3 अप्रैल आदि से 21 अप्रैल वीर तक 19 दिवसीय तीर्थंकर जन्म कल्याण महा महोत्सव पर्व ..
इंदौर ! (देवपुरी वंदना) “प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ से अंतिम तीर्थंकर महावीर जन्मकल्याणक” महापर्व के अवसर पर सामाजिक, धार्मिक,सांस्कृतिक , शैक्षणिक, मानव हितार्थ कार्यों को अपने क्षेत्रों, शहरों, कस्बों में प्रत्येक जैन घर पर जैन पताका आकर्षक रोशनी, संध्या दीपक,स्वर्ण रथ यात्रा, प्रातः प्रभात फेरी,शोभा यात्रा, जन्मकल्याणक समारोह, भगवान की प्रतिमाओं का अभिषेक, महामस्तकाभिषेक, पूजन, विधान, भजन संध्या, पालना संगोष्ठी या अन्य आयोजन करने का 19 दिवसीय महापर्व 3 अप्रैल से 21 अप्रैल 2024 तकजैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री1008 आदिनाथ जी का जन्म चैत्र कृष्ण नौवीं के दिन सूर्योदय के समय हुआ। उन्हें ऋषभनाथ भी कहा जाता है। उन्हें जन्म से ही सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान था। वे समस्त कलाओं के ज्ञाता और सरस्वती के स्वामी थे। युवा होने पर कच्छ और महा कच्छ की दो बहनों यशस्वती (या नंदा) और सुनंदा से ऋषभ नाथ का विवाह हुआ। नंदा ने भरत को जन्म दिया, जो आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बने। उसी के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा (जैन धर्मावलंबियों की ऐसी मान्यता है)। आदिनाथ ऋषभनाथ सौ पुत्रों और ब्राह्मी तथा सुंदरी नामक दो पुत्रियों के पिता बने। भगवान ऋषभनाथ ने ही विवाह-संस्था की शुरुआत की और प्रजा को पहले-पहले असि (सैनिक कार्य), मसि (लेखन कार्य), कृषि (खेती), विद्या, शिल्प (विविध वस्तुओं का निर्माण) और वाणिज्य-व्यापार के लिए प्रेरित किया। कहा जाता है कि इसके पूर्व तक प्रजा की सभी जरूरतों को क्लपवृक्ष पूरा करते थे। उनका सूत्र वाक्य था- ‘कृषि करो या ऋषि बनो।’ ऋषभनाथ ने हजारों वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया फिर राज्य को अपने पुत्रों में विभाजित करके दिगम्बर तपस्वी बन गए। उनके साथ सैकड़ों लोगों ने भी उनका अनुसरण किया। जब कभी वे भिक्षा मांगने जाते, लोग उन्हें सोना, चांदी, हीरे, रत्न, आभूषण आदि देते थे, लेकिन भोजन कोई नहीं देता था।
इस प्रकार, उनके बहुत से अनुयायी भूख बर्दाश्त न कर सके और उन्होंने अपने अलग समूह बनाने प्रारंभ कर दिए। यह जैन धर्म में अनेक सम्प्रदायों की शुरुआत थी। जैन मान्यता है कि पूर्णता प्राप्त करने से पूर्व तक तीर्थंकर मौन रहते हैं। अत: आदिनाथ को एक वर्ष तक भूखे रहना पड़ा। इसके बाद वे अपने पौत्र श्रेयांश के राज्य हस्तिनापुर पहुंचे। श्रेयांस ने उन्हें गन्ने का रस भेंट किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। वह दिन आज भी ‘अक्षय तृतीया’ के नाम से प्रसिद्ध है। हस्तिनापुर में आज भी जैन धर्मावलंबी इस दिन गन्ने का रस पीकर अपना उपवास तोड़ते हैं। इस प्रकार, एक हजार वर्ष तक कठोर तप करके ऋषभनाथ को तयकैवल्य ज्ञान (भूत, भविष्य और वर्तमान का संपूर्ण ज्ञान) प्राप्त हुआ। वे जिनेन्द्र बन गए। पूर्णता प्राप्त करके उन्होंने अपना मौन व्रत तोड़ा और संपूर्ण आर्यखंड में लगभग 99 हजार वर्ष तक धर्म-विहार किया और लोगों को उनके कर्तव्य और जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति पाने के उपाय बताए।
