बाराबंकी में 10 -11 फरवरी को आर्यिका रत्न 105 श्री विशुद्ध मति माताजी का 75 वां हीरक जन्म जयंती महामहोत्सव

Aryika Ratna 105 Shri Vishuddha Mati Mataji

Aryika Ratna 105 Shri Vishuddha Mati Mataji

इंदौर!( देवपुरी वंदना ) गुरू मां गणिनी आर्यिका 105 विशुद्ध मति माताजी का जन्म ग्वालियर के लश्कर में 1949 मे हुआ था। 13 वर्ष की आयु में शुद्र जल का त्याग कर दिया। 14 वर्ष की उम्र मे ब्रहम्चार्य व्रत धारण कर संत साधुओं की उत्कृष्ठ प्रक्रिया केश लोच की प्रक्रिया प्रारंभ की। 1966 मे सप्तम प्रतिमा, गृह त्याग, केशलोच, मीठा रस त्याग, दही का त्याग, 1970 में तेल का त्याग किया। इसी वर्ष बिहार के ईशरी गांव में दीक्षा प्राप्त की तथा आर्यिका दीक्षा के व्रतों को ग्रहण किया। 1971 मे आर्यिका दीक्षा का शुभारम्भ किया। 1972 में सांगोद में आचार्य विमल सागर महाराज भिंड वालों के गर्णी पद प्राप्त किया। 1999 में अष्टमी चतुर्दशी का अखण्ड मौन, चारों अनुयायी का गहन अध्ययन, षटखण्डा गम के अध्ययन से पूर्व तत्व संबधी आगम पर विस्तृत प्रवचन एवं गढ़ तत्व चर्चा की बाहुबली जी की 2 बार यात्रा के साथ संपूर्ण भारत का भ्रमण किया। 2009 में विद्या वारिधि की उपाधि, 2013 में लोक कल्याणी की उपाधि, 2015 मे चर्या शिरोमणि की उपाधि प्राप्त की। 2017 में श्री दिगम्बर जैन समाज प्रतापनगर जयपुर द्वारा प्रशांत मूर्ति की उपाधि दी गई। ‌ विदुषीरत्न आर्यिका 105 विशुद्धमति माताजी का
गृहस्थाश्रम का नाम – श्री सुमित्रा बाई 
जन्म स्थान – रीठी, जिला जबलपुर (म. प्र.) ।
पिता -श्रीमान् सिं० लक्ष्मणलालजी
माता -सौ० मथुराबाई।
भाई- श्री नीरजजी जैन एम० ए० और श्री निर्मल कुमारजी जैन मु० सतना (म० प्र०)।
जाति -गोलापूर्व ।
जन्म तिथि- सं. 1986 चैत्र शुक्ला तृतीया शुक्रवार दिनांक 12 अप्रैल 1628
लौकिक शिक्षण- 1. शिक्षकीय ट्रेनिंग (दो वर्षीय) 2. साहित्य रत्न एवं विद्यालंकार ।
धार्मिक शिक्षण – शास्त्री (धर्म विषय में)
धार्मिक शिक्षण के गुरु-परम माननीय विद्वद्-शिरोमणि पं० डा० पन्नालालजी साहित्याचार्य, सागर (म.प्र.)
कार्यकाल – श्री दिगंबर जैन महिला श्रम (विधवा श्रम) का सुचारु-रीत्या संचालन करते हुए प्रधानाध्यापिका पद पर करीब 12 वर्ष पर्यन्त कार्य किया एवं अपने सद् प्रयत्नों से संस्था में 1008 श्री पार्श्वनाथ चैत्यालय की स्थापना कराई।
वैराग्य का कारण -परम पूज्य श्रद्धेय आचार्य 108श्री धर्मसागर महाराजजी के सन् 1962 सागर (म.प्र.) चातुर्मास में पूज्य 108 श्री धर्मसागर महाराजजी की परम निरपेक्ष वृत्ति और परम शान्तता का आकर्षण एवं संघस्थ परम पूज्य प्रवर वक्ता 108 श्री सन्मति सागरजी महाराज के मार्मिक सम्बोधन ।
आर्यिका दीक्षागुरु -परम पूज्य कर्मठ तपस्वी अध्यात्मवेत्ता, चारित्र शिरोमणि, दिगम्बरा चार्य 108 श्री शिव सागरजी महाराज। औ शिक्षा गुरु- परम पू.सिद्धान्तवेत्ता आचार्य कल्प 108 श्री श्रुतसागरजी महाराज।
विद्या गुरु- परम पू.अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी उपाध्याय 108 श्री अजितसागरजी महाराज ।
दीक्षा स्थान -श्री अतिशय क्षेत्र पपौराजी (म०प्र०)
दीक्षा तिथि -सं० 2021श्रावण शुक्ला सप्तमी दिनांक – 14/8/64
वर्षा योग -सं० 2021में पपौरा क्षेत्र पर दीक्षा हुई पश्चात् क्रमशः श्री अतिशय क्षेत्र महावीरजी, कोटा, उदयपुर, प्रतापगढ़, टोडारायसिंह, भिण्डर, उदयपुर, अजमेर, निवाई, रेनवाल (किशनगढ़), सवाई माधोपुर, सीकर, रेनवाल (किशनगढ़), निवाई, निवाई, टोडारायसिंह आदि

