अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद के तत्वावधान में “आचार्य श्री की शिक्षाएं” विषय पर विद्वत्संगोष्ठी संपन्न

सागर ! (देवपुरी वंदना) अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद के तत्वावधान में निर्यापक मुनि श्री 108 योग सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में श्री दिगंबर जैन मंदिर नेहा नगर में आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज की शिक्षाएं इस विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में निर्देशन पंडित श्री राजकुमार जैन शास्त्री द्वारा किया गया एवं सत्र की अध्यक्षता डॉक्टर जिनेंद्र कुमार जैन डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर ने की। सारस्वत अतिथि एवं संगोष्ठी संयोजन डॉ . आशीष जैन आचार्य एवं मंच संचालन विद्वतश्री अनिल जैन शास्त्री ने किया।

मंगलाचरण बहन स्वाति जैन ने किया। सर्वप्रथम शास्त्री परिषद का परिचय देते हुए पंडित राजकुमार जैन शास्त्री ने कहा कि शास्त्री परिषद निरंतर जिन धर्म की प्रभावना में कार्य कर रही है। डॉ हरिश्चंद जैन शास्त्री मुरैना ने कहा कि आचार्य विद्यासागर जी महाराज की शिक्षाएं आज प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को श्रेष्ठ बनने में अत्यंत उपादेय हैं। डॉ. आशीष जैन आचार्य ने बताया कि आचार्य श्री का शिक्षा दर्शन जीवन निर्माण की ओर प्रेरित करता है। आचार्य श्री की शिक्षाएं व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारती हैं और लौकिक एवं पारलौकिक सुख प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पंडित श्री मोहित जैन शास्त्री ने आचार्य श्री की नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 में महत्वपूर्ण भूमिका के संदर्भ में विचार व्यक्त किए। पंडित श्री श्रवण कुमार जैन ने कहा गाय ही सच्चा धन है गौशाला करुणा की शिक्षा दे रही है।
मूक माटी की पंक्तियां उद्धृत करते हुए बताया है – वेतन वालों को वतन का ख्याल कम होता है चेतन वालों को तन का ख्याल कम होता है। पंडित श्री सुखदेव जी ने आचार्य श्री की शिक्षाओं पर कविता प्रस्तुत की। ब्रह्मचारिणी अल्पना दीदी ने आचार्य श्री की बालिका शिक्षा के संदर्भ में महत्वपूर्ण विषयों की प्रस्तुति की। डॉ. संजय जैन शास्त्री नेहा नगर ने बताया आचार्य श्री ने स्वास्थ्य शिक्षा को लेकर के बहुत महत्वपूर्ण विषयों को प्रस्तुत किया है जिसके फलस्वरूप भाग्योदय तीर्थ अस्पताल के रूप में प्रकट रूप में हमारे समक्ष उपलब्ध है। पंडित श्री प्रियांश जैन शास्त्री ने बताया कि आचार्य श्री हम सभी के जीवन में केवल गुरु के रूप में ही नहीं अपितु ईश्वर के रूप में प्रतिष्ठापित थे। सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. जिनेंद्र कुमार जैन ने कहा कि आचार्य श्री की शिक्षाएं निश्चित रूप से अमृत समान है जो इनका पान करता है वह अपने जीवन को अमर करता है। परम पूज्य मुनि श्री 108 निर्भीक सागर जी महाराज ने कहा कि आचार्य श्री श्रुत के पुत्र थे अनुशासन की बात नहीं करते थे, अपितु करके दिखाते थे।आचार्य श्री कहा करते थे कि पहले दीक्षा हो फिर शिक्षा हो। गुरुदेव का शिक्षा दर्शन बहुआयामी है। परम पूज्य मुनि श्री 108 निरोग सागर जी महाराज ने कहा सही मायने में आचार्य श्री का भक्त वही है जो उनकी शिक्षाओं से भावित होता हो। चारों ओर की अशुद्धता उनके चारों तरफ घूमती थी फिर भी आचार्य श्री सदैव शुद्ध बने रहते थे। निर्यापक मुनि श्री 108 योग सागर जी महाराज ने कहा कि भारत में भारत की शिक्षा पद्धति लागू हो ऐसे आचार्य श्री के विचार रहे जिन्हें भारत सरकार ने स्वीकार किया है भारत में अंग्रेजी में व्यवहार ना हो अपितु भारतीय भाषाओं में ही व्यवहार हो गौशालाएं जीवंत कारखाना है यह संपूर्ण विचार आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के हैं जो आज की मानव जीवन के लिए अत्यंत प्रेरणाय है। श्री आनंद जैन शास्त्री पूर्व प्राचार्य, पंडित विजय जैन शास्त्री रामपुरा वार्ड, पंडित दामोदर जैन शास्त्री, पंडित मनोज जैन शास्त्री वर्धमान कॉलोनी, पंडित राजेश जैन शास्त्री सेसई, पंडित पीयूष जैन शास्त्री, पंडित भागचंद जैन सुर्खी, पंडित प्रकाश चंद्र शास्त्री, पंडित के. सी. जैन शिक्षक आदि अनेकों विद्वानों का समागम इस संगोष्ठी में हुआ !

डॉ. आशीष जैन आचार्य✍🏻

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