अपनी आयु के 14 दिन शेष रहने पर भगवान ऋषभनाथ हिमालय पर्वत के कैलाश शिखर पर समाधिलीन हो गए। वहीं माघ कृष्ण चतुर्दशी के दिन उन्होंने निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया। वीर ,अतिवीर, सन्मति महावीर ,वर्धमान, के नाम से भी जाना जाता है, जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर (सर्वोच्च उपदेशक) थे। वह 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। महावीर का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में प्राचीन भारत के एक शाही जैन परिवार में हुआ था । उनकी माता का नाम त्रिशला और पिता का नाम सिद्धार्थ था । वे पार्श्वनाथ के भक्त थे। महावीर ने लगभग 30 वर्ष की आयु में सभी सांसारिक संपत्तियों को त्याग दिया और आध्यात्मिक जागृति की खोज में घर छोड़ दिया और एक तपस्वी बन गए । महावीर ने साढ़े बारह वर्षों तक गहन ध्यान और कठोर तपस्या की, जिसके बाद उन्हें केवल ज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त हुआ। उन्होंने 30 वर्षों तक उपदेश दिया और 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व में मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त किया। महावीर ने सिखाया कि अहिंसा (अहिंसा), सत्य (सत्य), अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (शुद्धता), और अपरिग्रह (गैर-लगाव) के व्रतों का पालन आध्यात्मिक मुक्ति के लिए आवश्यक है। उन्होंने अनेकांतवाद (बहुपक्षीय वास्तविकता) के सिद्धांतों की शिक्षा दी : स्याद्वाद और नया वाद ।
महावीर की शिक्षाओं को इंद्रभूति गौतम (उनके प्रमुख शिष्य) ने जैन आगम के रूप में संकलित किया था । उनके जन्म को महावीर जन्म कल्याणक और उनके निर्वाण (मोक्ष) के रूप में मनाया जाता है और गौतम स्वामी के उनके पहले शिष्य को जैनियों द्वारा दिवाली के रूप में मनाया जाता है। ऐतिहासिक रूप से, महावीर, जिन्होंने प्राचीन भारत में जैन धर्म को पुनर्जीवित और प्रचार किया । दो तीर्थंकरों के जन्म कल्याणक महोत्सव के मध्य दिनो में भगवान अनंत नाथ जी का ज्ञान व मोक्ष दिवस, भगवान अरहनाथ जी का मोक्ष दिवस, भगवान मल्लिनाथ जी का गर्भकल्याण दिवस ,भगवान कुंथुनाथ जी का ज्ञान कल्याण दिवस, भगवान आजितनाथ जी का मोक्ष कल्याण दिवस ,भगवान संभवनाथ जी का मोक्ष कल्याण दिवस, भगवान सुमति नाथ जी का जन्म -ज्ञान – मोक्ष कल्याण दिवस व महावीर स्वामी जी का जन्म कल्याण महोत्सव के साथ-साथ श्रमण संस्कृति के उन्नायक दिगंबरत्व की पहचान मुनिश्री प्रमाणसागर जी मुनिश्री आर्जवसागर जी मुनिश्री मार्दवसागर जी मुनिश्री पवित्रसागर जी मुनिश्री उत्तमसागरजी मुनिश्री पावनसागरजी मुनिश्री सुखसागरजी मुनिश्री सन्मतिसागरजी विद्याभूषण-मुनिश्री ज्ञानसागरजी मुनिश्री अतिवीर जी आदि की मुनि दीक्षा व मुनि श्री विशुद्ध सागर जी का आचार्य पद महोत्सव भी महावीर जन्म कल्याण के दिन ही है ।