इंदौर ! इंदौर जैन समाज ने मध्य प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का आभार प्रकट किया मुख्यमंत्री जी ने कैबिनेट बैठक में कुंडलपुर क्षेत्र के 4 किलोमीटर के दायरे में शराब, मांस, बिक्री पर प्रतिबंध रहेगा और क्षेत्र पर आने जाने वाले यात्रियों के लिए परिवहन की सुविधा का विस्तार किया जा रहा है और सुरक्षा का पुरा इंतजाम किया जाएगा माननीय श्री मुख्यमंत्री जी के इस निर्णय का दिगंबर जैन समाज सामाजिक सांसद इंदौर के अध्यक्ष राजकुमार पाटोदी, मंत्री डॉ जैनेन्द्र जैन, दिगंबर जैन सोशल ग्रुप फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश विनायका, इंदौर दिगंबर जैन परवार समाज के अध्यक्ष राजेश जैन( लारेल) ,राजीव जैन बंटी संजीव जैन सजिवनी, प्रदीप बड़जात्या, राजेश जैन दद्दू ने माननीय मुख्यमंत्री जी के प्रति आभार प्रकट कर कहा कि आप के तीर्थ के प्रति मंगल भावनाए प्रकट कर जैन समाज को गौरवान्वित किया जैन समाज पुनः आपका बहुत-बहुत आभार मानती है।
कुण्डलपुर भारत में जैन धर्म के लिए एक ऐतिहासिक तीर्थ स्थल है। यह मध्य प्रदेश के दमोह जिले में शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुंडलगिरी में है। कुण्डलपुर में बैठे (पद्मासन) आसन में बड़े बाबा (आदिनाथ) की एक प्रतिमा है। इस प्राचीन स्थान को सिद्धक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यहां अति आलौकिक 63 मंदिर स्थापित हैं जो करीब आठवीं-नौवीं शताब्दी के बताए जाते हैं। यह क्षेत्र 2500 साल पुराना बताया जाता है। कुण्डलपुर जी सिद्ध क्षेत्र अंतिम श्रुत केवली श्रीधर केवली की मोक्ष स्थली है और यहां अर्धचन्द्राकार पर्वत पर विराजमान हैं अतिशयकारी लगभग 1500 वर्ष पुराने पंद्रह फीट ऊँचे पद्मासन लगाये श्री 1008 आदिनाथ भगवान, जिन्हें हम बड़ेबाबा कह कर बुलाते हैं।
कुण्डलपुर जी का अतिशय बहुत निराला और प्राचीन है। श्रीधर केवली की निर्वाण भूमि होना, यह अवगत कराती है कि ईसा से छह शताब्दियों पूर्व भगवान महावीर स्वामी का समवसरण यहां पर आया था और पहली बार प्रतिमा जी के दर्शन भट्टारक सुरेन्द्र कीर्ति जी को पहाड़ पर हुए। उन्होंने प्रतिमा जी को खुदाई कर निकलवाया और प्रभु के सर पर छत की व्यवस्था करवाई, लेकिन कुछ वर्षों पश्चात राजा छत्रसाल जब मुगलों के हाथों राज्य हार कर वन वन भटक रहा था और भटकते भटकते शांति की खोज में कुंडलपुर जी पहुंचा और श्री 1008 आदिनाथ भगवान के चरणों में बड़ेबाबा के मंदिर बनवाने के भाव रख पुन: राज्य विजय को निकला और जीत गया। कालांतर में विक्रम संवत 1757 ई को राजा क्षत्रसाल ने बड़ेबाबा के मंदिर जी का निर्माण कराया और पंचकल्याणक कराया। बताते हैं कि एक बार पटेरा गांव में एक व्यापारी बंजी करता था। वही प्रतिदिन सामान बेचने के लिए पहाड़ी के दूसरी ओर जाता था, जहां रास्ते में उसे प्रतिदिन एक पत्थर पर ठोकर लगती थी। एक दिन उसने मन बनाया कि वह उस पत्थर को हटा देगा, लेकिन उसी रात उसे स्वप्न आया कि वह पत्थर नहीं तीर्थंकर मूर्ति है। स्वप्न में उससे मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने के लिए कहा गया, लेकिन शर्त थी कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। उसने दूसरे दिन वैसा ही किया, बैलगाड़ी पर मूर्ति सरलता से आ गई। जैसे ही आगे बढ़ा उसे संगीत और वाद्यध्वनियां सुनाई दीं। जिस पर उत्साहित होकर उसने पीछे मुड़कर देख लिया। और मूर्ति वहीं स्थापित हो गई।
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