट हो जाती है और उनसे कई प्रकार के बड़े-बड़े चमत्कार सरलता से हो जाया करते हैं। उनकी भक्ति करने वाले भक्तों की भी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। बिगड़े काम बन जाते हैं। पर दिगंबर संतों की यह विशेषता रहती है कि वे अपने चमत्कारों को प्रगट नहीं करना चाहते। यही कारण था कि उस समय के राजा ने क्रोधित होकर आचार्य श्री को कारागार में डलवा दिया। 48 तालौ के अंदर उन्हें कैद करा दिया। उस समय कैद खानों के अंदर मानतुंग आचार्य श्री ने भगवान 1008 श्री आदिनाथ जी की स्तुति करना प्रारंभ की। स्तुति में वे इतने लीन हो गए कि भक्तामर स्रोत के एक-एक करके 48 काव्यो की रचना कर दी। उधर मानतुंग स्वामी भक्ति में डूबते जा रहे थे और उधर उनके शरीर पर बंधी हुई जंजीरें और द्वारों पर लगे 48 ताले एक-एक करके स्वत: खुलते जा रहे थे। वहां के राजा को जब इस चमत्कार का पता चला तो वह दौडक़र आए और मानतुंग आचार्य श्री के चरणों में नतमस्तक हो अपने अपराधों की क्षमा मांगी। यह ऐसा चमत्कारी स्रोत है कि जिसको पढऩे से व्यक्ति के भयंकर संकट दूर हो जाते हैं। बड़े से बड़े रोग ठीक हो जाते हैं और संसार की संपूर्ण सुख-शांति प्राप्त हो जाती है। इसलिए हम सभी सच्चे मन से भगवान की भक्ति करें, भक्तामर स्रोत के माध्यम से आराधना कर अपने जीवन को सुख-शांतिमय बनावें । इस विधान में सकल दिगंबर जैन समाज मुरार व निकटतम क्षेत्र के श्रावक – श्रेष्ठी समाज सेवियों ने धर्म लाभ लिया ।

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