गणिनी आर्यिका रत्न 105 आर्ष मति माता जी के सानिध्य में मुरैना सकल दि,.जैन समाज ने आज श्री भक्तामर महामंडल विधान का लाभ लिया
मुरैना ! ( देवपुरी वंदना ) श्री भक्तामर महामंडल विधान में भगवान 1008 श्री आदिनाथ जी के गुणों का स्तवन एवं महिमा का वर्णन है जिसमें 48 श्लोकों से युक्त इस विधान में अपने आप में असीम शक्ति का महत्व देखा गया है श्री भक्तामर महामंडल विधान में बैठने और पाठ करने से मानव जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता है उक्त विचार मध्य प्रदेश के मुरैना शहर स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर मैं आयोजित विधान में गणिनी आर्यिका रत्न 105 आर्षमति माताजी ने कहीं । मुरैना शहर के सकल दिगंबर जैन समाज , श्री पारसनाथ दिगंबर जैन पंचायती बड़ा मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों एवं सदस्यों के साथ दिगंबर जैन समाज के सभी महिला मंडल सहित समाज के सभी श्रावक – श्रेष्ठी जनों ने श्री भक्तामर महामंडल विधान का लाभ लिया।
*जैन भक्ति साहित्यों में भक्तामर स्रोत अपने आप में बहुत बड़ा स्थान रखत है। * श्री भक्तामर स्रोत उस समय रचा गया था जब दिगंबर आचार्य श्री 108 मानतुंग स्वामी से वहां के राजा ने कहा कि आप जैन धर्म का कुछ चमत्कार दिखाओ, दिगंबर संत निस्पृही होते हैं। यद्यपि उनकी साधना से अनेकों ऋद्धि-सिद्धियां प्रगट हो जाती है और उनसे कई प्रकार के बड़े-बड़े चमत्कार सरलता से हो जाया करते हैं। उनकी भक्ति करने वाले भक्तों की भी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। बिगड़े काम बन जाते हैं। पर दिगंबर संतों की यह विशेषता रहती है कि वे अपने चमत्कारों को प्रगट नहीं करना चाहते। यही कारण था कि उस समय के राजा ने कुपित होकर उन मुनिराज को कारागार में डलवा दिया। 48 तालौ के अंदर उन्हें कैद करा दिया। उस समय कैद खानों के अंदर मानतुंग आचार्य श्री ने भगवान 1008 श्री आदिनाथ जी की स्तुति करना प्रारंभ की। स्तुति में वे इतने लीन हो गए कि भक्तामर स्रोत के एक-एक करके 48 काव्यो की रचना कर दी। उधर मानतुंग स्वामी भक्ति में डूबते जा रहे थे और उधर उनके शरीर पर बंधी हुई जंजीरें, द्वारों पर लगे 48 ताले एक-एक करके स्वत: खुलते जा रहे थे। वहां के राजा को जब इस चमत्कार का पता चला तो वह दौडक़र आए और मानतुंग आचार्य श्री के चरणों में नतमस्तक हो अपने अपराधों की क्षमा मांगी। यह ऐसा चमत्कारी स्रोत है कि जिसको पढऩे से व्यक्ति के भयंकर संकट दूर हो जाते हैं। बड़े से बड़े रोग ठीक हो जाते हैं और संसार की संपूर्ण सुख-शांति प्राप्त हो जाती है। इसलिए हम सभी सच्चे मन से भगवान की भक्ति करें, भक्तामर स्रोत के माध्यम से भगवान आदिनाथ की आराधना कर अपने जीवन को सुख-शांतिमय बनावें।