इंदौर के 70 दि. जैन मंदिरों के पदाधिकारीयों को सामाजिक संसद के अध्यक्ष में कोई दिलचस्पी नहीं
इन्दौर ! (देवपुरी वंदना) अपने अहम् नाम, पद, की बढ़ती महत्वाकांक्षा के चलते इंदौर दिगंबर जैन समाज में अपने मंसूबे को लाभान्वित करने के लिए किसी भी गलत राह पर चल निकलते है । चाहे वह समाज के लिए विघटन का कार्य कर रहे हो जिस से समाज विभिन्न विभाजन की ओर अग्रसर हो रहा हो अपनी महत्वाकांक्षा के चलते अपना ही हित साधने में चाहे श्रीजी हो, श्रमण परंपरा हो, समाज के श्रेष्ठी जन हो, या वृद्ध, महिला – पुरुष, बच्चों की आस्था संस्कार संस्कृति हो, या चाहे प्रतिमा धारी श्रावक – श्राविका हो । सबके साथ खिलवाड़ करते हुए अपने मनमर्जी से पारिवारिक, व्यापारिक या राजनैतिक क्षेत्र में बस अपना ही नाम चलता रहे, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण इंदौर दिगंबर जैन सामाजिक संसद विगत कई समय से इस बात के लिए मशहूर होता जा रहा है । पहले पूरे इंदौर शहर में दिगंबर जैन समाज की एक ही सामाजिक संसद नाम की संस्था थी फिर उसके बाद वही नाम, पद, मंच- माला की चकाचौंध कुछ साथियों को रास नहीं आई व उन्होंने मतभेद को मन भेद में बदलते हुए स्वयंभू अध्यक्ष व महामंत्री की घोषणा कर कुछ और साथियों को लेकर इंदौर शहर के दिगंबर जैन समाज में दूसरी सामाजिक संसद का गठन करा । जिसका समाज में कोई असर नहीं दिखा क्योंकि पूर्व की सामाजिक संसद भी समाज में सिर्फ महावीर जन्म कल्याण व क्षमावाणी महापर्व पर ही जागृत होती है । क्योंकि उनके कोई स्थानीय लाभदायक या कहे तो शहर के दिगंबर जैन मंदिरों के सदस्यों के लिए कोई हितकारी योजना नहीं है और नही कोई मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था, या आवश्यक मरम्मत के लिए कोई मदद की व्यवस्था भी नहीं है, साथ ही साथ किस क्षेत्र के कितने मंदिर में कितने परिवार की संख्या है वह भी नहीं पता, जिसे जनगणना कहा जाता है उसका तो कोई अता – पता नहीं है । इसके बावजूद भी विगत कई दिनों से समाज में एक अध्यक्ष को लेकर काफी गहमागहमी चल रही है । जिम्मेदार पत्रकार होने के कारण सच्चाई जानने की जिज्ञासा हमेशा रही है । जब इंदौर शहर के दिगंबर जैन मंदिरों के पदाधिकारीयो से सामाजिक संसद के अध्यक्ष के बारे में चर्चा करी तो लगभग सभी ने दबी जबान में सामाजिक संसद अध्यक्ष की आवश्यकता को नकारते हुए बताया कि सामाजिक सांसद का कोई इंदौर शहर में मतलब ही नहीं है । क्योंकि कोई सी भी संसद इंदौर में निवास कर रहे जैन समाज के परिवार कर रहे उन में वृद्धो के लिए चिकित्सा सुविधा व बच्चों के लिए पढ़ाई की व्यवस्था के लिए कोई योजना भी नहीं है व मंदिर हेतु कोई व्यवस्था नहीं है । समय की अनुकूलता अनुरूप शहर के दिगंबर जैन मंदिर के लगभग 70 पदाधिकारीयों से जानकारी चाही सभी ने अध्यक्ष को लेकर कोई उमंगता नहीं दर्शाई । जिसने विशेष कर पूर्वी , उत्तरी क्षेत्र के मंदिरों के पदाधिकारीयों ने ( no interest ) दिलचस्पी नहीं कहते हुए अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया । केवल मात्र पश्चिम क्षेत्र के कुछ मंदिरों के ट्रस्टी व पदाधिकारीयो ने परिवारिक संबंध का उलहाना देकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी अब देखना यह है कि 6 वर्ष पूर्व जो नई सामाजिक संसद बनी क्या अब वह पुन: अध्यक्ष बनायेगे या अपनी अन उपयोगिता मानते हुए इंदौर दिगंबर जैन समाज के हित के लिए अपने मनभेद को भुलाकर सभी को एक करते हुए कोई सफल कार्य योजना बनाकर या श्रेष्ठीयो व श्रमण परंपरा के साथ का सहयोग पर अमल करेंगे या नाम, पद, अहम् और महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा देंगे । इंदौर दिगंबर जैन समाज के साधार्मिक बंधुओं से निवेदन है कि पूर्व की भांति अपने मन में उठ रही जिज्ञासा या इस अनसुलझी गुत्थी की समस्या का हल बताएं। मन के शब्द आपके हमारी कलम द्वारा समाज तक रूबरू पहुंचाने की जिम्मेदारी के साथ…………..
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