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जिन मुखोद् भव साहित्य सृजन –
1. टीका-श्रीमद् सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य विरचित त्रिलोकसार की सचित्र हिन्दी टीका।
2.भट्टारक सकल कीर्त्याचार्य विरचित सिद्धान्त सार दीपक अपर नाम त्रैलोक्य दीपिका की हिन्दी टीका । 3. तिलोयपण्णत्ती-प्राचार्य यतिवृषभ प्रणीत की हिन्दी टीका।
मौलिक रचनाएँ –
1.श्रुत निकुञ्ज के किञ्चित् प्रसून (व्यवहार रत्नत्रय की उपयोगिता )
2. गुरु गौरव,
3.श्रावक सोपान और बारह भावना
विशेष धर्म प्रभावना –
1.समाधि दीपक, 2.श्रमण चर्या 3. निरिण कल्याणक एवं दीपावली पूजन विधि, 4. श्रावक सुमन संचय आदि। आपकी प्रखर और मधुर वाणी से प्रभावित होकर श्री दि.जैन समाज जोबनेर जिला जयपुर ने श्री शान्ति वीर गुरुकुल को स्थायित्व प्रदान करने हेतु श्री दि. जैन महावीर चैत्यालय का नवीन निर्माण कराया एवं आपके सानिध्य में ही वेदी प्रतिष्ठा कराई। जन धन एवं आवागमन आदि अन्य साधन विहीन अल यारी ग्राम स्थित जिन मन्दिर का जीर्णोद्धार, 23 फुट ऊँची 1008 श्री चन्द्रप्रभु भगवान की नवीन प्रतिमा तथा संगमरमर की नवीन वेदी की प्राप्ति एवं वेदी प्रतिष्ठा आपके ही सप्रयत्नों का फल है। इसी प्रकार अनेक स्थानों पर कलशा-रोहण महा महोत्सव हुए, जैन पाठशालाएँ खोली गईं, श्री दि.जैन धर्मशाला टोडारायसिंह का नवीनीकरण भी आपकी ही सद् प्रेरणा का फल है। श्री ब्र० सूरज बाई मु० ड्योढी जि. जयपुर की। क्षुल्लिका दीक्षा, श्री ब्र० मनफूल बाई मातेश्वरी श्री गुलाबचन्दजी, कपूरचन्दजी सर्राफ टोडाराय सिंह, जिला टोंक को अष्टम प्रतिमा एवं श्री कजोड़ीमलजी कामदार, जोबनेर जि. जयपुर आदि को द्वितीय प्रतिमा के व्रत आपके कर कमलों से प्रदान किये गये। उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर के बाराबंकी में जैन समाज व भक्तों द्वारा आयोजित आयोजन आगामी 10 – 11 फरवरी2024 को गुरु मां का 75 वां हीरक जन्म जयंती महोत्सव व पिच्छिका परिवर्तन महोत्सव में आप सादर आमंत्रित हैं। देवपुरी वंदना समाचार परिवार की ओर से गुरु मां को नमोस्तु .नमोस्तु .

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