22 अप्रैल को दिल्ली में आचार्य श्री 108 विद्यानंद जी मुनिराज के जन्म शताब्दी वर्ष समारोह पर विद्वत संगोष्ठी
इंदौर ! (देवपुरी वंदना) युग प्रणेता, ज्ञानवर्धक, 20 वीं सदी के महान संत सिद्धांत चक्रवर्ती, श्वेत पिच्छाचार्य , श्री 108 विद्यानंद जी मुनिराज के जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर 22 अप्रैल 2025 को दिल्ली के स्थानीय कुंदकुंद भारती भवन में अखिल भारतीय जैन पत्र संपादक संघ के तत्वाधान में निर्यापक पटृऻचार्य परम पूज्यआचार्य श्री 108 श्रुत सागर जी मुनिराज के पावन आशीर्वाद एवं सानिध्य दो सत्रों में विद्वत गोष्ठी आयोजित की जा रही है जिसमें देश भर से जैन आगम के 26 अध्येता विद्वान भाग ले रहे हैं जिनमें डा.श्रेयांस कुमार जैन – (बड़ौत),डा.रमेशचंद जैन (बिजनौर),डा.नलिन के शास्त्री (लाडनूं),डा.चीरंजीलाल बगड़ा (कोलकाता)डा.सुरेन्द्र भारती (बुरहानपुर),श्री अनूपचंद एडवोकेट (फिरोजाबाद),डा.ऋषभचंद फौजदार (दमोह), डा.अजित राय (बडौत), डा.ज्योति जैन (खतौली) ,डा.मीना जैन(उदयपुर) आदि प्रमुख हैं। स्थानीय विद्वान भी गोष्ठी में उपस्थित होकर आचार्य श्री 108 के विद्यानंद जी का गुणानुवाद करेंगे। गोष्ठी का संयोजन डा.वीरसागर जैन एवं डा.अखिल बंसल (जयपुर) करेंगे।
श्वेतपिच्छाचार्य आचार्य श्री 108 विद्यानंदजी मुनिराज प्रमुख विचारक, दार्शनिक, संगीतकार, संपादक, संरक्षक, महान तपो-धनी, ओजस्वी वक्ता, प्रखर लेखक, शांत मूर्ति, परोपकारी संत थे। जिन्होंने अपना समस्त जीवन जैन धर्म द्वारा बताए गए अहिंसा, अनेकांत व अपरिग्रह के मार्ग को समझने व समझाने में समर्पित किया। जिन्होंने भगवान महावीर के सिद्धान्तों को जीवन-दर्शन की भूमिका पर जीकर अपनी संत-चेतना को सम्पूर्ण मानवता के परमार्थ एवं कल्याण में स्वयं को समर्पित करके अपनी साधना, सृजना, सेवा, एवं समर्पण को सार्थक पहचान दी है। वे आचार्य रत्नश्री 108 देशभूषण जी महाराज के परम शिष्य थे और उन्हीं की प्रेरणा एवम् मार्गदर्शन से कई कन्नड भाषा में लिखे हुए प्राचीन ग्रंथों का सरल हिन्दी व संस्कृत में अनुवाद किया। उनका नाम न केवल जैन साहित्य में अपितु सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में एक प्रमुख हस्ताक्षर के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
22 अप्रैल 1925 को शेडवाल कर्नाटक में श्री सुरेंद्र जी उपाध्ये का आपके पिता श्री कालप्पा जी एवं आपकी माताजी श्रीमती सरस्वती जी की कोख से जन्म हुआ। आपने लौकिक शिक्षा दानवड में प्राप्त की, तरल ग्राम में संगीत का शिक्षण लिया। ग्राम के स्कूल में भाषा समस्या होने से शांति सागर आश्रम में शिक्षण लिया। सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया। शेडवाल में सन 1946 में आचार्य श्री 108 महावीर कीर्ति जी गुरुदेव का चातुर्मास हुआ। फागुन शुक्ला त्रयोदशी 15 अप्रैल 1946 को तम-दडडी, कर्नाटक में आचार्य श्री 108 महावीर कीर्ति जी से क्षुल्लक दीक्षा ली। नाम-करण क्षुल्लक श्री 105 पार्श्व कीर्ति वर्णी रखा गया। कण्णूर में वर्ष 1947 के चातुर्मास के बाद आचार्य श्री 108 महावीर कीर्ति जी ने क्षुल्लक श्री को श्री शांति सागर आश्रम छात्रावास का अधिष्ठाता पद सम्हालने का आदेश दिया। वर्ष 1948 से 1956 तक 8 वर्ष वही रहे। 1957 का चातुर्मास श्री हुमचा पद्मावती मे किया। 1958-1959 सुजानगढ़ तथा अन्य स्थानों पर चातुर्मास कर क्षुल्लक श्री 1962 में दिल्ली में आचार्य श्री 108 देश भूषण जी के शरण में आये।
25 जुलाई 1963 को दिल्ली में आचार्य श्री 108 देशभूषण जी गुरुदेव के कर कमलो से मुनि श्री 108 विद्यानंद जी नाम रखा गया। सन 1969 में हिमालय की ओर विहार किया। एक चातुर्मास श्रीनगर में किया, वर्ष 1971 का चातुर्मास इंदौर (म.प्र) में किया। श्री महावीर जी, मेरठ होते हुए सन 1974 में दिल्ली पुनः पधारे।
दिल्ली में आचार्य श्री 108 देशभूषण जी ने दिनांक 8 दिसम्बर 1974 को उपाध्याय पद दिया। दिनांक 17 दिसम्बर 1978 को दिल्ली में
ऐलाचार्य पद दिया गया। वर्ष 1979 का चातुर्मास पुनः इंदौर में हुआ। 20 जुलाई 1980 को श्री श्रवणबेलगोला प्रवेश किया।
आचार्य श्री 108 देशभूषण जी महाराज के आदेशानुसार संघ को दिल्ली में 28 जून 1987 को आचार्य पद दिया गया।
आचार्य श्री 108 विद्यानंद जी ने 1981 में श्री 1008 बाहुबली भगवान के महामस्तकाभिषेक में ऐलाचार्य रहते हुए सानिध्य दिया।
मध्यप्रदेश की इन्दौर नगरी में श्री भगवान बाहुबली गोम्मटगिरी तीर्थ क्षेत्र आपकी प्रेरणा से बना है। आचार्य श्री 108 विद्यानंद जी ने श्री बद्रीनाथ जी के दर्शन किये है। 1990 में आचार्य श्री 108 शांतिसागर जी की अक्षुण्ण पट्ट परम्परा का पंचम पट्टाधीश पद आचार्य श्री 108 श्री वर्द्धमान सागर जी को लिखित गुरु आदेश से दिया गया तब आचार्य श्री विद्यानंद जी ने नूतन पिच्छी नए आचार्य श्री को भेंट कर अनुमोदना और आशीर्वाद दिया। 24 वे तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के 2500 वे निर्वाण महोत्सव कार्यक्रम में आचार्य श्री 108 विद्यानंद जी का महत्वपूर्ण सहयोग एवं मार्गदर्शन रहा।
देवपुरी वंदना समाचार परिवार देश के प्रथम राष्ट्रसंत आचार्य शिरोमणि श्री 108 विद्यानंद जी महामुनि के चरणों में नमोस्तु अर्पित करता है !