आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने बताया आजादी और गुलामी का सही अर्थ
श्री महावीर जी ! पूरा देश 75 वा अमृत महोत्सव मना रहा है। हमारी आत्मा कर्मों के अधीन है ,इस कारण हम पराधीन है हमारे तीर्थंकर कर्मों से रहित है इसलिए वह स्वाधीन है ।उन्होंने सिद्ध पद को प्राप्त किया है धर्म के माध्यम से आत्मा को धर्मात्मा बनना होगा तब वह आत्मा स्वाधीन होगी । है , भगवान आपने जिस प्रकार कर्मों का नाश कर स्वाधीन हुए हमें भी भगवान आपके दर्शन कर कर्मों का नाश करके स्वाधीन होना है आज देश को आजाद होने को 7 5 वर्ष हो चुके हैं ,भले ही देशवासी स्वाधीनता का अनुभव कर रहे हैं किंतु देशवासी दुखी है जब तक वह धर्म को धारण नहीं करेंगे तब तक वह सुखी नहीं हो सकते हैं।
आचार्य श्री ने आगे बताया कि आप लोगों का असल में पुण्य का उदय है, जो श्री महावीर जी आने का अवसर मिला ।
भू गर्भ से प्रगटित चमत्कारी भगवान श्री महावीर स्वामी के दर्शन हुए, संघ के दर्शन हो रहे हैं। भगवान श्री महावीर स्वामी का प्रकट होने की चमत्कार हुआ एक गाय रोज अपना दूध एक टीले पर गिराती थी, ग्वाले ने जब उस टीले की खुदाई की ,तब यह चमत्कारी प्रतिमा मिली है।और इसी कारण इस क्षेत्र को अतिशय क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में श्री महावीर स्वामी का शासन चल रहा है जिस प्रकार शासन के कुछ नियम होते हैं वैसे ही धर्म के भी नियम अनुशासन होते है। हमारी आत्मा अनादि काल से पराधीन है सूक्ष्म दृष्टि से विचार करें तो संसार की हर आत्मा पराधीन है ।पर के अधीन अर्थात पराधीन ।आत्मा अनादि काल से कर्मों से बंद, प्राप्त कर बंधन में है ।कभी-कभी पुण्य कर्मों के संयोग से आत्मा स्वाधीनता का अनुभव करती है। श्री महावीर स्वामी ने दिव्य देशना से जो उपदेश दिया है उसका अनुसरण करना चाहिए ।धर्म अनेक प्रकार के होते हैं जिससे आत्मा का कल्याण मार्ग प्रशस्त होता है।
पूनम दीदी एवम नेहा दीदी ने बताया कि वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री ने प्रवचन में बताया ।
समाज के लिए जो करें वह सामाजिक धर्म ,परिवार के लिए करें वह पारिवारिक धर्म, देश के लिए जो करें वह देश धर्म कहलाता है । भारत देश में अनेक संस्कृति रही है अनेक विदेशी शासकों ने शासन किया है और आयु कर्म पूर्ण होने पर वे चले गए परिवर्तन चलता रहा है।
आचार्य श्री ने आगे मंगल देशना में बताया कि
भारत देश तीर्थंकरों और महापुरुषों का देश है ।हमें जो संस्कृति मिली है वह भगवान महावीर स्वामी के उपदेश से मिली है। श्री राजकुमार जी सेठी अध्यक्ष चातुर्मास कमेटी एवम श्री नरेश सेठी ने बताया कि आचार्य श्री ने प्रवचन में बताया कि
भगवान महावीर स्वामी ने अहिंसा परमो धर्म का नारा दिया, अहिंसा ही भारत की संस्कृति रही है ।आचार्य श्री ने चिंताजनक बात यह बताई कि हम भारतवासी अपने राष्ट्र धर्म को कितना निभा रहे हैं ,पशु धन को निर्यात कर भारत में धन ला रहे हैं ।और मानवों के गर्भपात अजन्मे शिशुओं का गर्भपात कराया जाता है। यह अहिंसा प्रधान धर्म का माहोल है ।इस कारण अहिंसा का क्षरण हो रहा है ।भारत व्यसन मुक्त नहीं है ,हम किस आधार पर स्वतंत्र हैं स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए कितने जैन शहीद हुए हैं ।पशुधन का विक्रय दुर्भाग्यपूर्ण है आत्मा कर्मों के अधीन है। भगवान की आत्मा कर्मों से रहित होने के कारण तीर्थंकर स्वाधीन है।
इसके पूर्व संघस्थ मुनि श्री हितेन्द्र सागर जी का प्रवचन हुआ।
कार्यक्रम का सुंदर संचालन बाल ब्रह्मचारिणी नेहा दीदी ने तथा श्री मुकेश जी पंडित जी ने किया
राजेश पंचोलिया
इंदौर
वात्सल्य वारिधि भक्त परिवार